भीमसेन और घटोत्कच का पराक्रम

महाभारत भीष्म पर्व में भीष्मवध पर्व के अंतर्गत 64वें अध्याय में 'भीमसेन और घटोत्कच का पराक्रम' का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है-[1]

संजय कहते हैं- राजन्! सात्यकि और भूरिश्रवा के बीच घमासान युद्ध हो रहा था, तब भूरिश्रवा ने अत्यन्त क्रुद होकर सात्यकि को नौ बाणों से उसी प्रकार बींध डाला, जैसे महान् गजराज को अंकुशाओ द्वारा पीड़ित किया जाता है। तब अमेय आत्मबल सम्पन्न सात्यकि ने भी झुकी हुई गांठवाले बाणों से सब लोगों के देखते देखते कुरुवंशी भुरिश्रवा को रोक दिया। यह देख भाईयों सहित राजा दुर्योधन ने युद्ध के लिये उघत होकर भूरिश्रवा को चारों और से घेरकर उनकी रक्षा में तत्पर हो गये। उधर महान् तेजस्वी समस्त पाण्डव भी युद्ध में वेगपूर्वक आगे बढ़ने वाले सात्यकि को सब और से घेरकर समरभूमि में डट गये।

भारत! क्रोध में भरे हुए भीमसेन ने गदा उठाकर आपके दुर्योधन आदि सब पुत्र को अकेले ही रोक दिया। तब क्रोध और असमर्ष में भरे हुए आपके पुत्र नन्दक ने कई हजार रथियो के साथ आकर विशाल शिला पर तेज किये हुए कंकपत्रयुक्त छः बाणों से महाबली भीमसेन को बींध डाला। कुपित हुए दुर्योधन ने भी महारथी भीमसेन को उस युद्ध में उनकी छाती को लक्ष्य करके नौ तीखे बाण मारे। तब महाबली महाबाहु भीमसेन अपने श्रेष्ठ रथ पर आरूढ़ हो गये और सारथि विशोक से इस प्रकार बोले-। ‘ये महारथी शूरवीर धृतराष्ट्र पुत्र अत्यन्त कुपित हो युद्ध में मुझे ही मारने के लिये उघत हो यहाँ आये है।

भीम द्वारा अपने सारथी से निवेदन करना

‘सूत! मेरे मन में बहुत वर्षों से जिसका चिन्तन हो रहा था, वह मनोरथरूपी वृक्ष आज सफल होना चाहता है; क्योंकि इस समय यहाँ मैं दुर्योधन के भाईयों को एकत्रित देख रहा हूँ। ‘विशोक! जहाँ रथ के पहियों से ऊपर उड़ी हुई धूल बाणसमूहों के साथ अंतरिक्ष और दिगन्त में फेल रही है, वही स्वयं राजा दुर्योधन कवच आदि से सुसज्जित होकर युद्ध के लिये खड़ा है। उसके कुलीन और मदोन्मत्त भाई भी वही कवच बांध कर खडे़ है। आज तुम्हारे देखते देखते मैं इन सब का विनाश करूंगा, इसमें संशय नही है। अतः सारथे! तुम सावधान होकर संग्राम में मेरे घोड़ों को काबु में रखो।

