विराट के पुत्र श्वेत का महापराक्रम

महाभारत भीष्म पर्व में भीष्मवध पर्व के अंतर्गत 48वें अध्याय में 'विराट के पुत्र श्वेत का पराक्रम' का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है-[1]

धृतराष्ट्र ने पूछा-संजय! जब शल्य ने उत्तरकुमार का वध कर दिया और उसके बाद जब महान् धनुर्धर श्वेत अपना रथ शल्य के रथ के समीप लेकर पहुँचे तब कौरवों तथा पाण्डवों ने क्या किया ? अथवा शान्तनुनन्दन भीष्म ने कौन-सा पुरुषार्थ किया ? मेरे पूछने के अनुसार ये सब बाते मुझसे कहो।

संजय का धृतराष्ट्र के प्रश्न का उत्तर देना

संजय कहते हैं- राजन्! पाण्डवपक्ष के लाखों क्षत्रिय शिरोमणी महारथी विराट सेनापति शूरवीर श्वेत को आगे करके आपके पुत्र दुर्योधन को अपना बल दिखाते हुए शिखण्डी को सामने रखकर भीष्म के सुवर्णभूषित रथ पर चढ़ आये। भारत! वे महारथी श्वेत की रक्षा करना चाहते थे इसलिये उसे मारने की इच्छा वाले योद्धाओं में श्रेष्ठ भीष्म पर उन्होंने धावा किया। उस समय बड़ाभयंकर युद्ध छिड़ गया। आपके और पाण्डवों के सैनिकों में जो महान् संहारकारी युद्ध जिस प्रकार हुआ, उसका उसी रूप में आप से वर्णन करता हूँ। उस युद्ध में शान्तनुनन्दन भीष्म ने बहुत से रथों की बैठकों को रथियों से शून्य कर दिया। वहाँ उन्होंने अत्यन्त अद्भुत कार्य किया। अपने बाणों द्वारा बहुत-से श्रेष्ठ रथियों को बहुत पीड़ा दी। वे सूर्य के समान तेजस्वी थे। उन्होंने अपने सायको द्वारा सूर्यदेव को भी आच्छादित कर दिया। जैसे सूर्य उदित होकर अन्धकारों को नष्ट कर देते हैं, उसी प्रकार वे सब ओर समरभूमि शत्रुसेनाओं का संहार कर रहे थे। राजन्! उनके द्वारा चलाये हुए महान् वेग और बल से सम्पन्न तथा क्षत्रियों का विनाश करने वाले लाखों बाणों ने रणभूमि में सैकड़ों श्रेष्ठ वीरों के मस्तक काट गिराये। उन बाणों ने वज्र के मारे हुए पर्वतो की भाँति कांटेदार कवचो से सुसज्ज्ति हाथियों को भी धराशायी कर दिया। प्रजानाथ! उस समय रथ रथों से सटे हुए दिखायी देते थे। कितने ही घोडे़ अपने सहित रथ को लिये हुए दूर भागे जा रहे थे और उसपर मरा हुआ नवयुवक वीर रथी धनुष के साथ ही लटक रहा था। राजन्! वे प्रचण्ड घोडे़ उस रथ को लिये-दिये यत्र-तत्र घूम रहे थे। कमर में तलवार और पीठ पर तरकस बांधे हुए सैकडों आहत वीर मस्तक कट जाने के कारण पृथ्वी पर गिरकर वीरोचित शय्याओं पर शयन कर रहे थे। एक दूसरे पर धावा करने वाले कितने ही सैनिक गिर पड़ते और फिर उठकर खडे़ हो जाते थे। खडे़ होकर वे दौड़ते और परस्पर द्वन्द्वयुद्ध करने लगते थे और फिर आपस के प्रहारों से पीडित हो रहे थे और स्वयं भी अस्त्र-शस्त्रों का प्रहार करते हुए विभिन्न भागों से इधर-उधर भाग-दौड़ रहे थे। मतवाले हाथी उन घोडों के पीछे पडे थे, जिनके सवार मारे गये थे। इसी प्रकार रथोंसहित रथी चारों और भूतलपर पड़ी हुई लाशों को रौंदते हुए विचरण करते थे। कितने ही वीर दूसरों के बाणों से मारे जाकर रथ से गिर पड़ते थे। कही सारथी के मारे जाने पर रथ साधारण काष्ठ की भाँति ऊंचे से नीचे गिर पड़ता था। उस संग्राम में इतनी धूल उड़ी कि कुछ सूझ नही पड़ता था। केवल धनुष की टंकार से ही यह जाना जाता था कि प्रतिद्वन्द्वी युद्ध कर रहा है। कितने ही योद्धा दूसरे योद्धाओं के शरीर स्पर्श करके ही यह समझ पाते थे कि वह शत्रु दल का है। राजन्! कुछ लोग धनुष की टंकार और सेना का कोलाहल सुनकर ही यह समझ पाते थे कि कोई बाणों द्वारा युद्ध कर रहा है। योद्धा एक दूसरे के प्रति जो वीरोचित गर्जना करते थे, वह भी उस समय अच्छी तरह सुनायी नही देती थी।[1]

