विषय सूची
भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
4. विराट पर्व
अध्याय : 31-36
42. गोग्रहण
उत्तर को वृक्ष पर चढ़ाकर उसने उन अस्त्रों को उतरवाया और उत्तर के आश्चर्यचकित होकर पूछने पर उनका परिचय दिया कि ये पाण्डवों के धनुष बाण हैं। उत्तर ने और भी अचरच से कहा ‘‘पाण्डव तो पासों से अपना राज्य खोकर न जाने कहाँ चले गए, और द्रौपदी भी उन्हीं के साथ वन में न जाने कहाँ चली गई!’’ अर्जुन ने उसे दिलासा देने के लिए रहस्य खोल दिया और कहा, ‘‘मैं ही अर्जुन हूँ।’’ उत्तर ने कुछ पहचान जाननी चाही तो अर्जुन ने अपने दस नामों की सूची (धनंजय, विजय, श्वेतवाहन, फाल्गुन, किरीटी, बीभत्सु, सव्यसाची, अर्जुन, जिष्णु, कृष्ण) और उनकी हेतुयुक्त व्याख्या कही। इस सूची से ज्ञात होता है कि कृष्ण अर्जुन का जन्म-नाम था।[1] नर-नारायण की कल्पना विकसित होने पर यह सूची भागवतों द्वारा सजाई गई ज्ञात होती है। सुनकर उत्तर ने कहा, ‘‘मेरा नाम भूमिंजय है। मुझे उत्तर भी कहते है। हे पार्थ, मैं आपको प्रणाम करता हूँ। मैंने अज्ञान से जो कहा हो, उसे क्षमा करें।’’ अर्जुन ने कहा, ‘‘हे वीर, मैं प्रसन्न हूँ। इन सब अस्त्रों को रथ में बान्ध लो। मैं अभी तुम्हारे शत्रुओं की भगाता हूँ। तुम स्वस्थ और निर्भय बनो। तब अपने भंगीयुक्त केशों को श्वेत वस्त्रों से बांधकर गांडीव पर प्रत्यंचा चढ़ाकर अर्जुन उसे टंकारने लगे। फिर उन्होंने अपने शंख का घोष किया। उसे सुनते ही द्रोणाचार्य पहचान गए– ‘‘रथ का यह शब्द, शंख का यह घोष और भूमि का इस प्रकार कम्पन यह अर्जुन के सिवा दूसरे का काम नहीं।’’ उसी समय दुर्योधन ने भीष्म-द्रोणादि से कहा, ‘‘हे आचार्य, कर्ण ने जो बार-बार मुझसे कहा है, वही आपसे कह रहा हूँ। बारह वर्ष वन में बिताकर पाण्डवों को एक वर्ष अज्ञात रहना है। उनका वह तेरहवां वर्ष अभी पूरा नहीं हुआ। यदि अर्जुन उससे पहले ही आ गया है तो फिर उन्हें बारह वर्ष के लिए जाना होगा। या तो लोभवश पाण्डवों को ही अवधि का ठीक विचार नहीं रहा या हमें ही भ्रांति हो रहीं है। अवधि की कमीवेशी को भीष्म ठीक कह सकते हैं। कभी सोचा कुछ और जाता है, पर होता कुछ और है। त्रिगर्त ने जब मत्स्यों की छेड़छाड़ की मुझसे बहुत शिकायत की, तब हमने उसे सहायता का वचन देकर कहा कि सप्तमी के तीसरे पहर तुम मत्स्यों की गाएं पकड़ लेना, हम अष्टमी को प्रातः पहुँच जायंगे। पर यहाँ न गाएं हैं और न वे हैं। क्या वे हार गए या हमसे छल करके मत्स्यों से मिल गए या उनसे निपटकर मत्स्य-सेना हमसे लड़ने के लिए आ रही है और उन्हीं में से कोई महावीर आगे आ पहुँचा है? यदि यह विराट हो या स्वयं अर्जुन भी हो, तो भी हमें लड़ना ही है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ कृष्ण इत्येव दशमं नाम चक्रे पिता मम 39।20
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