विषय सूची
भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
6. भीष्म पर्व
अध्याय : 10
भीष्म पर्व के आरम्भ में 5 अध्यायों में उन उत्पात और निमित्तों की सूची है, जो युद्ध के रूप में होने वाले भारी विनाश के सूचक थे। इस प्रकार के अपशकुन, उत्पात और दुर्निमित्तों के सम्बन्ध में विश्वास प्राचीन काल से चला आता रहा है। न केवल इस देश में, बल्कि अन्य देशों में भी कुछ इस प्रकार की मान्यताएं प्रचलित थी। प्रकृति के कार्य कलापों में या मानव-जीवन में जो बंधी हुई स्वाभाविक पद्धति है, उसका उल्लंघन, विपर्यय या विनाशकारी चक्र इन निमित्तों के मूल में पाया जाता है। सूर्य, चन्द्र, ग्रह, वायु, नदी, पर्वत, वृक्ष-वनस्पति, पुष्प-लता, पशु-पक्षी और मनुष्य, ये सब विश्व के विराट विधान के अंग हैं, जो सबके लिए एक जैसा है। उसमें होने वाली उलटफेर सूचित करती है कि भारी विपत्ति की आशंका है। महाभारत के युद्ध को इसी दृष्टि से देखा गया। इस युद्ध में भारतीय सभ्यता ने अपनी बहुत-सी उपलब्धियां खो दीं। आश्चर्य यही है कि इतने भारी विनाश के बाद भी यह संस्कृति किसी तरह बची रह गई। रामायण के द्वारा जिन आदर्शों को देश ने पाया था, महाभारत में उनका कंकाल दिखाई पड़ता है। यह बहुत ही भीषण और भयंकर अवस्था थी। राष्ट्र की आत्मा जैसे घायल हो चुकी थी। युद्ध तो केवल बाहरी लक्षण था। मानव जब इस प्रकार दुर्मद हो जाते हैं तो युद्ध अनिवार्य हो उठता है। वैसा ही द्वापर के गाढ़े समय में हुआ, जिसका रोमांचकारी वर्णन आगे के पर्वों में है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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