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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
6. भीष्म पर्व
अध्याय : 10
यहाँ दो नाम विशेष ध्यान देने योग्य हैं, अन्तर्गिरि और बहिर्गिरि। अन्तर्गिरि हिमालय की भीतरी श्रृंखला का महाहिमवंत का पुराना नाम था, जिसमें 20 सहस्र फुट या उससे ऊंची चोटियां हैं, जैसे कंचनजंघा, नन्दादेवी, धौलागिरि, बदरी-केदार आदि। बहिर्गिरि हिमालय के बाहरी श्रृंखला की संज्ञा थी, जिसे पाली में चुल्लहिमवंत भी कहते थे। इसमें हिमालय की 5 से लेकर 10 सहस्र फुट तक ऊंची चोटियां आती हैं, जैसे- मसूरी, नैनीताल, शिमला आदि। प्राचीन काल में हिमालय के इन दोनों भागों की अलग-अलग पहचान की जाती थी। इस समय बहिर्गिरि प्रदेश में किरात जाति का और अन्तर्गिरि भाग में भोट जाति का निवास है। सम्भवतः यही स्थिति प्राचीन काल में भी थी। इन दोनों देशों के निवासी क्रमशः बहिर्गिर्य और अन्तर्गिर्य कहे गए हैं। हिमालय का एक तीसरा भाग भी है, जिसे आजकल तराई-भाबर कहते हैं और जो प्राचीन परिभाषा में उपगिरि कहलाता था। यहाँ उसका नाम नहीं है, किन्तु पाणिनि की अष्टाध्यायी[1] में और सभापर्व[2] में आया है। 5. विन्ध्यपृष्ठ के जनपद
उत्तर में दक्षिण की ओर चलते हुए बीच के भू भाग की संज्ञा विन्ध्यपृष्ठ थी। पुराणों में इस प्रदेश के जनपदों को विन्ध्यपृष्ठाश्रयी कहा है। इनमें ये नाम उल्लेखनीय हैं - बघेलखंड का बड़ा भाग करूष जनपद था, जहाँ अनेक जंगली जातियां पहले और आज भी बसती हैं। ‘करूष’ के दक्षिण की ओर मेकल (अमरकंटक) जनपद था, जो नर्मदा और शोण (सोन) की उद्गम-भूमि थी। पश्चिम की ओर पूर्वी मालवा का भू भाग, जहाँ धसान नदी बहती है, प्राचीन काल का दशार्ण जनपद था। इसके कुछ उत्तर-पश्चिम में निषद जनपद था, जहाँ इस समय नलकच्छ या नरवरगढ़ है। नर्मदा के तट पर निमाड़ जिले का भू-भाग प्राचीन काल में ‘अनूप’ कहलाता था, जिसकी राजधानी ‘माहिष्मती’ और ‘ओंकार-मान्धाता’ थी। इसके कुछ उत्तर में अवन्ति जनपद (आधुनिक मालवा) था, जिसकी राजधानी उज्जयिनी थी। इस प्रकार यमुना के दक्षिणी प्रस्रवण-क्षेत्र से लेकर नर्मदा के कोठे तक का भू प्रदेश इन 6 बड़े जनपदों में बंटा हुआ था। उनमें पूर्व से पश्चिम की ओर चलते हुए करूष, दशार्ण और निषद इन तीन जनपदों की पट्टी थी ओर उनके नीचे क्रमशः मेकल, अनूप और अवन्ति नामक जनपदों की दुहरी पेटी फैली हुई थी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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