शुद्ध सच्चिदानन्द सनातन -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

वंदना एवं प्रार्थना

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तर्ज लावनी - ताल कहरवा


शुद्ध सच्चिदानन्द सनातन नित्यमुक्त जो परम स्वतन्त्र।
कर बन्धन स्वीकार उदरमें, हु‌ए यशोदाके परतन्त्र॥
जिनके अतुल स्वरूप-सिन्धुके बिन्दु-बिन्दुमें विश्व अपार।
डूबे रहते नित्य, लाँघकर उसे कौन जा सकता पार ?
कभी नहीं हो सकता जिन असीमकी सीमाका निर्देश।
नित्य अनन्त पूर्ण चिदघनका नहीं प्राप्त हो सकता शेष॥
काम-क्रोध-लोभ-भय-क्रन्दन-बन्धनको वे कर स्वीकार।
दिब्य बना देते इनको, कर निज स्वरूपमें अंगीकार ॥
नहीं कल्पना, नहीं भावना-माया-नाट्य, न दम्भ अनित्य।
है यह रसमयका शुचि पावन प्रेम-रस-सुधास्वादन सत्य॥
शुद्ध प्रेम-परवश हरिमें नित रहते साथ विरोधी धर्म।
इसीलिये होते उनके सब विस्मयभरे विलक्षण कर्म॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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