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ब्रह्म वैवर्त पुराण
श्रीकृष्णजन्मखण्ड: अध्याय 4
विरजा नदी के बाद देवताओं ने सब कुछ सूना ही देखा। वह अद्भुत गोलोक उत्तम रत्नों से निर्मित तथा वायु के आधार पर स्थित था। श्रीराधिका की आज्ञा का अनुसरण करते हुए परमेश्वर श्रीकृष्ण की इच्छा से उसका निर्माण हुआ है। वह केवल मंगल का धाम है और सहस्रों सरोवरों से सुशोभित है। मुने! देवताओं ने वहाँ अत्यन्त मनोहर नृत्य तथा सुन्दर ताल से युक्त रमणीय संगीत देखा, जहाँ श्रीराधा-कृष्ण के गुणों का अनुवाद हो रहा था। उस अमृतोपम गीत को सुनते ही वे देवता मूर्च्छित हो गये। फिर क्षणभर में सचेत हो मन-ही-मन श्रीकृष्ण का चिन्तन करते हुए उन्होंने स्थान-स्थान पर परम आश्चर्यमय मनोहर दृश्य देखे। नाना प्रकार के वेश धारण किये समस्त गोपिकाएँ उनके दृष्टिपथ में आयीं। कोई अपने हाथों से मृदंग बजा रही थीं तो किन्हीं के हाथों से वीणा-वादन हो रहा था। किन्हीं के हाथ में चँवर थे तो किन्हीं के करताल। किन्हीं के हाथों में यन्त्रवाद्य शोभा पा रहे थे। कितनी ही रत्नमय नूपुरों की झनकार फैला रही थीं। बहुतों की रत्नमयी काञ्ची बज रही थी, जिसमें क्षुद्रघंटिकाओं के शब्द गूँज रहे थे। किन्हीं के माथे पर जल से भरे घड़े थे, जो भाँति-भाँति के नृत्य के प्रदर्शन का मनोरथ लिये खड़ी थीं। नारद! कुछ दूर और आगे जाने पर उन्होंने बहुत-से आश्रम देखे, जो राधा की प्रधान सखियों के आवास स्थान थे। वे रूप, गुण, वेष, यौवन, सौभाग्य और अवस्था में एक-दूसरी के समान थीं। श्रीराधा की समवयस्का सखियाँ तैंतीस गोपियाँ हैं, जिनकी वेशभूषा अनिर्वचनीय है। उनके नाम सुनो– सुशीला, शशिकला, यमुना, माधवी, रति, कदम्बमाला, कुन्ती, जाह्नवी, स्वयंप्रभा, चन्द्रमुखी, पद्ममुखी, सावित्री, सुधामुखी, शुभा, पद्मा, पारिजाता, गौरी, सर्वमंगला, कालिका, कमला, दुर्गा, भारती, सरस्वती, गंगा, अम्बिका, मधुमती, चम्पा, अपर्णा, सुन्दरी, कृष्णप्रिया, सती, नन्दिनी और नन्दना– ये सब-की-सब समान रूपवाली हैं। इनके शुभ्र आश्रम रत्नों और धातुओं से चित्रित हैं। नाना प्रकार के चित्रों से चित्रित होने के कारण वे अत्यन्त मनोहर प्रतीत होते हैं। उनके शिखर बहुमूल्य रत्नमय कलश-समूहों से जाज्वल्यमान हैं। उत्तम रत्नों द्वारा उनकी रचना हुई है। गोलोक ब्रह्माण्ड से बाहर और ऊपर है। उसके ऊपर दूसरा कोई लोक नहीं है। ऊपर सब कुछ शून्य ही है। वहाँ तक सृष्टि की अन्तिम सीमा है। सात रसातलों से भी नीचे सृष्टि नहीं है, रसातलों से नीचे जल और अन्धकार है, जो अगम्य और अदृश्य है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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