- महाभारत भीष्म पर्व में श्रीमद्भगवद्गीता पर्व के अंतर्गत 35वें अध्याय में 'कृष्ण और संजय द्वारा विश्वरूप का वर्णन' दिया हुआ है, जो इस प्रकार है[1]-
विषय सूची
कृष्ण द्वारा अर्जुन के समक्ष विश्वरूप का वर्णन करना
संबंध- परम श्रद्धालु और परम प्रेमी अर्जुन के इस प्रकार प्रार्थना करने पर तीन श्लोकों में भगवान अपने विश्वरूप का वर्णन करते हुए उसे देखने के लिये अर्जुन को आज्ञा देते हैं- श्रीभगवान बोले- हे पार्थ! अब तू मेरे सैकड़ों-हजारों नाना प्रकार के और नाना वर्ण तथा नाना आकृति वाले अलौकिक रूपों को देख। हे भरतवंशी अर्जुन! मुझ में आदित्यों को अर्थात अदिति के द्वादश पुत्रों को, आठ वसुओं को, एकादश रुद्रों को, दोनों अश्विनी कुमारों को और उन्चास मरुद्गणों को देख[2] तथा और भी बहुत-से पहले न देखे हुए आश्चर्यमय रूपों को देख। हे अर्जुन! अब[3] इस मेरे शरीर में एक जगह स्थितचराचरसहित सम्पूर्ण जगत को देख[4] तथा और भी जो कुछ देखना चाहता हो सो देख[5][1]
अर्जुन को विश्वरूप के दर्शन कराने का संजय द्वारा वर्णन
संबंध-इस प्रकार तीन श्लोकों में बार-बार अपना अद्भुत रूप देखने के लिये आज्ञा देने पर भी जब अर्जुन भगवान के रूप को नहीं देख सके, तब उसके न देख सकने के कारण को जानने वाले अन्तर्यामी भगवान अर्जुन को दिव्यदृष्टि देने के इच्छा करके कहने लगे- परंतु मुझको तू इन अपने प्राकृत नेत्रों द्वारा देखने में नि:संदेह समर्थ नहीं है; इसी से मैं तुझे दिव्य अर्थात अलौकिक चक्षु देता हूं, उससे तू मेरी ईश्वरीय योगशक्ति को[6] देख। संबंध- अर्जुन को दिव्य दृष्टि भगवान ने जिस प्रकार का अपना दिव्य विराट स्वरूप दिखलाया था, अब पांच श्लोकों द्वारा संजय उसका वर्णन करते हैं-
संजय बोले- हे राजन! महायोगेश्वर और सब पापों के नाश करने वाले भगवान ने[7] इस प्रकार कहकर उसके पश्चात् अर्जुन को परम ऐश्वर्ययुक्त दिव्य स्वरूप दिखलाया।[1] अनेक मुख और नेत्रों से युक्त,[8] अनेक अद्भुत दर्शनों वाले,[9] बहुत-से दिव्य भूषणों से युक्त[10] और बहुत-से दिव्य शस्त्रों को हाथों में उठाते हुए,[11] दिव्य माला और वस्त्रों को धारण किये हुए[12] और दिव्य गन्ध का सारे शरीर में लेप किये हुए, सब प्रकार के आश्चर्यों से युक्त, सीमारहित और सब ओर मुख किये हुए विराट स्वरूप परमदेव परमेश्वर को अर्जुन ने देखा। आकाश में हजार सूर्यों के एक साथ उदय होने से उत्पन्न जो प्रकाश हो, वह भी उस विश्वरूप परमात्मा के प्रकाश के सदृश कदाचित ही हो[13]। पाण्डुपुत्र अर्जुन ने उस समय अनेक प्रकार से विभक्त अर्थात पृथक-पृथक सम्पूर्ण जगत को देवों के देव श्रीकृष्ण भगवान के उस शरीर में एक जगह स्थित देखा।[14] उसके अनंतर वह आश्चर्य से चकित और पुलकित शरीर अर्जुन[15] प्रकाशमय विश्वरूप परमात्मा को श्रद्धा-भक्तिसहित सिर से प्रणाम करके हाथ जोड़कर बोला।[16][17]
