विषय सूची
भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
2. सभा पर्व
अध्याय : 12-22
आरम्भ (सैनिक पराक्रम) से पारमेष्ठ्य नहीं प्राप्त होता। उसमें तो कुल के मनस्वी लोगों की सम्मति से कार्य करना आवश्यक है। मुझे यह निश्चय प्रतीत होता है कि जरासन्ध के चक्र को तोड़े बिना मैं स्वयं सम्राट के गुण नहीं प्राप्त कर सकता। किन्तु प्रश्न यह है कि अपने स्वार्थ के लिए भीम और अर्जुन को और आपको कैसे भेज दूं? भीम और अर्जुन मेरी आंखें हैं और आप तो मन के समान हैं। दोनों आंखों और मन के बिना जीना भी कोई जीवन है? राजसूय के लिए यह दूसरा झंझट खड़ा करके कहीं ऐसा न हो कि कोई अनर्थ देखना पडे़। अतएव इस कार्य से हाथ खींच लेना ही अच्छा है।” यह सुनकर अर्जुन और कृष्ण दोनों ने युधिष्ठिर को समझाया। अर्जुन ने कहा, “राजा को पराक्रमयुक्त होना चाहिए। वही पूरा क्षत्रिय है, जो विजय की वृत्ति रखता है। समस्त गुण पराक्रम के साथ हैं। यदि राजसूय यज्ञ के लिए जरासन्ध का विनाश करके हम राजाओं को छुड़ा सके तो इससे बढ़कर क्या बात है? शम के इच्छुक मुनियों के लिए काषाय ठीक है। आपके साम्राज्य के लिए हम शत्रुओं से युद्ध करेंगे।” कृष्ण ने अर्जुन की बात का समर्थन करते हुए कहा, “भारत वंश में उत्पन्न कुन्ती के पुत्र के लिए जो विचार उचित है, वह अर्जुन ने कहा है। क्या मृत्यु ने किसी के साथ रात या दिन का समझौता किया है? अयुद्ध से किसी को अमर होते हुए भी नहीं सुना। अतएव जो विधिपूर्वक सुविचारित नीति है, उसी के अनुसार हृदय को संतोष देने वाला कार्य करना चाहिए। हम लोग बिना सेना के मगध में जाकर जरासन्ध के पास तक पहुँच जायेंगे। भीम, अर्जुन और मुझसे एकान्त में मिलकर वह एक के साथ अवश्य युद्ध के लिए तैयार हो जायगा। यदि तुम्हारा हृदय स्वीकार करे, यदि मुझमें तुम्हारा विश्वास हो तो भीम और अर्जुन को मुझे सौंपो; मैं सब ठीक कर लूंगा।” कृष्ण की यह बात सुनकर युधिष्ठिर ने कहा, “आपकी आज्ञा से ही मैंने राजसूय का विचार किया है। जिस प्रकार यह कार्य सिद्ध हो, वैसा करिए। मेरा कार्य जगत का कार्य है।” |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्र.स. | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज