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ब्रह्म वैवर्त पुराण
श्रीकृष्ण जन्म खण्ड (उत्तरार्द्ध): अध्याय 85
इसके बाद शुद्ध होकर व्याधियुक्त ब्राह्मण होता है; फिर तीर्थों में भ्रमण करने से शुद्ध हो जाता है। जो मानव देवता की उचित पूजा न करके उन्हें अपवित्र नैवेद्य समर्पित करता है, वह असत शूद्र होता है। व्रजेश्वर! जो मिट्टी, भस्म और गोबर के पिण्डों से अथवा बालुका से शिवलिंग का निर्माण करके एक बार भी उसका पूजन करता है, वह कल्पपर्यन्त स्वर्ग में निवास करता है। तत्पश्चात वह भूमि का स्वामी एवं महाविद्वान ब्राह्मण होता है। सौ लिंगों का पूजन करने से मनुष्य भारत वर्ष में राजा होता है। एक हजार लिंगपूजन से उसे निश्चित फल की प्राप्ति होती है। वह चिरकाल तक स्वर्ग में निवास करके अंत में भारत भूमि पर राजेंद्र होता है। दस हजार लिंग-पूजन से राजाधिराज और एक लाख लिंग-पूजन से चक्रवर्ती सम्राट हो जाता है। अत्यंत भक्तिपूर्वक पूजन करने से उसका अतिरिक्त फल मिलता है। तीर्थस्नान, दान, ब्रह्मभोज, नारायणार्चन आदि कर्म से वह ब्राह्मणवंश में पैदा होता है, फिर अतिरिक्त तपस्या के प्रभाव से वह ब्राह्मण विद्वान तथा जितेंद्रिय वैष्णव हो जाता है। फिर अनेक जन्मों के पुण्यफल से वह भारत भूमि पर जन्म लेता है। उसके चरण-स्पर्श से ही वसुन्धरा तत्काल पवित्र हो जाती है। ऐसे जीवन्मुक्त वैष्णव तीर्थों को तीर्थत्व प्रदान करते हैं और अपने हजारों पूर्वजों को पावन बना देते हैं। ऐसा श्रुति में सुना गया है। जो अत्यंत क्रूर, दुराचारी तथा देव-ब्राह्मण का द्वेषी होता है; वह हजार वर्षों तक जहरीला साँप होता है। व्रजनाथ! जो नारी कुलटा स्त्रियों के लम्पटों की दूती होती है; वह सौ वर्षों तक कालसूत्र नरक में रहकर फिर छिपकली होती है। एक जन्म तक छिपकली होने के बाद तीन जन्मों तक हरिण, एक जन्म में भैंसा, एक जन्म में भालू, एक जन्म में गैंडा और तीन जन्मों तक सियार की योन में उत्पन्न होती है। जो दूसरे के तड़ाग का तथा भलीभाँति बोयी हुई दूसरे की खेती का दान करता है, वह मगर की जाति में उत्पन्न होकर तीन जन्मों तक कछुआ होता है। एकादशी-व्रत को न रखने वाला ब्राह्मण पतित हो जाता है। फिर अपने आहार से दूना भोजन दान करके वह उस पाप से मुक्त होता है। जो अधम मानव मेरे जन्मदिन-भाद्रपदमास की कृष्णाष्टमी को भोजन करता है, उसे निःसंदेह त्रिलोकी में होने वाली सभी पापों को भोगना पड़ता है। इस प्रकार सभी नरकों का भोग करने के पश्चात वह चाण्डाल होता है। इसी तरह शिवरात्रि और श्रीरामनवमी के दिन भी समझना चाहिए। जो शक्तिहीन होने के कारण उपवास करने में असमर्थ हो, उसे हविष्यान्न का भोजन करना चाहिए और मेरा पुण्य महोत्सव संपन्न करके ब्राह्मणों को भी भोजन कराना चाहिए। इससे वह पापमुक्त होकर शुद्ध हो जाता है। इसके लिए यत्नपूर्वक मेरे नामों का संकीर्तन करना चाहिए। जो देव-मूर्तियों की चोरी करता है, वह सात जन्मों अंधा, दरिद्र, रोगग्रस्त, बहरा और कुबड़ा होता है। जो नराधम ब्राह्मण और देव प्रतिमा को देखकर उन्हें नमस्कार नहीं करता; वह जब तक जीता है तब तक अपवित्र यवन होता है। जो ब्राह्मण को आया हुआ देखकर उठकर स्वागत नहीं करता; वह निश्चित रूप से महापापी होता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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