टीका टिप्पणी व संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 35 श्लोक 4-9
- ↑ इनका नाम लेकर भगवान ने सभी देवताओं को अपने विराट रूप में देखने के लिये अर्जुन को आज्ञा दी है। इनमें से आदित्य और मरुद्गणों की व्याख्या गीता के दसवें अध्याय के इक्कीसवें श्लोक में तथा वसु और रुद्रों की तेईसवें में की जा चुकी है। इसलिये यहाँ उसका विस्तार नहीं किया गया है। अश्विनी कुमार दोनों भाई देव-वैद्य हैं। ये दोनों सूर्य की पत्नी संज्ञा से उत्पन्न माने जाते हैं (विष्णुपुराण 3।2।7, अग्निपुराण 273।4)। कहीं इनको कश्यप के औरस पुत्र और अदिति के गर्भ से उत्पन्न (वाल्मीकीय रामायण अरण्य. 14।14) तथा कहीं ब्रह्मा के कानों से उत्पन्न भी माना गया है (वायुपुराण 65।57) कल्पभेद से सभी वर्णन यथार्थ हैं।
- ↑ इससे भगवान ने यह भाव दिखलया है कि तुमने मेरे जिस रूप के दर्शन करने की इच्छा प्रकट की है उसे दिखलाने में जरा भी विलम्ब नहीं कर रहा हूं, इच्छज्ञ प्रकट करते ही मैं अभी दिखला रहा हूँ।
- ↑ पशु, पक्षी, कीट, पतंग और देव, मनुष्य आदि चलने-फिरने वाले प्राणियों को ‘चर’ कहते हैं तथा पहाड़, वृक्ष आदि एक जगह स्थिर रहने वालों को ‘अचर’ कहते हैं। ऐसे समस्त प्राणियों के तथा उनके शरीर, इन्द्रिय, भोगस्थान और भोगसामग्रियों के सहित समस्त ब्रह्माण्ड का वाचक यहाँ ‘चराचरसहित’ सम्पूर्ण जगत’ शब्द है। इससे भगवान ने अर्जुन को यह बतलाया है कि इसी मेरे शरीर के एक अंश में तुम समस्त जगत को स्थित देखो। अर्जुन को भगवान ने गीता के दसवें अध्याय के अंतिम श्लोक में जो यह बात कही थी कि मैं इस समस्त जगत को एक अंश में धारण किये स्थित हूं, उसी बात को यहाँ उन्हें प्रत्यक्ष दिखला रहे हैं।
- ↑ इस कथन से भगवान ने यह भाव दिखलाया है कि इस वर्तमान सम्पूर्ण जगत को देखने के अतिरिक्त और भी मेरे गुण, प्रभाव आदि के द्योतक कोई दृश्य, अपने और दूसरों के जय-पराजय के दृश्य अथवा जो कुछ भी भूत, भविष्य और वर्तमान की घटनाएं देखने की तुम्हारी इच्छा हो, उन सबको तुम इस समय मेरे शरीर के एक अंश में प्रत्यक्ष देख सकते हो।
- ↑ भगवान ने अर्जुन को विश्वरूप का दर्शन करने के लिये अपने योगबल से एक प्रकार की योगशक्ति प्रदान की थी, जिसके प्रभाव से अर्जुन ने अलौकिक सामर्थ्य का प्रादुर्भाव हो गया- उस दिव्य रूप को देख सकने की योग्यता प्राप्त हो गयी। इसी योगशक्ति का नाम दिव्यदृष्टि है। ऐसी ही दिव्य दृष्टि श्री वेदव्यास जी ने संजय को भी दी थी। अर्जुन को जिस रूप के दर्शन हुए थे, वह दिव्य था। उसे भगवान ने अपनी अद्भुत योगशक्ति से ही प्रकट करके अर्जुन को दिखलाया था। अत: उसके देखने से ही भगवान की अद्भुत योगशक्ति के दर्शन आप ही हो गये।
