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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
3. आरण्यक पर्व
अध्याय : 7-13
उद्योग पर्व में भागवतों के इस दार्शनिक तत्त्व को और भी शक्तिशाली सूत्र में कहा गया हैः अर्थात ‘एक ही सत्त्व या चैतन्य नारायण और नर इन दो रूपों में प्रकट हुआ है।’ गुप्त काल में और उससे पूर्व सात्वत, भागवत, नारायणीय, एकान्तिन इत्यादि भागवतों के अनेक भेद थे। उनकी दार्शनिक और धार्मिक विशेषताओं और पारस्परिक विभिन्नताओं का अभी तक कोई अध्ययन नहीं हुआ। महाभारत और गुप्त युग के वैष्णव आगमग्रन्थों के तुलनात्मक अध्ययन से इस विषय पर प्रकाश पड़ने की आशा है। भारत के धार्मिक इतिहास की कितनी ही कड़ियां महाभारत के कथा-प्रवाह और वर्णनों के पीछे छिपी हुई हैं। उनका उद्घाटन ही महाभारत का सच्चा सांस्कृतिक अध्ययन हो सकता है। मोटे तौर पर ऐसा विदित होता है कि भगवान वासुदेव एवं संकर्षण, प्रद्युम्न और अनिरुद्ध की व्यूहात्मक उपासना प्राचीन सात्वतधर्म की विशेषता थी। तूसम से प्राप्त गुप्तकालीन शिलालेख में सात्वत सम्प्रदाय का उल्लेख हुआ है। बाण ने भागवत और पांचरात्रिक इन दो सम्प्रदायों का अलग-अलग वर्णन किया है। इनमें से पहले के सात्वत ही बाण के समय में भागवत कहलाये। वे कृष्ण की बाल-लीलाओं पर अधिक बल देते थे। दूसरे पांचरात्रिकों का सम्बन्ध नर-नारायण की उपासना से अधिक था। शेषशायी विष्णु एवं नृसिंहवराह की कल्पना के साथ उनका विशेष सम्बन्ध था। आगे चलकर ये दोनों एवं और भी वैखानस, एकान्ती, शिखी आदि वैष्णव सब भागवत इस एक शब्द के भीतर विलीन हो गए। उन्हीं का सामूहिक धर्म-ग्रन्थ वर्तमान भागवत है। मूल महाभारत का एक संस्करण पंचरात्रों के प्रभाव के अन्तर्गत भी तैयार किया गया। कृष्ण के पराक्रमों का प्रकरण उसी समय मूल ग्रन्थ में सम्मिलित किया गया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ उद्योग 48।20
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