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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
3. आरण्यक पर्व
अध्याय : 134
ब्रह्मोद्य एक विशेष प्रकार के प्रश्न और उत्तर थे, जो यक्ष-पूजा के आवश्यक अंग थे। इस प्रकार के प्रश्नोत्तर या बूझने को लोक के यक्ष-प्रश्न कहते थे। यजुर्वेद का ब्रह्मोद्य[1] और महाभारत की यक्ष-युधिष्ठिर प्रश्नोत्तरी[2] एक ही साहित्यिक शैली के अंग हैं। और दोनों में कई मंत्र और श्लोक समान हैं। यक्ष-पूजा के समय इस प्रकार तड़ातड़ पूछे जाने वाले प्रश्नों और उत्तरों की झड़ी लग जाती थी। जनक ने कहा, ‘‘छः नाभि, बारह अक्ष, चौबीस पोर, तीन सौ आठ अरे, इनका जो जाने अर्थ, वहीं कवि समर्थ।’’ अष्टावक्र ने पट उत्तर दिया, ‘‘छः नाह, बारह पुट्ठी, तीन सौ आठ अरे, इनका सदा घूमता चक्का, करे तुम्हारी सब दिन रच्छा।’’ जनक ने फिर प्रश्न दिया, ‘‘देवों की दो घोड़ियां, मार झपट्टा टूटतीं। किसने उन्हें ग्याभिन किया? ग्याभिन होकर क्या जना?’’ बुद्धि की चकरा देने वाली इस बुझौअल का उत्तर अष्टावक्र ने भी कुछ वैसे ही चकमक दिया, तेरे घर वे कभी न आयं शत्रु के घर सदा दिखायं। अग्नि से जो ग्याभिन हुईं, अग्नि ही वे ब्याती गईं।’’ पहले प्रश्न में कालचक्र के विषय में बूझी गई बुझौअल का उत्तर अष्टावक्र ने यह कह कर दिया कि वह चक्र सदा तुम्हारी रक्षा करे। दूसरे प्रश्न में देवों की दो घोड़ियां प्राण और अपान की दो धाराएं हैं, जो बाज की गति से झपटकर प्रत्येक प्राणी के शरीर में गर्भ के समय प्रवेश करती हैं। वायुरूपी प्राण जिसका सारथी है, ऐसा वातसारथी जीव प्राणापानरूपी शक्तियों को गर्भित करता है अर्थात जीव के शरीर में आने पर ये शक्तियां भी आती हैं। ये आकर उसी जीव को मानो उत्पन्न करती हैं अर्थात प्राणों का आना ही जीव के अस्तित्व का प्रमाण है। ये गुह्य वैदिक अर्थ इन चटपटे प्रश्नोत्तरों से बूझे गए। वैदिक अर्थों के दो प्रश्न पूछकर जनक ने तीसरा प्रश्न लोक-साहित्य की पृष्ठभूमि में कियाः ‘‘कौन सोते हुए आँख नहीं झपता? कौन उत्पन्न होकर भी नहीं हिलता-डुलता? किसके हृदय नहीं हैं? कौन एकदम से बढ़ जाता है?’’ इसके उत्तर में अष्टावक्र ने कहा, ‘‘मछली सोते हुए आँख नहीं झपती। अण्डा उत्पन्न होकर हिलता-डुलता नहीं। पत्थर में हृदय नहीं होता। नदी में एकदम बाढ़ आती है।’’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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