- ↑ संजय के इस कथन का भाव यह है कि श्रीकृष्ण कोई साधारण मनुष्य नहीं हैं, वे बड़े-से-बड़े योगेश्वर और सब पापों तथा दु:खों के नाश करने वाले साक्षात परमेश्वर हैं। उन्होंने अर्जुन को अपना जो दिव्य विश्वरूप दिखलाया था, जिसका वर्णन करके मैं अभी आप को सुनाऊंगा, वह रूप बडे़-से-बड़े योगी भी नहीं दिखला सकते; उसे तो एकमात्र स्वयं परमेश्वर ही दिखला सकते हैं।
- ↑ अर्जुन ने भगवान का जो रूप देखा, उसके प्रधान नेत्र तो चन्द्रमा और सूर्य बतलाये गये हैं (गीता 11:19), परंतु उसके अंदर दिखलायी देने वाले भी असंख्य विभिन्न मुख और नेत्र थे, इसी से भगवान को अनेक मुखों और नेत्र से युक्त बतलाया गया है।
- ↑ भगवान के उस विराट रूप में अर्जुन ने ऐसे असंख्य अलौकिक विचित्र दृश्य देखे थे, इसी कारण उनके लिये यह विशेषण दिया गया है।
- ↑ जो गहने लौकिक गहनों से विलक्षण, तेजोमय और अलौकिक हों, उन्हें ‘दिव्य’ कहते हैं तथा जो रूप ऐसे असंख्य दिव्य आभूषणों से विभूषित हो, उसे ‘अनेकदिव्याभरण’ कहते हैं।
- ↑ जो आयुध अलौकिक तथा तेजोमय हों, उनको ‘दिव्य‘ कहते हैं- जैसे भगवान विष्णु के चक्र, गदा और धनुष आदि हैं। इस प्रकार के असंख्य दिव्य शस्त्र भगवान ने अपने हाथों में उठा रखे थे।
- ↑ विश्वरूप भगवान ने अपने गले में बहुत-सी सुंदर-सुंदर तेजोमय अलौकिक मालाएं धारण कर रखी थीं तथा वे अनेक प्रकार के बहुत ही उत्तम तेजोमय अलौकिक वस्त्रों से सुसज्जित थे, इसलिये उनके लिये यह विशेषण दिया गया है।
- ↑ इसके द्वारा विराट स्वरूप भगवान के दिव्य प्रकाश को निरूमय बतलाया गया है। अभिप्राय यह है कि जिस प्रकार हजारों तारे एक साथ उदय होकर भी सूर्य की समानता नहीं कर सकते, उसी प्रकार हजार सूर्य यदि एक साथ आकाश में उदय हो जायं तो उनका प्रकाश भी उस विराट स्वरूप भगवान के प्रकाश की समानता नहीं कर सकता। इसका कारण यह है कि सूर्यों का प्रकाश अनित्य, भौतिक और सीमित है; परंतु विराट स्वरूप भगवान का प्रकाश नित्य, दिव्य, अलौकिक और अपरिमित है।
- ↑ यहाँ यह भाव दिखलाया गया है कि देवता-मनुष्य, पशु-पक्षी, कीट-पतंग और वृक्ष आदि भोक्तृवर्ग, पृथ्वी, अंतरिक्ष, स्वर्ग और पाताल आदि भोग्यस्थान एवं उनके भोगने योग्य असंख्य सामग्रियों के भेद से विभक्त- इस समस्त ब्रह्माण्ड को अर्जुन ने भगवान के शरीर के एक देश में देखा। गीता के दसवें अध्याय के अंत में भगवान ने जो यह बात कही थी कि इस सम्पूर्ण जगत को मैं एक अंश में धारण किये हुए स्थित हूं, उसी को यहाँ अर्जुन ने प्रत्यक्ष देखा।
- ↑ इस कथन का अभिप्राय यह है कि भगवान के उस रूप को देखकर अर्जुन को इतना महान हर्ष और आश्चर्य हुआ, जिसके कारण उसी क्षण उनका समस्त शरीर पुलकित हो गया। उन्होंने इससे पूर्व भगवान का ऐसा ऐश्वर्य पूर्ण स्वरूप कभी नहीं देखा था; इसलिये इस अलौकिकरूप को देखते ही हृदयपट पर सहसा भगवान के अपरिमित प्रभाव का कुछ अंश अंकित हो गया, भगवान का कुछ प्रभाव उनकी समझ में आया। इससे उनके हर्ष और आश्चर्य की सीमा न रही।