कानों का परदा फाड़ने वाले डंके की आवाज से सारी रणभूमि गूंज उठी थी। अतः वहाँ अपने पुरुषार्थ को प्रकट करने वाले किसी योद्धा की बात मुझे नही सुनायी देती थी। वे लोग जो आपस में नाम-गोत्र आदि का परिचय देते थे, उसे भी मैं नही सुन पाता था। युद्ध में भीष्मजी के धनुष से छूटे हुए बाणों से समस्त योद्धा पीड़ित हो रहे थे। उन बाणों ने परस्पर सभी वीरो के हृदय कॅपा दिये थे। वह युद्ध अत्यन्त भयंकर, रोमांचकारी तथा सबका व्याकुल कर देने वाला था। उसमें कोई पिता अपने पुत्र को भी पहचान नहीं पाता था। भीष्म के बाणों से पहिये टूट गये, जूआ कट गया और एकमात्र बचा हुआ रथ का घोड़ा भी मारा गया। उस दशा में रथ पर बैठा हुआ सारथी सहित वीर रथी भी उनके बाणों से आहत होकर स्वर्ग सिधारा। इस प्रकार उस समरांगण में रथहीन हुए सभी वीर भिन्न-भिन्न मार्गो से सब और दौड़ते दिखाई देते थे। किसी का हाथी मारा गया, किसी का मस्तक कट गया, किसी के मर्मस्थान विदीर्ण हो गये और किसी का घोड़ा ही नष्ट हो गया। जब भीष्मजी शत्रुओं का संहार कर रहे थे, उस समय (उनके सम्मुख आया हुआ) कोई भी ऐसा विपक्षी नही बचा, जो घायल न हुआ हो।

श्वेत का पराक्रम

इसी प्रकार उस महायुद्ध में श्वेत भी कौरवों का संहार कर रहे थे। उन्होंने सैकडो श्रेष्ठ रथी राजकुमारों का संहार कर डाला। भरतश्रेष्ठ! श्वेत ने अपने बाणों द्वारा बहुत-से रथियों के मस्तक काट डाले। उन्होंने सब और बाण मारकर कितने ही योद्धाओं के धनुष और बाजुबंद सहित भूजाएं काट डाली। रथ के ईषादण्ड, रथ-चक्र, तुणीर और जुए भी छिन्न-भिन्न कर दिये। राजन्! बहुमूल्य छत्र और पताकाएं भी उनके बाणों से खण्डित हो गयी। भरतनन्दन! श्वेत ने अश्वों, रथों और मनुष्यों के समुदाय का तो वध किया ही सैकडों हाथी भी मार गिराये। कुरुनन्दन! हमलोग भी श्वेत के भय से महारथी भीष्म को अकेला छोड़कर भाग खडे़ हुए। इसीलिये इस समय जीवित रहकर महाराज का दर्शन कर रहे है। हम सभी कौरव श्वेत का बाण जहाँ तक पहुँच पाता था, उतनी दूरी को लांघकर युद्धभूमि में खडे़ हो दर्शक की भाँति शान्तनुनन्दन भीष्म को देख रहे थे।। उस महान् संग्राम में हमलोगों के लिये कातरता का समय आ गया था, तो भी अकेले परश्रेष्ठ भीष्म ही दीनता से रहित हो मेरूपर्वत की भाँति अविचलभाव से खडे़ रहे थे। जैसे सर्दी के अन्त में सूर्यदेव धरती का जल सोखने लगते है, उसी प्रकार भीष्म समस्त सैनिकों के प्राणों का अपहरण-सा कर रहे थे। किरणों से सुशोभित सूर्यदेव की भाँति भीष्म बाणरूपी रश्मियों से शोभा पाते हुए वहाँ खडे़ थे। जैसे वज्रपाणि इन्द्र असुरों की संहार करते है, उसी प्रकार महाधनुर्धर भीष्म उस रणक्षेत्र में शत्रुओं का विनाश करते हुए बारंबार बाणसमूहों की वर्षा कर रहे थे। महाबली भीष्म जी अपने झुंड से बिछुडे़ हुए हाथी की भाँति आपकी सेना से विलग होकर उस रणभूमि में अत्यन्त भयंकर हो रहे थे उनकी मार खाकर सम्पूर्ण शत्रु उन्हें छोड़कर भाग गये। परंतप! श्वेत को पूवोक्तरूप से कौरव-सेना का संहार करते देख एकमात्र भीष्म ही उत्साहित और प्रफुल हो पाण्डवो को शोक में डालते हुए जीवन का मोह और भय छोड़कर उस महासमर में दुर्योधन के प्रिय कार्य में जुट गये।[2]

