ब्रह्म वैवर्त पुराण
प्रकृतिखण्ड : अध्याय 44-46
जरत्कारु, जगद्गौरी, मनसा, सिद्धयोगिनी, वैष्णवी, नागभगिनी, शैवी, नागेश्वरी, जरत्कारुप्रिया, आस्तीकमाता, विषहरी और महाज्ञानयुता– इन बारह नामों से विश्व इनकी पूजा करता है। जो पुरुष पूजा के समय इन बारह नामों का पाठ करता है, उसे तथा उसके वंशज को भी सर्प का भय नहीं हो सकता।[1] जिस शयनागार में नागों का भय हो, जिस भवन में बहुतेरे नाग भरे हों, नागों से युक्त होने के कारण जो महान दारुण स्थान बन गया हो तथा जो नागों से वेष्टित हो, वहाँ भी पुरुष इस स्तोत्र का पाठ करके सर्पभय से मुक्त हो जाता है– इसमें कोई संशय नहीं है। जो नित्य इसका पाठ करता है, उसे देखकर नाग भाग जाते हैं। दस लाख पाठ करने से यह स्तोत्र मनुष्यों के लिये सिद्ध हो जाता है। जिसे यह स्तोत्र सिद्ध हो गया, वह विष-भक्षण करने तथा नागों को भूषण बनाकर नाग पर सवारी करने में भी समर्थ हो सकता है। वह नागासन, नागतल्प तथा महान सिद्ध हो जाता है। मुनिवर! अब मैं देवी मनसा की पूजा का विधान तथा सामवेदोक्त ध्यान बतलाता हूँ, सुनो। ‘भगवती मनसा श्वेतचम्पक-पुष्प के समान वर्णवाली हैं। इनका विग्रह रत्नमय भूषणों से विभूषित है। अग्नि शुद्ध वस्त्र इनके शरीर की शोभा बढ़ा रहे हैं। इन्होंने सर्पों का यज्ञोपवीत धारण कर रखा है। महान ज्ञान से सम्पन्न होने के कारण प्रसिद्ध ज्ञानियों में भी ये प्रमुख मानी जाती हैं। ये सिद्धपुरुषों की अधिष्ठात्री देवी हैं। सिद्धि प्रदान करने वाली तथा सिद्धा हैं; मैं इन भगवती मनसा की उपासना करता हूँ।’ इस प्रकार ध्यान करके मूलमन्त्र से भगवती की पूजा करनी चाहिये। अनेक प्रकार के नैवेद्य तथा गन्ध, पुष्प और अनुलेपन से देवी की पूजा होती है। सभी उपचार मूलमन्त्र को पढ़कर अर्पण करने चाहिये। मुने! इनके मूलमन्त्र का नाम है- ‘मूल कल्पतरु’– यह सुसिद्ध मन्त्र है। इसमें बारह अक्षर हैं। इसका वर्णन वेद में है। यह भक्तों के मनोरथ को पूर्ण करने वाला है। मन्त्र इस प्रकार है- ऊँ ह्रीं क्लीं ऐं मनसादेव्यै स्वाहा। पाँच लाख मन्त्र जप करने पर यह मन्त्र सिद्ध हो जाता है। जिसे इस मन्त्र की सिद्धि प्राप्त हो गयी, वह धरातल पर सिद्ध है। उसके लिये विष भी अमृत के समान हो जाता है। उस पुरुष की धन्वन्तरि से तुलना की जा सकती है। ब्रह्मन! जो पुरुष आषाढ़ की संक्रान्ति के दिन ‘गुडा’ (कपास या सेंहुड़) नामक वृक्ष की शाखा पर यत्नपूर्वक इन भगवती मनसा का आवाहन करके भक्तिभाव के साथ पूजा करता है तथा मनसा पंचमी को उन देवी के लिये बलि अर्पण करता है, वह अवश्य ही धनवान, पुत्रवान और कीर्तिमान होता है। महाभाग! पूजा का विधान कह चुका। अब धर्मदेव के मुख से जैसा कुछ सुना है, वह उपाख्यान कहता हूँ, सुनो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ जरत्कारुर्जगद्नौरी मनसा सिद्धयोगिनी। वैष्णवी नागभगिनी शैवी नागेश्वरी तथा ।।
जरत्कारुप्रियाऽऽस्तीकमाता विषहरीति च। महाज्ञानयुता चैव सा देवी विश्वपूजिता ।।
द्वादशैतानि नामानि पूजाकाले तु यः पठेत्। तस्य नागभयं नास्ति तस्य वंशोद्भवस्य च ।।-(प्रकृतिखण्ड 45। 15-17)
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