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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
2. सभा पर्व
अध्याय : 5
“हे राजन, क्या तुम्हारे जनपद में ईमानदार, बुद्धिमान और कर्त्तव्य परायण पंच लोग एकत्र होकर जनता का कल्याण करते हैं? राजा को उचित है कि अपने पाटनगर या राजधानी की सुरक्षा का पक्का प्रबन्ध करे। दुर्ग-विधान के जिन उपायों से नगर-गुप्ति की जाती है, उसी विधि से एक-एक गांव की रक्षा-विधि करे, और गांवों की रक्षा-व्यवस्था के द्वारा समस्त जनपद की रक्षा का बन्धन बांधे, और सुरक्षित हुए ग्रामों और जनपद को नगर-रक्षा के साथ संबंधित कर दे। “अपने मंत्रियों के साथ प्रातःकाल दर्शन के लिए सजधज कर आई हुई प्रजा को दर्शन तो देते हो? लालवस्त्र पहने हुए, हाथ में तलवार लेकर बारहबानी-लैस तुम्हारे अंग-रक्षक चारों ओर से तुम्हें घेरकर तुम्हारी सेवा करते हैं या नहीं? जिस प्रकार यमराज प्राणिमात्र के प्रति समव्यवहार करते हैं, वैसे ही तुम भी दंड्य, पूज्य, अप्रिय और प्रिय इन सब में समानता बरतते हो या नहीं? शरीर की व्याधियों को औषध और नियम-पालन से और मन के रोगों को ज्ञानवृद्ध पुरुषों की सेवा से दूर करते हो या नहीं? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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