भीष्म और श्वेत का युद्ध

राजन्! भीष्मजी ने पाण्डवों के बहुत-से सैनिक को मार गिराया। आपके पिता देवव्रत ने जब देखा कि सेनापति श्वेत हमारी सेना पर प्रहार कर रहे है, तब वे तुरन्त उनका सामना करने के लिये गये। श्वेत ने अपने असंख्य बाणों का जाल सा बिछाकर भीष्म को ढक दिया। तब भीष्म ने भी श्वेत पर बाणसमूहों की वर्षा की। वे दोनों वीर गर्जते हुए दो सांडो, मद से उन्मत्त हुए दो गजराजों तथा क्रोध में भरे हुए दो सिंहों की भाँति एक दूसरे पर चोट करने लगे। तदनन्तर वे दोनों पुरुषश्रेष्ठ भीष्म और श्वेत अपने अस्त्रों द्वारा विपक्षी के अस्त्रों का निवारण करके एक दूसरे को मार डालने की इच्छा से युद्ध करने लगे। यदि श्वेत पाण्डव-सेना की रक्षा न करते तो भीष्मजी अत्यन्त क्रुद्ध होकर एक ही दिन में उसे भस्म कर डालते। तदनन्तर पितामह भीष्म को श्वेत के द्वारा युद्ध से विमुख किया हुआ देख समस्त पाण्डवों को बडा हर्ष हुआ परन्तु आपके पुत्र दुर्योधन का मन उदास हो गया। तब दुर्योधन कुपित हो समस्त राजाओं तथा सेना के साथ उस युद्धभूमि में पाण्डव सेना पर आक्रमण किया।