- ↑ अर्जुन ने जब भगवान का ऐसा अनंत आश्चर्यमय दृश्यों से युक्त परम प्रकाशमय और असीम ऐश्वर्य समन्वित महान स्वरूप देखा, तब उससे वे इतने प्रभावित हुए कि उनके मन में जो पूर्व जीवन की मित्रता का एक भाव था, वह समसा विलुप्त-सा हो गया; भगवान की महिमा के सामने वे अपने को अत्यंत तुच्छ समझने लगे। भगवान के प्रति उनके हृदय में अत्यंत पूज्यभाव जाग्रत हो गया और उस पूज्यभाव के प्रवाह ने बिजली की तरह गति उत्पन्न करके उनके मस्तक को उसी क्षण भगवान के चरणों में टिका दिया और वे हाथ जोड़कर बड़े ही विनम्रभाव से श्रद्धा-भक्तिपूर्वक भगवान का स्तवन करने लगे।
- ↑ महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 35 श्लोक 10-17
सम्बंधित लेख
महाभारत भीष्म पर्व में उल्लेखित कथाएँ
जम्बूखण्डविनिर्माण पर्व
कुरुक्षेत्र में उभय पक्ष के सैनिकों की स्थिति
| कौरव-पांडव द्वारा युद्ध के नियमों का निर्माण
| वेदव्यास द्वारा संजय को दिव्य दृष्टि का दान
| वेदव्यास द्वारा भयसूचक उत्पातों का वर्णन
| वेदव्यास द्वारा अमंगलसूचक उत्पातों का वर्णन
| वेदव्यास द्वारा विजयसूचक लक्षणों का वर्णन
| संजय द्वारा धृतराष्ट्र से भूमि के महत्त्व का वर्णन
| पंचमहाभूतों द्वारा सुदर्शन द्वीप का संक्षिप्त वर्णन
| सुदर्शन द्वीप के वर्ष तथा शशाकृति आदि का वर्णन
| उत्तर कुरु, भद्राश्ववर्ष तथा माल्यवान का वर्णन
| रमणक, हिरण्यक, शृंगवान पर्वत तथा ऐरावतवर्ष का वर्णन
| भारतवर्ष की नदियों तथा देशों का वर्णन
| भारतवर्ष के जनपदों के नाम तथा भूमि का महत्त्व
| युगों के अनुसार मनुष्यों की आयु तथा गुणों का निरूपण
भूमि पर्व
संजय द्वारा शाकद्वीप का वर्णन
| कुश, क्रौंच तथा पुष्कर आदि द्वीपों का वर्णन
| राहू, सूर्य एवं चन्द्रमा के प्रमाण का वर्णन
श्रीमद्भगवद्गीता पर्व
संजय का धृतराष्ट्र को भीष्म की मृत्यु का समाचार सुनाना
| भीष्म के मारे जाने पर धृतराष्ट्र का विलाप
| धृतराष्ट्र का संजय से भीष्मवध घटनाक्रम जानने हेतु प्रश्न करना
| संजय द्वारा युद्ध के वृत्तान्त का वर्णन आरम्भ करना
| दुर्योधन की सेना का वर्णन
| कौरवों के व्यूह, वाहन और ध्वज आदि का वर्णन
| कौरव सेना का कोलाहल तथा भीष्म के रक्षकों का वर्णन
| अर्जुन द्वारा वज्रव्यूह की रचना
| भीमसेन की अध्यक्षता में पांडव सेना का आगे बढ़ना
| कौरव-पांडव सेनाओं की स्थिति
| युधिष्ठिर का विषाद और अर्जुन का उन्हें आश्वासन
| युधिष्ठिर की रणयात्रा
| अर्जुन द्वारा देवी दुर्गा की स्तुति
| अर्जुन को देवी दुर्गा से वर की प्राप्ति
| सैनिकों के हर्ष तथा उत्साह विषयक धृतराष्ट्र और संजय का संवाद
