विषय सूची
भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
1. आदि पर्व
अध्याय : 2
2. कथा-सार तथा पर्व-सूची
ज्ञात होता है कि किसी समय जब महाभारत का नवीन संस्करण तैयार हुआ तब 100 पर्वों वाले विभाग के स्थान में 18 पर्वों वाला विभाग अधिक प्रसिद्ध हो गया। हमारा अनुमान है कि महाभारत की पाठ-परंपरा में गुप्तकाल में ऐसा सम्भव हुआ होगा। गुप्तकाल में कई महत्त्वपूर्ण प्रकरण महाभारत में एवं अन्य पुराणों में भी यथास्थान सन्निविष्ट कर दिये गए। बाणभट्ट ने महाभारत की कथा के विषय में लिखा है कि उस समय तीनों लोकों में व्याप्त हो रही थीः
ऊपर लिखी हुई 100 पर्वों की सूची में आदिवंशावतारण नामक पर्व छठवां है। इसी से पहले पर्व का आदि पर्व नाम रखा गया। इससे पूर्व पांच पर्व और हैं, जिनमें पर्वानुक्रमणी-पर्व और पर्वसंग्रह-पर्व तो एक प्रकार से महाभारत की विषय-सूचियां ही हैं। पौष्य, पौलोम और आस्तीक, ये तीन पर्व स्पष्ट ही आदिपर्व की मूल कुरु-पाण्डव-कथा के पहले जोड़े गए हैं। पौष्य-पर्व में उत्तंक का माहात्मय, पौलोम-पर्व में भृगुवंश का विस्तार और आस्तीक-पर्व में गरुड़ और नागों के जन्म की एवं जन्मेजय के सर्प-सत्र की कथाएं हैं। सौभाग्य से अनुक्रमणी-पर्व के बाद एक कोने में यह किंवदन्ती पड़ी रह गई है कि प्राचीन काल में महाभारत का आरम्भ आदि पर्व के तीन स्थलों से माना जाता था- किसी के मत में मन्वादी अर्थात मनुप्रतिपादित हैमाण्ड सृष्टि वर्णन वाले श्लोकों से[2]; किसी के मत में आस्तीक पर्व[3] से; और किसी के मत में वसुउपरिचर की कथा[4] से।
पहले अनुक्रमणी-पर्व और दूसरे पर्व-संग्रह-पर्व में सब मिलाकर महाभारत की तीन विषय-सूचियां मिलती हैं। इनमें से ‘जब मैंने सुना.... तब विजय की आशा नहीं रही,’ ये श्लोक भाषा, छन्द आदि की विशेषताओं के कारण सबसे प्राचीन वेदव्यास-कृत मूल स्तर के ज्ञात होते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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