विषय सूची
भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
3. आरण्यक पर्व
अध्याय : 227-240
35. दुर्योधन की घोष-यात्रा
उसकी यह बात सुनकर दुःशासन रोने लगा। उसने, कहा, ‘‘ऐसा कदापि न होगा। पर्वतों के साथ भूमि चाहे विदीर्ण हो जाय, आकाश के चाहे टुकड़े हो जायँ समुद्रों का जल चाहे सूख जाय, अग्नि चाहे अपनी उग्रता छोड़ दे, तुम्हारे बिना मैं इस पृथवी का शासन कभी न करूँगा।’’ यह कहते हुए वह बड़े भाई के पैरों में चिपटकर धाड़ मारकर रोने लगा। कर्ण ने उनकी यह दशा देखकर स्थिति का सम्हालते हए कहा, ‘‘अरे, क्या बच्चों की-सी बातें करते हो? शोक करने से किसी का व्यसन दूर हुआ है? धैर्य धारण करो। पांण्डवों ने तुम्हारे साथ उपकार क्या किया? वे तुम्हारे राज्य में बसते हैं। तुम्हारी प्रजा हैं, तुम्हें छुड़ाकर उन्होंने अपने कर्तव्य का ही पालन किया। तुम भी तो उनका पालन करते हो, जिससे वे बेखटके रह रहे हैं। तुम भूख-हड़ताल करोगे तो तुम्हारे भाइयों की क्या हालत होगी? उठो और सबको ढाढ़स दो। आज तुम्हारी कम-हिम्मती मुझे जान पड़ीं। इसमें क्या आश्चर्य जो तुम्हारे जैसे हीनसत्त्व व्यक्ति को छुड़ाने की आवश्यकता पाण्डवों को पड़ी? पाण्डवों ने संयोग से तुम्हें छुड़ा दिया, सो इससे क्षोभ क्या? क्षोभ तो इस बात का है कि वे तुम्हारे राज्य में रहकर भी तुम्हारी सेना में नहीं आते। पाण्डवों को देखो, उनकी क्या अवस्था हुई। किन्तु वे सत्त्वशील हैं। भूखे मरने की बात नहीं सोचते। क्यों अपनी हँसी कराते हो? उठो। यदि मेरा कहा न, मानोगे तो मैं भी यहीं धरना दे दूँगा और तुम्हारे बिना जीवित न रहूँगा।’’ तब शकुनि ने भी दुर्योधन को समझाया और अन्त में उसे अपना विचार छोड़ देना पड़ा। यहाँ किसी लेखक ने एक ऊलजलूल कहानी और रख दी है कि जब दुर्योधन भूखा मरने पर उतारु होकर किसी तरह न माना तो दैत्य-दानवों ने सोचा कि इसके मरने से हमारा काम बिगड़ जायेगा और उन्होंने अथर्व के मंत्रों से एक कृत्या का निर्माण किया और उसके द्वारा दुर्योधन को पाताल में पकड़ मंगाया एवं समझा-बुझाकर उसके विचार को पलटा। स्वयं कथाकार ने इतना स्वीकार किया है कि दुर्योधन को भी यह गढ़न्त लीला स्वप्न-सी लगी। जब कौरव हस्तिनापुर लौट आये तब भीष्म ने भी दुर्योधन से चुटकी ली, ‘‘मैंने तो पहले ही जाने का निषेध किया था, पर तुमने मेरी बात न मानी। धर्मज्ञ पाण्डवों ने तुम्हे छुडा़ दिया। इससे क्या तुम्हें लज्जा नहीं आती? तुम्हारा बली सूतपूत्र तुम्हें रोते-चिल्लाते छोड़कर गन्धर्वों के सामने पलायन कर गया।’’ भीष्म के ये वाक्य सुनकर दुर्योधन ठठाकर हंसा और उठकर चल दिया। उसके साथ कर्ण आदि भी उठ गये। भीष्म भी लजाकर अपने घर चले गये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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