भीम का दुर्योधन तथा नंद के बीच युद्ध

राजन्! ऐसा कहकर कुन्तीकुमार भीम ने स्वर्णभूषित दस तीखे बाणों द्वारा आपके पुत्र दुर्योधन को बींध डाला और नन्द की छाती में भी तीन बाणों से गहरी चोट पहुँचायी। यह देख दुर्योधन साठ बाणों से महाबली भीमसेन को घायल करके अन्य तीन पैने बाणों से सारथि विशोक को भी घायल कर दिया राजन्! इसके बाद दुर्योधन ने युद्धस्थल में तीन तीखे भल्लों द्वारा हॅसते हुए-से भीम के तेजस्वी धनुष को भी बीच से काट दिया। आपके धनुर्धर पुत्र द्वारा समरांगण में अपने सारथि विशोक को तीखे बाणों के आघात से पीड़ित होता देख भीमसेन सह न सके। उन्‍होंने कुपित होकर अपना दिव्य धनुष हाथ मे लिया। महाराज! भरतश्रेष्ठ! फिर आपके पुत्र के वध के लिये अत्यन्त कुपित होकर उन्‍होंने पंखयुक्त क्षुरप्र का संधान किया और उसके द्वारा राजा दुर्योधन के उत्तम धनुष को काट डाला। राजन्! धनुष कटने पर आपका पुत्र क्रोध से मूर्च्छित हो उठा। उसने उस कटे हुए धनुष को फेंककर तुरन्त ही उसे अधिक वेगशाली दूसरा धनुष ले लिया।[1] फिर उसके ऊपर काल और मृत्यु के समान तेजस्वी भयंकर बाण रखा और कुपित हो उसके द्वारा भीमसेन की छाती में गहरा आघात किया। उस बाण से अत्यन्त घायल हो भीमसेन ने व्यर्था के मारे रथ की बैठक में बैठ गये। वहाँ बैठक ही उन्‍हें मूर्छा आ गयी। भीमसेन को प्रहार से पीड़ित हुआ देख अभिमन्यु आदि महाधनुर्धर पाण्डव महारथी यह सहन न कर सके। फिर तो सब लोगों ने आपके पुत्र के मस्तक पर निर्भर होकर तेजस्वी शस्त्रों की भयंकर वर्षा आरम्भ कर दी। तत्पश्चात् होश में आने पर महाबली भीमसेन ने दुर्योधन को पहले तीन बाणों से बींधकर फिर पांच बाणों से घायल कर दिया। फिर महाधनुर्धर पाण्डुपुत्र भीम ने सुवर्णमय पंख से युक्त पचीस बाणों द्वारा राजा शल्य को बींध दिया। उन बाणों से घायल होकर वे रणभूमि से भाग गये।[2]

भीम द्वारा धृतराष्ट्र पुत्रों का वध करना

राजन्! तब आपके चौदह पुत्रों ने भीमसेन पर धावा किया। उनके नाम ये है- सेनापति, सुषेण, जलसंघ, सुलोचन, उग्र, भीमरथ, भीम, वीरबाहु, अलोलुप, दुर्मुख, दुष्प्रधर्ष, विवित्सु विकट और सम-ये सब क्रोध से लाल आंखे करके बहुत-से बाणों की वर्षा करते हुए भीमसेन पर टूट पड़े और एक साथ होकर उन्‍हें अत्यन्त घायल करने लगे।। महाबली महाबाहु वीर भीमसेन आपके पुत्रों को देखकर पशुओ के बीच में खडे़ हुए भेड़िये के समान अपने मुंह के दोनों कोनो को चाटते हुए गरुड़ के समान बड़े वेग से उनके सामने गये। वहाँ पहुँचकर पाण्डुकुमार ने क्षुरप्र नामक बाण से सेनापति का सिर काट दिया। तत्पश्चात् प्रसन्नचित्त हो उन महाबाहु ने हॅसते-हंसते जलसंधो का तीन बाणों से विदीर्ण करके यमलोक पहुँचा दिया। तदनन्तर सुषेण को मारकर मौत के घर भेज दिया और उग्र के कुण्डलमण्डित चन्द्रोपम मस्तक को एक भल्ल के द्वारा शिरस्त्राणसहित काटकर पृथ्वी पर गिरा दिया। इसके बाद पाण्डुनन्दन वीरवर भीमसेन समरभूमि में घोडे़, ध्वज और सारथि सहित वीरवाहु को सत्तर बाणों से मारकर परलोक पहुँचा दिया। राजन्! तत्पश्चात् भीमसेन हंसते हुए से आपके दो पुत्र भीम और भीमरथ को भी, जो युद्ध में उन्मत होकर लड़ने वाले थे, यमलोक भेज दिया। इसके बाद उस महासमर में भीमसेन ने सम्पूर्ण सेनाओ के देखते-देखते क्षुरप्र से मारकर सुलोचन को भी यमलोक का अतिथि बना दिया। राजन्! आपके जो अन्य शेष पुत्र वहाँ मौजूद थे, वे भीमसेन का पराक्रम देखकर उनके भय से पीड़ित हो उन महात्मा पाण्डुकुमार के बाण की मार खाते हुए सम्पूर्ण दिशा में भाग गये।

