भीष्म के साथ अभिमन्यु का भयंकर युद्ध

महाभारत भीष्म पर्व में भीष्मवध पर्व के अंतर्गत 47वें अध्याय में 'भीष्म के साथ अभिमन्यु का भयंकर युद्ध' का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है-[1]

संजय द्वारा भीष्म-अभिमन्यु के युद्ध का वर्णन धृतराष्ट्र से करना

संजय कहते हैं- राजन्! उस अत्यन्त भयंकर दिन का पूर्वभाग जब प्रायः व्यतीत हो गया, तब बड़े-बड़े़ वीरों का विनाश करने वाले उस भयानक संग्राम में आपके पुत्र की आज्ञा से दुर्मुख, कृतवर्मा, शल्य और विविंशति वहाँ आकर भीष्म की रक्षा करने लगे। इन पांच अतिरथी वीरों के सुरक्षित हो भरतभूषण महारथी भीष्मजी ने पाण्डवों की सेनाओं में प्रवेश किया। भारत! चेदि, काशि, करूष तथा पांचाललोक में विचरते हुए भीष्म का तालचिंहित चंचल पताकाओं वाला रथ अनेक-सा दिखायी देने लगा। वे युद्ध झुकी हुई गांठवाले अत्यन्त वेगशाली भल्लो द्वारा शत्रुओं के मस्तक, रथ, जुआ तथा ध्वज काट-काट कर गिराने लगे। भरतश्रेष्ठ! वे रथ के भागों पर नृत्य-सा कर रहे थे। उनके बाणों से मर्मस्थानों में खाये हुए हाथी अत्यन्त आर्तनाद करने लगे। यह देख अभिमन्यु अत्यन्त कुपित हो पिंगल वर्ण के श्रेष्ठ घोड़ो से जुते हुए रथ पर बैठकर भीष्म के रथ की और दोडे़ आये। उनका वह रथ कर्णिकार के चिह्न युक्त स्वर्ण निर्मित विचित्र ध्वज से सुशाभित था। उन्होंने भीष्म पर तथा उनकी रक्षा लिये आये हुए उन श्रेष्ठ रथियों पर भी आक्रमण किया। वीर अभिमन्यु तीखे बाण से उस ताल चिह्नित ध्वज को छेद डाला और भीष्म तथा उनके अनुगामी रथियों के साथ युद्ध आरम्भ कर दिया। उन्होंने एक बाण से कृतवर्मा को और पांच शीघ्रगामी बाणों से शल्य बेंध कर तीखी धार वाले नौ बाणों से पितामह भीष्म को भी चोट पहुँचायी। तत्पश्चात् धनुष को अच्छी तरह खींचकर पूरे मनोयोग से चलाते हुए एक बाण के द्वारा उनके सुर्वणभूषित ध्वज को भी छेद डाला। इसके बाद झुकी हुई गांठ वाले तथा सब प्रकार के आवरणों का भेदन करने वाले एक भल्ल के द्वारा दुर्मुख के सारथी का मस्तक धड़ से अलग कर दिया। साथ ही कृपाचार्य के स्वर्णभूषित धनुष को भी तेज धार वाले भाले से काट गिराया फिर सब और घूमकर नृत्य-सा करते हुए महारथी अभिमन्यु ने अत्यन्त कुपित हो तीखी नोक वाले बाणों से भीष्म की रक्षा करने वाले उन महारथियों को भी घायल कर दिया। अभिमन्यु के हाथों की यह फुर्ती देखकर देवताओं को भी बड़ी प्रसन्नता हुई। अर्जुनकुमार के इस लक्ष्य-वैध की सफलता से प्रभावित हो भीष्म आदि सभी रथियों ने उन्हे साक्षात् अर्जुन के समान शक्तिशाली समझा। अभिमन्यु का धनुष गाण्डीव के समान टंकार ध्वनि प्रकट करने वाला, हाथों की फुर्ती दिखाने का उपयुक्त स्थान और खीचें जाने पर अलातचक्र के समान मण्डलाकार प्रकाशित होने वाला था। वह वहाँ सम्पूर्ण दिशाओं में घूम रहा था।

अर्जुनकुमार अभिमन्यु को पाकर शत्रुवीरों का हनन करने वाले भीष्म ने समरभूमि में नौ शीघ्रगामी महावेगवान् बाणों द्वारा तुरन्त ही उन्हें वेधदिया। साथ ही उस महातेजस्वी वीर के ध्वज को भी तीन बाणों से काट गिराया इतना ही नहीं, नियमपूर्वक ब्रह्मचर्य व्रत का पालने करने वाले भीष्म ने तीन बाणों से अभिमन्यु के सारथी को भी मार डाला। आर्य! इसी प्रकार कृतवर्मा, कृपाचार्य तथा शल्‍य उस मैनाक पर्वत की भाँति स्थिर हुए अर्जुन कुमार को बाणविद्ध करके भी कम्पित न कर सके। दुर्योधन के उन महारथियों से घिर जाने पर भी शूरवीर अर्जुनकुमार उन पांचों रथियों पर बाण वर्षा करता रहा। इस प्रकार अपने बाणों की वर्षा से उन सबके महान् अस्त्रों का निवारण करके बलवान् अर्जुनकुमार अभिमन्यु ने भीष्म पर सायकों का प्रहार करते हुए बड़े जोर का सिंहनाद किया।[1] राजन्! उस समय समरभूमि प्रत्यन्तपर्वूक अपने बाणों द्वारा भीष्म को पीड़ा देते हुए अभिमन्यु की भुजाओं का महान् बल प्रत्यक्ष देखा गया। तब भीष्म ने भी उस पराक्रमी वीरपथ बाणों का प्रहार किया परन्तु अभिमन्यु ने रणभूमि में भीष्म के धनुष से छूटे हुए समस्त बाणों को काट डाला। अभिमन्यु के बाण अमोध थे। उस वीर ने समरांगण में नौ बाणों द्वारा भीष्म के ध्वज को काट गिराया। यह देख सब लोग उच्च स्वर में कोलाहल कर उठे। भरतनन्दन! वह रजतनिर्मित, स्वर्णभूषित अत्यन्त ऊंचा ताल-चिह्न से युक्त भीष्म का ध्वज सुभद्राकुमार के बाणों से छिन्न-भिन्न होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा। भरतश्रेष्ठ! अभिमन्यु के बाणों से कटकर गिरे हुए उस ध्वज को देखकर भीमसेन ने सुभद्राकुमार का हर्ष बढाते हुए उच्चस्वर से गर्जना की। तब महाबली भीष्मसेन ने उस अत्यन्त भयंकर संग्राम में बहुत-से महान् दिव्यास्त्र प्रकट किये। तब अमेय आत्मबल से सम्पन्न प्रपितामह भीष्मसेन सुभद्राकुमार पर हजारों बाणों की वर्षा की। वह एक अद्भूत-सी घटना प्रतीत हुई। राजन्! तब पुत्र सहित विराट, द्रुपदकुमार धृष्टद्यम्न, भीमसेन, पांचों भाई केकय-राजकुमार तथा सात्यकि-ये पाण्डव-पक्ष के महान् धनुंधर दस महारथी अभिमन्यु रक्षा के लिये रथों द्वारा तुरन्त वहाँ दोडे़ आये।[2]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 47 श्लोक 1-21
  2. महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 47 श्लोक 22-43

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