| कौरव-पांडव सेना के प्रधान वीरों तथा शंखध्वनि का वर्णन
| स्वजनवध के पाप से भयभीत अर्जुन का विषाद
| कृष्ण द्वारा अर्जुन का उत्साहवर्धन एवं सांख्ययोग की महिमा का प्रतिपादन
| कृष्ण द्वारा कर्मयोग एवं स्थितप्रज्ञ की स्थिति और महिमा का प्रतिपादन
| कर्तव्यकर्म की आवश्यकता का प्रतिपादन एवं स्वधर्मपालन की महिमा का वर्णन
| कामनिरोध के उपाय का वर्णन
| निष्काम कर्मयोग तथा योगी महात्मा पुरुषों के आचरण एवं महिमा का वर्णन
| विविध यज्ञों तथा ज्ञान की महिमा का वर्णन
| सांख्ययोग, निष्काम कर्मयोग, ज्ञानयोग एवं ध्यानयोग का वर्णन
| निष्काम कर्मयोग का प्रतिपादन और आत्मोद्धार के लिए प्रेरणा
| ध्यानयोग एवं योगभ्रष्ट की गति का वर्णन
| ज्ञान-विज्ञान एवं भगवान की व्यापकता का वर्णन
| कृष्ण का अर्जुन से भगवान को जानने और न जानने वालों की महिमा का वर्णन
| ब्रह्म, अध्यात्म तथा कर्मादि विषयक अर्जुन के सात प्रश्न और उनका उत्तर
| कृष्ण द्वारा भक्तियोग तथा शुक्ल और कृष्ण मार्गों का प्रतिपादन
| ज्ञान विज्ञान सहित जगत की उत्पत्ति का वर्णन
| प्रभावसहित भगवान के स्वरूप का वर्णन
| आसुरी और दैवी सम्पदा वालों का वर्णन
| सकाम और निष्काम उपासना का वर्णन
| भगवद्भक्ति की महिमा का वर्णन
| कृष्ण द्वारा अर्जुन से शरणागति भक्ति के महत्त्व का वर्णन
| कृष्ण द्वारा अपनी विभूति और योगशक्ति का वर्णन
| कृष्ण द्वारा प्रभावसहित भक्तियोग का कथन
| कृष्ण द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का पुन: वर्णन
| अर्जुन द्वारा कृष्ण से विश्वरूप का दर्शन कराने की प्रार्थना
| कृष्ण और संजय द्वारा विश्वरूप का वर्णन
| अर्जुन द्वारा कृष्ण के विश्वरूप का देखा जाना
| अर्जुन द्वारा कृष्ण की स्तुति और प्रार्थना
| कृष्ण के विश्वरूप और चतुर्भुजरूप के दर्शन की महिमा का कथन
| साकार और निराकार उपासकों की उत्तमता का निर्णय
| भगवत्प्राप्ति वाले पुरुषों के लक्षणों का वर्णन
| ज्ञान सहित क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ का वर्णन
| प्रकृति और पुरुष का वर्णन
| ज्ञान की महिमा और प्रकृति-पुरुष से जगत की उत्पत्ति का वर्णन
| सत्त्व, रज और तम गुणों का वर्णन
| भगवत्प्राप्ति के उपाय तथा गुणातीत पुरुषों के लक्षणों का वर्णन
| संसारवृक्ष और भगवत्प्राप्ति के उपाय का वर्णन
| प्रभाव सहित परमेश्वर के स्वरूप और पुरुषोत्तम के तत्त्व का वर्णन
| दैवी और आसुरी सम्पदा का फलसहित वर्णन
| शास्त्र के अनुकूल आचरण करने के लिए प्रेरणा
| श्रद्धा और शास्त्र विपरीत घोर तप करने वालों का वर्णन
| आहार, यज्ञ, तप और दान के भेद की व्याख्या
| ओम, तत् और सत् के प्रयोग की व्याख्या
| त्याग और सांख्यसिद्धान्त का वर्णन
| भक्तिसहित निष्काम कर्मयोग का वर्णन
