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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
8. कर्ण पर्व
अध्याय : 27-29
मद्रक यवनों के विषय में ये किंवदन्तियां चलते-चलते ही गाथाओं के रूप में लोक में फैल गई थीं, यह बात स्पष्ट दिखाई पड़ती है। लगभग एक जैसा वर्णन कुछ हेरफेर से 10 या 11 बार दुहराया गया है और उसका ढंग यही है कि एक किसी ब्राह्मण ने ऐसा कहा था, किसी दूसरे ब्राह्मण ने ऐसा कहा था। मैंने धृतराष्ट्र की सभा में ऐसा सुना था, इत्यादि। इन वर्णनों की तालिका इस प्रकार हैः 1. ”मद्र देश कुदेश या पाप का देश है। वहाँ की स्त्रियां, बालक, बूढ़े और तरुण प्रायः खेल में मस्त रहते हैं और वे इन गाथाओं को ऐसे गाते हैं, मानो अध्ययन कर रहे हों। मद्रक दुरात्मा हैं। उनकी तरह की गाथाओं को, जैसा पहले ब्राह्मणों ने राज-सभा में सुनाया था, वे इस प्रकार हैः मद्रक बड़ा मित्र-द्रोही होता है। जो हमारे साथ नित्य शत्रुता का व्यवहार करता है, वही मद्रक है। मद्रक के साथ कभी दोस्ती नहीं हो सकती, क्योंकि वह झूठा, कुटिल और दुरात्मा होता है। दुष्टता की जितनी हद है, वह सब मद्रकों में समझो। उनकी विचित्र प्रथा है कि मां, बाप, बेटे, बेटी, सास और ससुर, भाई, जमाई, पोते और धेवते, मित्र-अतिथि, दास-दासी, जान-पहचान के और अनजान स्त्री और पुरुष सब एक-दूसरे के साथ मिलकर संगत करते हैं। वे शिष्ट व्यक्तियों के घर में इकट्ठे होकर सत्तू की पिण्डियां और उसका घोल पीते हैं और गोमांस के साथ शराब पीकर हंसते और चिल्लाते हैं एवं कामवश होकर स्वेच्छाचार बरतते हैं। उनकी काम से भरी बातें सुनकर जान पड़ता है कि उनमें धर्म का सर्वथा लोप हो गया है। मद्रक के साथ न वैर और न मैत्री करना चाहिए। वह अत्यन्त चलप होता है। उसमें शौच का भाव नहीं, उसे स्पर्श और अस्पर्श का ज्ञान भी नहीं होता। बिच्छू जैसे विष-बुझा डंक मारता है, वैसे ही मद्रक का मेल है। उनकी स्त्रियां शराब के नशे में बुत्त होकर कपड़े फेंककर नाचती हैं, यहाँ तक की असंयत कामाचार से भी नहीं चूकती हैं। हे मद्रक, तू उन्हीं का बेटा है, तू धर्म क्या जाने? जैसे ऊंटनी खड़ी होकर मूतती है, वैसे ही उनकी स्त्रियां भी। वहाँ कांजी (सुमिरक) पीने का बेहद रिवाज है। कांजी की शौकीन स्त्री कहती है कि मैं पुत्र दे दूंगी, पर कोई मुझसे कांजी न मांगे। वहाँ की स्त्रियां लम्बे-चौड़े शरीर वाली, ऊनी वस्त्र पहनने वाली, डटकर भोजन करने वाली, निर्लज्ज और अपवित्र होती हैं, ऐसा मैंने सुना है। उनके विषय में और भी कुछ कहा जा सकता है। मद्रक धर्म को क्या जानें? वे पापी देश में उत्पन्न हुए म्लेच्छ हैं। हे मद्रराज, फिर यदि तुमने कुछ कहा तो मैं गदा से तुम्हारा सिर तोड़ दूंगा।” कर्ण के उत्तर में शल्य ने कौवे और हंस की एक कहानी सुनाई, जिसमें कौवा कुजात होकर भी अपनी बड़ाई हांकता है। अन्त में वह अपनी उड़ान के करतब दिखाता हुआ समुद्र में डूबने लगा तो उसके माफी मांगने पर हंस ने उसे उठाकर किनारे पर रख दिया। इसके उत्तर में अध्याय 29 में कर्ण ने पहले तो सच्चे मित्र के विषय में कुछ सुन्दर श्लोक सुनाए, किन्तु इतना अंश यहाँ स्पष्ट जोड़ा गया है और 30वें अध्याय का मेल पूर्व के 27वें अध्याय से मिल जाता है। फिर मद्रकों के विषय की गाथाओं का तांता शुरू हो जाता है, जो इस प्रकार हैः |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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