दुर्मुख, कृतवर्मा, कृपाचार्य तथा राजा शल्य आपके पुत्र की आज्ञा से आकर भीष्मकी रक्षा करने लगे। दुर्योधन आदि सब राजाओं के द्वारा पाण्डव सेना को युद्ध में मारी जाती देख श्वेत ने गंगापुत्र भीष्म को छोड़कर आपके पुत्र की सेना पर उसी प्रकार वेगपूर्वक विनाश आरम्भ किया, जैसे आंधी अपनी शक्ति से वृक्षों को उखाड़ फेंकती है। राजन्! विराटपुत्र श्वेत उस समय क्रोध से मूर्च्छित हो रहे थे। वे आपकी सेना को दूर भगाकर फिर सहसा वही आ पहुँचे, जहाँ भीष्म खडे़ थे। महाराज! वे दोनों महाबली महामना वीर बाणों से उदीप्त हो एक दूसरे को मार डालने की इच्छा से समीप आकर वृत्रासुर और इन्द्र के समान युद्ध करने लगे। श्वेत ने धनुष खीचंकर सात बाणों द्वारा भीष्म को बेघ डाला। तब पराक्रमी भीष्म ने श्वेत के उस पराक्रम को स्वयं पराक्रम करके वेगपूर्वक रोक दिया मानो किसी मतवाले हाथी ने दूसरे मतवाले हाथी को रोक दिया हो। तदनन्तर श्वेत ने पुनः झुकी हुई गांठवाले पचीस बाणों से शान्तनुनन्दन भीष्म को बींघ डाला। वह एक अद्भुत सी घटना हुई। तब शान्तनुनन्दन भीष्म ने भी दस बाण मारकर बदला चुकाया। उनके द्वारा घायल किये जाने पर भी बलवान श्वेत विचलित नही हुआ। वह पर्वत की भाँति अविचलभाव से खड़ा रहा। तदनन्तर क्षत्रिय कुल को आनन्दित करने वाले विराट कुमार श्वेत ने युद्ध में कुपित हो धनुष को जोर जोर से खीचकर भीष्म पर पुनः बाणों द्वारा प्रहार किया। इसके बाद उन्होंने हंसकर अपने मुंह के दोनों कोनो को चाटते हुए नौ बाण मारकर भीष्म के धनुष के दस टुकडे़ कर दिये। फिर शिखाशुन्य पंखयुक्त बाण का संघान करके उसके द्वारा महात्मा भीष्म के ताल चिह्नयुक्त ध्वज का ऊपरी भाग काट डाला। भीष्म के ध्वज को नीचे गिरा देख आपके पुत्रों ने उन्हे श्वेत के वश में पकड़कर मरा हुआ ही माना। महात्मा भीष्म के तालध्वज को पृथ्वी पर पड़ा देख पाण्डव हर्ष उल्लासित हो प्रसन्नतापूर्वक शंख बजाने लगे। तब दुर्योधन ने क्रोधपूर्वक अपनी सेना को आदेश दिया ‘वीरो! सावधान होकर सब और से भीष्म की रक्षा करते हुए उन्हे घेरकर खडे़ हो जाओ। कही ऐसा न हो कि ये हमारे देखते-देखते श्वेत के हाथों से मारे जायें। मैं तुम लोगों को सत्य कहता हूँ कि शान्तनुनन्दन भीष्म महान् शूरवीर है’।[3]

कौरव के अन्य योद्धाओं द्वारा श्वेत पर आक्रमण करना

राजा दुर्योधन की यह बात सुनकर सब महारथी बडी उतावली के साथ वहाँ आये और चतुरगिणी सेना द्वारा गंगा-नन्दन भीष्म की रक्षा करने लगे। भारत! बाह्लीक, कृतवर्मा, शल, शल्य, जलसंध, विकर्ण, चित्रसेन और विविंशति-इन सबने शीघ्रता के अवसर पर शीघ्रता करते हुए चारों और से भीष्मजी को घेर लिया और श्वेत के ऊपर भयंकर शस्त्र वर्षा करने लगे। तब अपरिमित आत्मबल से सम्पन्न महारथी श्वेत ने अपने हाथों की फुर्ती दिखाते हुए बडी उतावली के साथ क्रोधपूर्वक पैने बाणों द्वारा उन सबको रोक दिया। जैसे सिंह हाथियों के समूह को आगे बढने से रोक देता है, उसी प्रकार उन सभी महारथियों को रोककर भारी बाणवर्षा के द्वारा श्वेत ने भीष्म का धनुष काट दिया।[4]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 48 श्लोक 1-20
  2. महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 48 श्लोक 21-39
  3. महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 48 श्लोक 40-61
  4. महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 48 श्लोक 62-83