| फल सहित वर्ण-धर्म का वर्णन
| उपासना सहित ज्ञाननिष्ठा का वर्णन
| भक्तिप्रधान कर्मयोग की महिमा का वर्णन
| गीता के माहात्म्य का वर्णन
भीष्मवध पर्व
युधिष्ठिर का भीष्म, द्रोण आदि से अनुमति लेकर युद्ध हेतु तैयार होना
| कौरव-पांडवों के प्रथम दिन के युद्ध का प्रारम्भ
| उभय पक्ष के सैनिकों का द्वन्द्व युद्ध
| कौरव-पांडव सेना का घमासान युद्ध
| भीष्म के साथ अभिमन्यु का भयंकर युद्ध
| शल्य द्वारा उत्तरकुमार का वध और श्वेत का पराक्रम
| विराट के पुत्र श्वेत का महापराक्रम
| भीष्म द्वारा श्वेत का वध
| भीष्म का प्रचण्ड पराक्रम तथा प्रथम दिन के युद्ध की समाप्ति
| युधिष्ठिर की चिंता और श्रीकृष्ण द्वारा उनको आश्वासन
| धृष्टद्युम्न का उत्साह और क्रौंचारुण व्यूह की रचना
| कौरव सेना की व्यूह रचना
| कौरव-पांडव सेना में शंखध्वनि और सिंहनाद
| भीष्म और अर्जुन का युद्ध
| धृष्टद्युम्न और द्रोणाचार्य का युद्ध
| भीमसेन का कलिंगों और निषादों से युद्ध
| भीमसेन द्वारा शक्रदेव और भानुमान का वध
| भीमसेन द्वारा कई गजराजों और केतुमान का वध
| भीमसेन द्वारा कौरव सेना के असंख्य सैनिकों का वध
| अभिमन्यु और अर्जुन का पराक्रम तथा दूसरे दिन के युद्ध की समाप्ति
| कौरव-पांडवों की व्यूह रचना
| उभय पक्ष की सेनाओं का घमासान युद्ध
| पांडव वीरों का पराक्रम और कौरव सेना में भगदड़
| दुर्योधन और भीष्म का संवाद
| भीष्म का पराक्रम
| कृष्ण का भीष्म को मारने के लिए उद्यत होना
| अर्जुन द्वारा कौरव सेना की पराजय और तीसरे दिन के युद्ध की समाप्ति
| कौरव-पांडव सेनाओं का व्यूह निर्माण
| भीष्म और अर्जुन का द्वैरथ युद्ध
| अभिमन्यु का पराक्रम
| धृष्टद्युम्न द्वारा शल के पुत्र का वध
| धृष्टद्युम्न और शल्य आदि दोनों पक्ष के वीरों का युद्ध
| भीमसेन द्वारा गजसेना का संहार
| भीमसेन का पराक्रम
| सात्यकि और भूरिश्रवा की मुठभेड़
| भीमसेन और घटोत्कच का पराक्रम
| कौरवों की पराजय तथा चौथे दिन के युद्ध की समाप्ति
| धृतराष्ट्र-संजय प्रसंग में दुर्योधन का भीष्म से पांडवों की विजय का कारण पूछना
| भीष्म का ब्रह्मा द्वारा की हुई भगवत-स्तुति का कथन
| नारायणावतार श्रीकृष्ण एवं नरावतार अर्जुन की महिमा का प्रतिपादन
| भगवान श्रीकृष्ण की महिमा
| ब्रह्मभूतस्तोत्र तथा श्रीकृष्ण और अर्जुन की महत्ता
| कौरवों द्वारा मकरव्यूह तथा पांडवों द्वारा श्येनव्यूह का निर्माण
| भीष्म और भीमसेन का घमासान युद्ध
| भीष्म, अर्जुन आदि योद्धाओं का घमासान युद्ध
| कौरव-पांडव सेनाओं का परस्पर घोर युद्ध
| कौरव-पांडव योद्धाओं का द्वन्द्व युद्ध
| भूरिश्रवा द्वारा सात्यकि के दस पुत्रों का वध
| अर्जुन का पराक्रम तथा पाँचवें दिन के युद्ध की समाप्ति
| पांडवों द्वारा मकरव्यूह तथा कौरवों द्वारा क्रौंचव्यूह का निर्माण