भीम तथा भगदत्त का युद्ध

तदनन्तर शान्तनुनन्दन भीष्म ने महारथियों से कहा- ये भयंकर धनुर्धर भीमसेन युद्ध में क्रुद्व होकर सामने आये हुए श्रेष्ठ, ज्येष्ठ एवं शूर महारथी धृतराष्ट्र पुत्रों को मार गिराते है। अतः तुम सब लोग मिलकर उन्‍हें शीघ्र काबू में करो। उनके ऐसा कहने पर दुर्योधन के सभी सैनिक कुपित हो महाबली भीमसेन की और दौड़े। प्रजानाथ! राजा भगदत्त गजराज पर आरूढ़ हो सहसा उस स्थान आ पहुँचे, जहाँ भीमसेन खडे़ थे। युद्ध में आते ही उन्‍होंने अपने बाणों से भीमसेन को अदृश्य कर दिया, मानो सूर्य बादलो में ढक गया हों।[2] उस समय अभिमन्यु आदि महारथी भीम का इस प्रकार बाणों से आच्छादित हो जाना सहन न कर सके। वे अपने बाहुबल का आश्रय ले युद्ध में भगदत्त पर सब और से बाणों की वर्षा करते हुए उन्‍हें रोकने लगे। उन्‍होंने अपने बाणों की वृष्टि से भगदत्त के हाथी को भी सब और से छेद डाला। राजन्! जो नाना प्रकार के चिह्न धारण करने वाले और अत्यन्त तेजस्वी थे, उन समस्त महारथियों द्वारा की हुई अस्त्र-शस्त्रों की वर्षा से बहुत ही घायल होकर प्राग्ज्योतिषनरेश भगदत्त का वह हाथी मस्तक पर रक्त से रंजित हो रणक्षेत्र में देखने ही योग्य हो रहा था, मानो सूर्य की अरुण किरणो से व्याप्त रॅगा महामेघ हो। भगदत्त से प्रेरित होकर काल के भेजे हुए यमराज की भाँति वह मदस्त्रावी गजराज दूने वेग का आश्रय ले अपने पैरों की धमक से इस पृथ्वी को कॅपाता उन सब की और दौड़ा। उसके उस विशाल रूप को देखकर सब महारथी अपने लिये असहार मानते हुए हतोत्साह हो गये। महाराज! तत्पश्चात् राजा भगवत्त ने कुपित होकर झुकी हुई गांठवाले बाण से भीमसेन की छाती पर गहरी चोट पहुँचायी। राजा भगदत्त से इस प्रकार अत्यन्त घायल किये गये महाधनुर्धर महारथी भीमसेन ने मूर्छा से व्याप्त हो ध्वज का डंडा थाम लिया। उन सब महारथियो को भयभीत और भीमसेन को मूर्च्छित हुआ देख प्रतापी भगदत्त ने बड़े जोर से सिंहनाद किया।

घटोत्कच का पराक्रम

राजन्! तदनन्तर भीम को वैसी अवस्था में देखकर भयंकर राक्षस घटोत्कच अत्यन्त कुपित हो वही अदृश्य हो गया। फिर उसने कायरों का भय बढ़ाने वाली अत्यन्त दारुण माया प्रकट की। वह आधे निषेध में ही भयंकर रूप धारण करके दृष्टिगोचर हुआ। घटोत्कच अपनी ही माया द्वारा निर्मित कैलास पर्वत के समान श्वेत वर्ण वाले ऐरावत हाथी पर बैठकर वज्रधारी इन्द्र के समान वहाँ आया था। उनके पीछे अंजन, वामन और उत्तम कांति से युक्त महापध- ये तीन दिग्गज और थे, जिन पर उनके साथी राक्षस सवार थे। राजन् वे सभी विशालकाय दिग्गज तीन स्थानो से बहुत मद बहा रहे थे और तेज, वीर्य एवं बल से महाबली और महापराक्रमी थे। शत्रुओं को संताप देने वाले घटोत्कच ने अपने हाथी को गजारूढ़ राजा भगदत्त की और बढ़ाया। वह उन्‍हें हाथी सहित मार डालना चाहता था। महाबली राक्षसों द्वारा प्रेरित अन्यान्य दिग्गज भी जिनके चार चार दांत थे, अत्यन्त कुपित हो चारों दिशाओं में टूट पड़े।। वे सब-के-सब भगदत्त के हाथी को अपने दांतों से पीड़ा देने लगे। वह बाणों से बहुत घायल हो चुका था; अतः इन हाथियों द्वारा पीड़ित होने पर वेदना से व्याकुल हो बड़े जोर-जोर से चीत्कार करने लगा। उसकी आवाज इन्द्र के वज्र के गड़गड़ाहट के समान जान पड़ती थी।[3]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 64 श्लोक 1-21
  2. 2.0 2.1 महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 64 श्लोक 22-44
  3. महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 64 श्लोक 45-64

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