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साथ युद्ध | इरावान के वध से अर्जुन का दु:खपूर्ण उद्गार | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के नौ पुत्रों का वध | अभिमन्यु और अम्बष्ठ का युद्ध | युद्ध की भयानक स्थिति का वर्णन और आठवें दिन के युद्ध की समाप्ति | दुर्योधन की शकुनि तथा कर्ण आदि के साथ पांडवों पर विजय हेतु मंत्रणा | दुर्योधन का भीष्म से पांडवों का वध अथवा कर्ण को युद्ध हेतु आज्ञा देने का अनुरोध | भीष्म का दुर्योधन को अर्जुन का पराक्रम बताना और भयंकर युद्ध की प्रतिज्ञा | दुर्योधन द्वारा भीष्म की रक्षा की व्यवस्था | उभयपक्ष की सेनाओं की व्यूह रचना तथा घमासान युद्ध | विनाशसूचक उत्पातों का वर्णन | अभिमन्यु के पराक्रम से कौरव सेना का युद्धभूमि से पलायन | अभिमन्यु तथा द्रौपदी के पुत्रों का अलम्बुष से घोर युद्ध | अभिमन्यु द्वारा अलम्बुष की पराजय | अर्जुन के साथ भीष्म का युद्ध | कृपाचार्य, द्रोणाचार्य तथा अश्वत्थामा के साथ सात्यकि का युद्ध | द्रोणाचार्य और सुशर्मा के साथ अर्जुन का युद्ध | भीमसेन द्वारा रणभूमि में गजसेना का संहार | कौरव-पांडव उभय पक्ष की सेनाओं का घमासान युद्ध | रक्तमयी रणनदी का वर्णन | अर्जुन द्वारा त्रिगर्तों की पराजय | अभिमन्यु से चित्रसेन की पराजय | सात्यकि और भीष्म का युद्ध | दुर्योधन द्वारा दु:शासन को भीष्म की रक्षा का आदेश | शकुनि की घुड़सवार सेना की पराजय | युधिष्ठिर और नकुल-सहदेव के साथ शल्य का युद्ध | भीष्म द्वारा पराजित पांडव सेना का पलायन | भीष्म को मारने के लिए कृष्ण का उद्यत होना | अर्जुन द्वारा उद्यत हुए कृष्ण को रोकना | नवें दिन के युद्ध की समाप्ति | कृष्ण व पांडवों की गुप्त मंत्रणा | कृष्णसहित पांडवों का भीष्म से उनके वध का उपाय पूछना | उभयपक्ष की सेना का रण प्रस्थान व दसवें दिन के युद्ध का प्रारम्भ | शिखण्डी को आगे कर पांडवों का भीष्म पर आक्रमण | शिखंडी एवं भीष्म का युद्ध | भीष्म-दुर्योधन संवाद | भीष्म द्वारा लाखों पांडव सैनिकों का संहार | अर्जुन के प्रोत्साहन से शिखंडी का भीष्म पर आक्रमण | दु:शासन का अर्जुन के साथ घोर युद्ध | कौरव-पांडव पक्ष के प्रमुख महारथियों के द्वन्द्वयुद्ध का वर्णन | द्रोणाचार्य का अश्वत्थामा को अशुभ शकुनों की सूचना देना | द्रोणाचार्य का अश्वत्थामा को धृष्टद्युम्न से युद्ध करने का आदेश | कौरव पक्ष के दस महारथियों के साथ भीम का घोर युद्ध | कौरव महारथियों के साथ भीम और अर्जुन का अद्भुत पुरुषार्थ | भीष्म के आदेश से युधिष्ठिर का उन पर आक्रमण | कौरव-पांडव सैनिकों का भीषण युद्ध | कौरव-पांडव महारथियों के द्वन्द्वयुद्ध का वर्णन | भीष्म का अद्भुत पराक्रम | उभय पक्ष की सेनाओं का युद्ध तथा दु:शासन का पराक्रम | अर्जुन के द्वारा भीष्म का मूर्च्छित होना | भीष्म द्वारा पांडव सेना का भीषण संहार | अर्जुन का भीष्म को रथ से गिराना | शरशय्या पर स्थित भीष्म के पास ऋषियों का आगमन | भीष्म द्वारा उत्तरायण की प्रतीक्षा कर प्राण धारण करना | भीष्म की महत्ता | अर्जुन द्वारा भीष्म को तकिया देना | उभय पक्ष की सेनाओं का अपने शिबिर में जाना एवं कृष्ण-युधिष्ठिर संवाद | अर्जुन द्वारा भीष्म की प्यास बुझाना | अर्जुन की प्रसंशा कर भीष्म का दुर्योधन को संधि के लिए समझाना | भीष्म और कर्ण का रहस्यमय संवाद

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