| धृतराष्ट्र की चिन्ता
| भीमसेन, धृष्टद्युम्न तथा द्रोणाचार्य का पराक्रम
| उभय पक्ष की सेनाओं का संकुल युद्ध
| भीमसेन के द्वारा दुर्योधन की पराजय
| अभिमन्यु आदि का धृतराष्ट्रपुत्रों के साथ युद्ध तथा छठे दिन के युद्ध की समाप्ति
| भीष्म द्वारा दुर्योधन को आश्वासन
| कौरव-पांडव सेनाओं का मण्डल और वज्रव्यूह बनाकर भीषण संघर्ष
| श्रीकृष्ण और अर्जुन से डरकर कौरव सेना में भगदड़
| द्रोणाचार्य और विराट का युद्ध तथा विराटपुत्र शंख का वध
| शिखण्डी और अश्वत्थामा का युद्ध
| सात्यकि द्वारा अलम्बुष की पराजय
| धृष्टद्युम्न और दुर्योधन तथा भीमसेन और कृतवर्मा का युद्ध
| इरावान द्वारा विन्द-अनुविन्द की पराजय
| भगदत्त द्वारा घटोत्कच की पराजय
| मद्रराज पर नकुल और सहदेव की विजय
| युधिष्ठिर द्वारा राजा श्रुतायु की पराजय
| महाभारत युद्ध में चेकितान और कृपाचार्य का मूर्छित होना
| भूरिश्रवा से धृष्टकेतु तथा अभिमन्यु से चित्रसेन आदि की पराजय
| सुशर्मा आदि से अर्जुन का युद्धारम्भ
| अर्जुन का पराक्रम और पांडवों का भीष्म पर आक्रमण
| युधिष्ठिर का शिखण्डी को उपालम्भ
| भीमसेन का पुरुषार्थ
| भीष्म और युधिष्ठिर का युद्ध
| धृष्टद्युम्न के साथ विन्द-अनुविन्द का संग्राम
| द्रोण आदि का पराक्रम और सातवें दिन के युद्ध की समाप्ति
| व्यूहबद्ध कौरव-पांडव सेनाओं की रणयात्रा
| व्यूहबद्ध कौरव-पांडव सेनाओं का घमासान युद्ध
| भीष्म का रणभूमि में पराक्रम
| भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के आठ पुत्रों का वध
| दुर्योधन और भीष्म का युद्ध विषयक वार्तालाप
| कौरव-पांडव सेना का घमासान युद्ध और भयानक जनसंहार
| इरावान द्वारा शकुनि के भाइयों का वध
| अलम्बुष द्वारा इरावान का वध
| घटोत्कच और दुर्योधन का भयानक युद्ध
| घटोत्कच का दुर्योधन एवं द्रोण आदि वीरों के साथ युद्ध
| घटोत्कच की रक्षा के लिए भीमसेन का आगमन
| भीम आदि शूरवीरों के साथ कौरवों का युद्ध
| दुर्योधन और भीमसेन तथा अश्वत्थामा और राजा नील का युद्ध
| घटोत्कच की माया से कौरव सेना का पलायन
| भीष्म की आज्ञा से भगदत्त का घटोत्कच से युद्ध हेतु प्रस्थान
| भगदत्त का घटोत्कच, भीमसेन और पांडव सेना के साथ युद्ध
| इरावान के वध से अर्जुन का दु:खपूर्ण उद्गार
| भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के नौ पुत्रों का वध
| अभिमन्यु और अम्बष्ठ का युद्ध
| युद्ध की भयानक स्थिति का वर्णन और आठवें दिन के युद्ध की समाप्ति
| दुर्योधन की शकुनि तथा कर्ण आदि के साथ पांडवों पर विजय हेतु मंत्रणा
| दुर्योधन का भीष्म से पांडवों का वध अथवा कर्ण को युद्ध हेतु आज्ञा देने का अनुरोध
| भीष्म का दुर्योधन को अर्जुन का पराक्रम बताना और भयंकर युद्ध की प्रतिज्ञा
