विषय सूची
भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
12. शान्ति पर्व
अध्याय : 74-90
अध्याय 83 में राजकोश की रक्षा के लिए राजा के सतर्क रहने का वर्णन है। अध्याय 84 में बताया है कि राजा को किस प्रकार के और किन गुणों से युक्त सहायक या मन्त्री रखने चाहिए। जिनकी वैनयिकी बुद्धि हो, जो तेज, धैर्य, क्षमा, शौच, अनुराग, स्थिति और धृति सम्पन्न हों और जिनके मनोभाव की परीक्षा ले ली गई हो, उन्हें आर्थिक कार्यों में नियुक्त करे। जो ठीक प्रकार से सलाह दे सकें। वीर हों, जिनमें प्रतिभा हो, कुलीन और सत्य-सम्पन्न हों, देश और काल का विधान जाननेवाले तथा स्वामिकार्य में हितैषी हों, उन्हें मन्त्री बनाना चाहिए। राजधर्म में सबसे अधिक महत्त्व मन्त्र का है। अतः यह बताया गया है कि किस प्रकार के व्यक्ति को अपना मन्त्र न बताना चाहिए क्योंकि मन्त्र खुलने से राज्य के लिए कठिनाई पैदा हो जाती है।[1] मन्त्रिपरिषद् में मन्त्रियों की संख्या आठ कही गई है और उन पदों पर योग्य व्यक्तियों की नियुक्ति पर बड़ा बल दिया गया है। धर्मासन या न्याय करने वाले अधिकारी के गुणों का भी वर्णन किया गया है। पापियों को अपराध के अनुरूप दण्ड देना चाहिए। किसी के दूत का वध नहीं करना चाहिए। दूत, प्रतिहार, शिरोरक्ष, सन्धिविग्रहिक और सेनापति नामक अधिकारियों के गुणों का वर्णन भी किया गया है। इस प्रकार का अमात्यविभाग गुप्त युग के शासन में प्रचलित था।[2] अध्याय 87 में दुर्ग-विधान और उसमें विविध प्रकार की सामग्री एवं व्यक्तियों के संचय का विधान है। इसके बाद अध्याय 88 में राष्ट्र-गुप्ति या जनपद-गुप्ति का विवेचन किया गया है। एक गांव, दस गांव, बीस गांव, सौ गांव और एक सहस्र गांवों की इकाई बनाकर उनके अधिपति नियुक्त करने चाहिए। उनमें जो दोष हों, उनकी सूचना ग्रामिक बड़े अधिकारी को दे। शतग्राम के अधिपति को एक गांव और सहस्र गांवों के अधिपति को एक शाखानगर भृत्ति के लिये दिया जाना चाहिए। ग्राम-शासन को देखने के लिए एक धर्मज्ञ सचिव की नियुक्ति होनी चाहिए। प्रत्येक नगर में एक नगरचिन्तक की नियुक्ति आवश्यक है। बछड़ा जैसे गो का दूध पीता है, वैसे ही राजा को राष्ट्र में कर उगाहना चाहिए। राजा को उचित है कि सार्थवाह या बंजारों के लिए भी उचित नियमों और कराधान की व्यवस्था करे।[3] राजा के कर ग्रहण करने की नीति ऐसी होनी चाहिए, जैसे बछड़ा दूध पीते समय गाय थनों को चोट नहीं पहुँचाता, जैसे शहद लेने वाला मक्खियों के छत्ते को नष्ट नहीं करता, जैसे जोंक जल में रहते हुए जल पी लेती हैं पर पता नहीं चलता। मनु ने यह व्यवस्था की थी कि कोई आपत्ति के बिना किसी से भीख नहीं मांगेगा। राजा का कर्तव्य है कि राष्ट्र में सबके लिए वृत्ति या जीविका का विधान करे और लोगों को ऐसे कार्यों में लगावे जिससे वे अर्थोपार्जन द्वारा स्वतंत्रता से रह सकें।[4] |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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