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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
3. आरण्यक पर्व
अध्याय : 50-78
दीन बने हुए नल ने दमयन्ती से कहा, ‘‘हे यशस्विनी, मैं अत्यन्त विपरीत दशा को प्राप्त हो गया हूँ। मेरे लिए भोजन का भी ठिकाना नहीं। तुम मेरी बात सुनो। यह देखो, सामने बहुत-से मार्ग भिन्न-भिन्न दिशाओं में जा रहे हैं। यह विदर्भ का मार्ग है जो अवन्तिपुरी, विन्ध्याचल और पयोष्णी[1] नदी को पार करता हुआ विदर्भ में जाता है। वह देखो, दक्षिण कोशल में जाने का मार्ग है। इन दोनों से उस पार सुदूर दक्षिण में दक्षिणापथ देश को तीसरा मार्ग गया है।’’ यहाँ नल ने जो तीन मार्ग बतलाये हैं, वे ही तीनों मार्ग आज भी भारतीय रेल-पथ ने लिये हैं। काली-सिन्ध और सिन्ध के बीच में प्राचीन निषध जनपद था, जिसकी राजधानी नलपुर आज का नरवर है। इसी प्रदेश में खड़े होकर नल ने तीनों मार्गों का निर्देश किया है। इस स्थान से रतलाम को जाते हुए रेल-पथ के लगभग साथ उतरते हुए पहला मार्ग उज्जैन, वहाँ से विन्ध्या पार करके नर्मदा उतरते हुए खंडवा और वहाँ से ठीक नीचे उतरते हुए वर्तमान रेलमार्ग के साथ ताप्ती पार करते हुए विदर्भ अर्थात अमरावती[2] की ओर जाता है। इसी प्रकार नरवर से पूर्व की ओर चलते हुए बेतवा नदी और उसके आसपास का घना जंगल, जिसका पुराना नाम विन्ध्याटवी था, पार करके बीना, सागर, दमोह, कटनी, सुहागपुर, बिलासपुर का मार्ग दक्षिण कोशल को जाता था। यही महाभारतकार के अनुसार पश्चिम और पूर्व के दो मुख्य यातायात के मार्ग थे। जो विदर्भ मार्ग और कोशल मार्ग कहलाते थे, इन दोनों के बीच में तीसरा दक्षिणापथ मार्ग था जो विन्ध्य की खड़ी हुई पट्टी के पूर्व ग्वालियर के धुर दक्षिण झांसी-बीना और वहाँ से सागर-कटनी होकर जबलपुर की ओर मुड़ता हुआ पुनः उस मार्ग में जा मिलता था, जो आज भी नागपुर से दक्षिण की ओर जाने वाली यातायात की बड़ी धमनी है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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