| दुर्योधन द्वारा भीष्म की रक्षा की व्यवस्था
| उभयपक्ष की सेनाओं की व्यूह रचना तथा घमासान युद्ध
| विनाशसूचक उत्पातों का वर्णन
| अभिमन्यु के पराक्रम से कौरव सेना का युद्धभूमि से पलायन
| अभिमन्यु तथा द्रौपदी के पुत्रों का अलम्बुष से घोर युद्ध
| अभिमन्यु द्वारा अलम्बुष की पराजय
| अर्जुन के साथ भीष्म का युद्ध
| कृपाचार्य, द्रोणाचार्य तथा अश्वत्थामा के साथ सात्यकि का युद्ध
| द्रोणाचार्य और सुशर्मा के साथ अर्जुन का युद्ध
| भीमसेन द्वारा रणभूमि में गजसेना का संहार
| कौरव-पांडव उभय पक्ष की सेनाओं का घमासान युद्ध
| रक्तमयी रणनदी का वर्णन
| अर्जुन द्वारा त्रिगर्तों की पराजय
| अभिमन्यु से चित्रसेन की पराजय
| सात्यकि और भीष्म का युद्ध
| दुर्योधन द्वारा दु:शासन को भीष्म की रक्षा का आदेश
| शकुनि की घुड़सवार सेना की पराजय
| युधिष्ठिर और नकुल-सहदेव के साथ शल्य का युद्ध
| भीष्म द्वारा पराजित पांडव सेना का पलायन
| भीष्म को मारने के लिए कृष्ण का उद्यत होना
| अर्जुन द्वारा उद्यत हुए कृष्ण को रोकना
| नवें दिन के युद्ध की समाप्ति
| कृष्ण व पांडवों की गुप्त मंत्रणा
| कृष्णसहित पांडवों का भीष्म से उनके वध का उपाय पूछना
| उभयपक्ष की सेना का रण प्रस्थान व दसवें दिन के युद्ध का प्रारम्भ
| शिखण्डी को आगे कर पांडवों का भीष्म पर आक्रमण
| शिखंडी एवं भीष्म का युद्ध
| भीष्म-दुर्योधन संवाद
| भीष्म द्वारा लाखों पांडव सैनिकों का संहार
| अर्जुन के प्रोत्साहन से शिखंडी का भीष्म पर आक्रमण
| दु:शासन का अर्जुन के साथ घोर युद्ध
| कौरव-पांडव पक्ष के प्रमुख महारथियों के द्वन्द्वयुद्ध का वर्णन
| द्रोणाचार्य का अश्वत्थामा को अशुभ शकुनों की सूचना देना
| द्रोणाचार्य का अश्वत्थामा को धृष्टद्युम्न से युद्ध करने का आदेश
| कौरव पक्ष के दस महारथियों के साथ भीम का घोर युद्ध
| कौरव महारथियों के साथ भीम और अर्जुन का अद्भुत पुरुषार्थ
| भीष्म के आदेश से युधिष्ठिर का उन पर आक्रमण
| कौरव-पांडव सैनिकों का भीषण युद्ध
| कौरव-पांडव महारथियों के द्वन्द्वयुद्ध का वर्णन
| भीष्म का अद्भुत पराक्रम
| उभय पक्ष की सेनाओं का युद्ध तथा दु:शासन का पराक्रम
| अर्जुन के द्वारा भीष्म का मूर्च्छित होना
| भीष्म द्वारा पांडव सेना का भीषण संहार
| अर्जुन का भीष्म को रथ से गिराना
| शरशय्या पर स्थित भीष्म के पास ऋषियों का आगमन
| भीष्म द्वारा उत्तरायण की प्रतीक्षा कर प्राण धारण करना
| भीष्म की महत्ता
| अर्जुन द्वारा भीष्म को तकिया देना
| उभय पक्ष की सेनाओं का अपने शिबिर में जाना एवं कृष्ण-युधिष्ठिर संवाद
| अर्जुन द्वारा भीष्म की प्यास बुझाना
| अर्जुन की प्रसंशा कर भीष्म का दुर्योधन को संधि के लिए समझाना
| भीष्म और कर्ण का रहस्यमय संवाद
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज