भीष्म के मारे जाने पर धृतराष्ट्र का विलाप

संजय युद्धभूमि लौटकर आते हैं और धृतराष्ट्र को पितामह भीष्म की मृत्यु का समाचार सुनाते हैं, जिसे सुनकर धृतराष्ट्र बहुत दु:खी होते हैं। वह संजय से बार-बार युद्ध में भीष्म जी के साथ होने वाली घटनाओं के विषय में पूछते हैं और विलाप करते हैं, जिसका उल्लेख महाभारत भीष्म पर्व में श्रीमद्भगवद्गीता पर्व के अंतर्गत 14वें अध्याय में निम्न प्रकार हुआ है[1]-

भीष्म की मृत्यु पर धृतराष्‍ट्र का विलाप करना

धृतराष्‍ट्र बोले- संजय! कुरुकुल के श्रेष्ठतम पुरुष मेरे पितृतुल्य भीष्म शिखण्‍डी के हाथ से कैसे मारे गये? वे इन्द्र के समान पराक्रमी थे, वे रथ से कैसे गिरे? संजय! जिन्होंने अपने पिता के संतोष के लिये आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन किया और जो देवताओं के समान बलवान थे, उन्हीं भीष्‍म से रहित होकर आज हमारे सैनिकों की कैसी अवस्था हुई है? यह बताओ महाज्ञानी, महाधनुर्धर, महाबली ओर महान धैर्यशाली नरश्रेष्‍ठ भीष्‍म जी के मारे जाने पर तुम्हारे मन की कैसी अवस्था हुई? संजय! तुम कहते हो, अकम्प्य वीर पुरुषसिंह, कुरुकुलशिरोमणि भीष्‍म जी मारे गये- इसे सुनकर मेरे हृदय में बड़ी पीड़ा हो रही हैं। संजय! जिस समय वे युद्ध के लिये अग्रसर हुए थे, उस समय इनके पीछे कौन गये थे अथवा उनके आगे कौन-कौन वीर थे? कौन उनके साथ युद्ध में डटे रहे? कौन युद्ध छोड़कर भाग गये? और किन लोगों ने सर्वथा उनका अनुसरण किया था? किन शूरवीर ने शत्रुसेना में प्रवेश करते समय रथियों में सिंह के समान अद्भुत पराक्रमी क्षत्रियशिरोमणि भीष्‍म जी के पास सहसा पहुँचकर सदा उनके पृष्‍ठभाग का अनुसरण किया? जैसे सूर्य अन्धकार को नष्‍ट कर देता है, उसी प्रकार शत्रुसूदन भीष्‍म शत्रुसेना का नाश करते थे। जिनका तेज सहस्र किरणों वाले सूर्य के समान था, जिन्होंने शत्रुओं को भयभीत कर रखा था। जिन्होंने युद्ध में पाण्‍डवों पर दुष्‍कर पराक्रम किया था तथा जो उनकी सेना का निरन्तर संहार कर रहे थे, उन अस्त्रविद्या के ज्ञाता दुर्जय वीर भीष्‍म जी को जिन्होंने रोका है, वे कौन हैं?

संजय! तुम तो उनके पास ही थे, पाण्‍डवों ने युद्ध में शान्तनुनन्दन भीष्‍म को किस प्रकार आगे बढ़ने से रोका? जो शत्रुपक्ष की सेनाओं का निरन्तर उच्छेद करते थे, बाण ही जिनकी दाढे़ थीं, धनुष ही खुला मुख था, तलवार ही जिनकी जिह्वा थी, उन भयकर एवं दुर्धर्ष पुरुषसिंह भीष्‍म को कुन्तीनन्दन अर्जुन ने युद्ध में कैसे मार गिराया? मनस्वी भीष्‍म इस प्रकार पराजय के योग्य नहीं थे। वे लज्जाशील और पराजयशून्य थे। जो उत्तम रथ पर बैठकर भयंकर धनुष और भयानक बाण लिये शत्रुओं के मस्तकों को सांयकों द्वारा काट-काटकर उनके ढेर लगा रहे थे। पाण्‍डवों की विशाल सेना दुर्धर्ष कालाग्नि के समान जिन्हें युद्ध के लिये उद्यम देख सदा कांपने लगती थी। वे ही शत्रुसूदन भीष्‍म दस दिनों तक शत्रुओं की सेना का संहार करते हुए अत्यन्त दुष्‍कर पराक्रम दिखाकर सूर्य की भाँति अस्त हो गये।

जिन्होंने इन्द्र के समान युद्ध में दस दिनों तक अक्षय बाणों की वर्षा करके इस करोड़ विपक्षी सेनाओं का संहार कर डाला, वे ही भरतवंशी वीर भीष्‍म मेरी कुमन्त्रणा के कारण आंधी से उखाडे़ गये वृक्ष की भाँति युद्ध में मारे जाकर पृथ्‍वी पर शयन कर रहे हैं, वे कदापि इसके योग्य नहीं थे। शान्तनुनन्दन भीष्‍म तो बड़े भयंकर पराक्रमी थे, उन्हें सामने देखकर पाण्‍डवसेना उन पर प्रहार कैसे कर सकी? संजय! पाण्‍डवों ने भीष्‍म के साथ संग्राम कैसे किया? द्रोणाचार्य के जीते-जी भीष्‍म विजयी कैसे नहीं हो सके? उस युद्ध में कृपाचार्य तथा भरद्वाजपुत्र द्रोणाचार्य दोनों ही उनके निकट थे तो भी योद्धाओं में श्रेष्ठ भीष्‍म कैसे मारे गये? भीष्‍म तो युद्ध में देवताओं के लिये भी दुर्जय एवं अतिरथी थे, फिर पाञ्चालराजकुमार शिखण्‍डी के हाथ से वे किस प्रकार मारे गये?[1]

जो रणभूमि में महाबली जमदग्निनन्दन परशुराम से भी टक्कर लेने की सदा इच्छा रखते थे, जिनका पराक्रम इन्द्र के समान था और परशुराम जी भी जिन्हें पराजित न कर सके थे; संजय! महारथियों के कुल में प्रकट हुए वे महावीर भीष्‍म समरभूमि में किस प्रकार मारे गये, यह मुझे बताओ; क्योंकि मुझे शान्ति नहीं मिल रही है। संजय! कभी युद्ध के पीछे न हटने वाले भीष्म जी का मेरे पक्ष के किन महाधनुर्धरों ने साथ नहीं छोड़ा? दुर्योधन की आज्ञा पाकर किन-किन वीरों ने उन्हें सब ओर से घेर रखा था? संजय! जब शिखण्‍डी आदि समस्त पाण्‍डव वीरों ने भीष्‍म पर आक्रमण किया, उस समय समस्त कौरवों ने कहीं अच्युत भीष्‍म का साथ छोड़ तो नहीं दिया था? अवश्‍य ही मेरा यह हृदय लोहे के समान सुदृढ़ है तभी तो पुरुषसिंह भीष्‍म को मारा गया सुनकर विदीर्ण नहीं होता है! जिन दुर्जय वीर भरतभूषण भीष्‍म में सत्य, मेघा और नीति- ये तीन अप्रमेय शक्तियां थी, वे युद्ध में कैसे मारे गये? वे युद्ध में महान मेघ के समान ऊंचे उठे हुए थे। धनुष की टंकार ही उनकी गर्जना थी, बाण ही उनके लिये वर्षा की बूँदें थीं और धनुष का महान शब्द ही बिजली की गड़गड़ाहट का भयंकर शब्द था।[1]

वीरवर भीष्‍म ने शत्रुपक्ष के रथियों- कुन्तीकुमारों, पाञ्चालों तथा सृंजयों को मारते हुए उनके ऊपर उसी प्रकार बाणों की बौछार की, जैसे वज्रधारी इन्द्र दानवों पर बाण-वर्षा करते हैं। उनका धनुष-बाण आदि अस्त्रसमुह भयंकर एवं दुर्गम समुद्र के समान था, बाण ही उसमें ग्राह थे, धनुष लहरों के समान जान पड़ता था, वह अक्षय, द्वीपरहित, चञ्चल तथा नौका आदि तैरने के साधनों से शून्य था। गदा ओर खड्ग आदि ही उसमें मगर के समान थे। वह अश्‍वरूपी भंवरों से भयावह प्रतीत होता थे, पैदल सेना उसमें भरे हुए मत्स्यों के समान जान पड़ती थी तथा शंख और दुन्दुभियों की ध्‍वनि ही उस समुद्र की गर्जना थी। भीष्‍म जी उस समुद्र में शत्रुपक्ष के हाथियों, घोड़ों, पैदलों तथा बहुसंख्‍यक रथों को वेगपूर्वक डुबो रहे थे। वे समरभूमि में शत्रुवीर के प्राणों का अपहरण करने वाले थे। अपने क्रोध और तेज से दग्ध एवं प्रज्वलित से होते हुए शत्रुसंतापी भीष्‍म को जैसे तट समुद्र को रोक देता हैं उसी प्रकार किन वीरों ने आगे बढ़ने से रोका था।

शत्रुहन्ता भीष्‍म ने दुर्योधन के हित के लिये समरभू‍मि में जो पराक्रम किया था, वह अनुपम है। उस समय कौन-कौन से योद्धा उनके आगे थे? किन-किन वीरों ने अमित-तेजस्‍वी भीष्‍म के रथ के दाहिने पहिये की रक्षा की थी? किन लोगों ने दृढ़तापूर्वक व्रत का पालन करते हुए उनके पीछे की ओर रहकर शत्रुपक्ष के वीरों को आगे बढ़ने से रोका था? कौन-कौन से वीर निकट से भीष्‍म की रक्षा करते हुए उनके आगे खडे़ थे? और किन वीरों ने युद्ध में लगे हुए शूरशिरोमणि भीष्‍म के बायें पहिये की रक्षा की थी? संजय! उनके बायें चक्र की रक्षा में तत्‍पर होकर किन-किन योद्धाओं ने सृंजयवंशियों का विनाश किया था तथा किन्‍होंने आगे रहकर सेना के अग्रणी दुर्जय वीर भीष्‍म की सब ओर से रक्षा की थी? संजय! किन लोगों ने दुर्गम संग्राम में आगे बढ़ते हुए उनके पार्श्‍वभाग का संरक्षण किया था? और किन्‍होंने उस सैन्‍यसमूह में आगे रहकर वीरतपूर्वक शत्रुयोद्धाओं का डटकर सामना किया था?[1]

जब मेरे पक्ष के बहुत-से वीर उनकी रक्षा करते थे और वे भी उन वीरों की रक्षा में दत्तचित्त थे तब भी उन सब लोगों ने मिलकर शत्रुपक्ष की दुर्जय सेनाओं को कैसे वेगपूर्वक परास्‍त नहीं कर दिया। संजय! भीष्‍म जी सम्‍पूर्ण लोकों के स्‍वामी परमेष्‍ठी प्रजापति ब्रह्मा जी के समान अजेय थे; फिर पाण्‍डव उनके ऊपर कैसे प्रहार कर सके? संजय! जिन द्वीपस्‍वरूप भीष्‍म जी के आश्रय में निर्भय एवं निश्चिंत होकर समस्‍त कौरव शत्रुओं के साथ युद्ध करते थे, उन्‍हीं नरश्रेष्‍ठ भीष्‍म को तुम मारा गया बता रहे हो, यह कितने दु:ख की बात है? जिनके पराक्रम का आश्रय लेकर विशाल सेनाओं से सम्‍पन्‍न मेरा पुत्र पाण्‍डवों को कुछ नहीं गिनता था, वे शत्रुओं द्वारा किस प्रकार मारे गये? पहले की बात है, दानवों का संहार करने वाले सम्‍पूर्ण देवताओं ने जिन मेरे महान व्रतधारी पिता रणदुर्मद भीष्‍म जी को अपना सहायक बनाने की अभिलाषा की थी, जिन महापराक्रमी पुत्ररत्‍न के जन्‍म लेने पर लोकविख्‍यात महाराज शांतनु ने शोक, दीनता और दु:ख का सदा के लिये त्‍याग कर दिया था, जो सबके आश्रयदाता, बुद्धिमान, स्‍वधर्मपरायण, पवित्र और वेदवेदांगों के तत्त्वज्ञ बताये गये हैं, उन्‍हीं भीष्‍म को तुम मारा गया कैसे बता रहे हो? जो सम्‍पूर्ण अस्त्र-शस्त्रों की शिक्षा से सम्‍पन्‍न, शांत, जितेन्द्रिय और मनस्‍वी थे, उन शांतनुनंदन भीष्‍म को मारा गया सुनकर मुझे यह विश्वास हो गया कि अब हमारी सारी सेना मार दी गयी। आज मुझे निश्चित रूप से ज्ञात हुआ कि धर्म से अधर्म ही बलवान है; क्‍योंकि पाण्‍डव अपने वृद्ध गुरुजन की हत्‍या करके राज्‍य लेना चाहते हैं।[2]

पूर्वकाल में अम्‍बा के लिये उद्यत होकर सम्‍पूर्ण अस्त्र-वेत्ताओं में श्रेष्ठ जगदग्निनंदन परशुराम युद्ध करने के लिये आये थे, परंतु भीष्‍म ने उन्‍हें परास्‍त कर दिया, उन्‍हीं इन्‍द्र के समान पराक्रमी तथा सम्‍पूर्ण धनुर्धरों में श्रेष्‍ठ भीष्‍म को तुम मारा गया कह रहे हो, इससे बढ़कर दु:ख की बात और क्‍या हो सकती है? शत्रुवीरों का संहार करने वाले जिन वीरवर परशुराम जी ने अनेक बार समस्‍त क्षत्रियों को युद्ध में परास्‍त किया था, उनसे भी जो मारे न जा सके, ये ही परम बुद्धिमान भीष्‍म आज शिखण्‍डी के हाथ से मार दिये गये! इससे जान पड़ता है कि महापराक्रमी युद्धदुर्मद परशुराम जी की अपेक्षा भी तेज, पराक्रम और बल में द्रुपदकुमार शिखण्‍डी निश्चय ही बहुत बढ़ा-चढ़ा है, जिसने सम्‍पूर्ण शास्त्रों के ज्ञान में निपुण, परमास्त्रवेत्ता और शूरवीर विद्वान भरतकुशलभूषण भीष्‍म जी का वध कर डाला है। उस समय युद्ध में शत्रुहंता भीष्‍म जी के साथ कौन-कौन से वीर थे?

संजय! पाण्‍डवों के साथ भीष्‍म का किस प्रकार युद्ध हुआ? यह मुझे बताओ। उन वीर सेनापति के मारे जाने पर मेरे पुत्र की सेनाविधवा स्‍त्री के समान असहाय हो गयी है। जैसे ग्‍वाले के बिना गौओं का समुदाय इधर-उधर भटकता फिरता है, उसी प्रकार अब मेरी सेना उद्भ्रांत हो रही होगी। महान युद्ध के समय जिनमें सम्‍पूर्ण जगत का परम पुरुषार्थ प्रकट दिखायी देता था, वे ही भीष्‍म जब परलोक के पथिक हो गये? उस समय तुम लोगों के मन की अवस्‍था कैसी हुई थी। संजय! आज जीवित रहने पर भी हम लोगों में क्‍या सामर्थ्‍य है? जगत के विख्‍यात धर्मात्‍मा महापराक्रमी पिता भीष्‍म को युद्ध में मरबाकर हम उसी प्रकार शोक में डूबे गये हैं, जैसे पार जाने की इच्‍छा वाले पथिक नाव को अगाध जल में डूबी हुई देखकर दुखी होते हैं।[2] मैं समझता हूँ कि भीष्‍म जी के मारे जाने पर मेरे बेटे दु:ख के कारण अत्‍यंतशोकमग्‍न हो गये होंगे। संजय! मेरा हृदय निश्चय ही लोहे का बना हुआ है, जो पुरुषसिंह भीष्‍म को मारा गया सुनकर भी विदीर्ण नहीं हो रहा है। जिन पुरुष रत्‍न तथा दुर्घर्ष वीरशिरोमणि में अस्त्र, बुद्धि और नीति तीन अप्रमेय शक्तियां थीं, वे युद्ध में कैसे मारे गये? जान पड़ता है कि अस्त्र से शौर्य से, तपस्या से, बुद्धि से, धैर्य से तथा त्‍याग के द्वारा भी कोई मृत्‍यु से छूट नहीं सकता है। [3]


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 1.3 महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 14 श्लोक 1-20
  2. 2.0 2.1 महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 14 श्लोक 38-56
  3. महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 14 श्लोक 57-80

सम्बंधित लेख

महाभारत भीष्म पर्व में उल्लेखित कथाएँ


जम्बूखण्डविनिर्माण पर्व
कुरुक्षेत्र में उभय पक्ष के सैनिकों की स्थिति | कौरव-पांडव द्वारा युद्ध के नियमों का निर्माण | वेदव्यास द्वारा संजय को दिव्य दृष्टि का दान | वेदव्यास द्वारा भयसूचक उत्पातों का वर्णन | वेदव्यास द्वारा अमंगलसूचक उत्पातों का वर्णन | वेदव्यास द्वारा विजयसूचक लक्षणों का वर्णन | संजय द्वारा धृतराष्ट्र से भूमि के महत्त्व का वर्णन | पंचमहाभूतों द्वारा सुदर्शन द्वीप का संक्षिप्त वर्णन | सुदर्शन द्वीप के वर्ष तथा शशाकृति आदि का वर्णन | उत्तर कुरु, भद्राश्ववर्ष तथा माल्यवान का वर्णन | रमणक, हिरण्यक, शृंगवान पर्वत तथा ऐरावतवर्ष का वर्णन | भारतवर्ष की नदियों तथा देशों का वर्णन | भारतवर्ष के जनपदों के नाम तथा भूमि का महत्त्व | युगों के अनुसार मनुष्यों की आयु तथा गुणों का निरूपण
भूमि पर्व
संजय द्वारा शाकद्वीप का वर्णन | कुश, क्रौंच तथा पुष्कर आदि द्वीपों का वर्णन | राहू, सूर्य एवं चन्द्रमा के प्रमाण का वर्णन
श्रीमद्भगवद्गीता पर्व
संजय का धृतराष्ट्र को भीष्म की मृत्यु का समाचार सुनाना | भीष्म के मारे जाने पर धृतराष्ट्र का विलाप | धृतराष्ट्र का संजय से भीष्मवध घटनाक्रम जानने हेतु प्रश्न करना | संजय द्वारा युद्ध के वृत्तान्त का वर्णन आरम्भ करना | दुर्योधन की सेना का वर्णन | कौरवों के व्यूह, वाहन और ध्वज आदि का वर्णन | कौरव सेना का कोलाहल तथा भीष्म के रक्षकों का वर्णन | अर्जुन द्वारा वज्रव्यूह की रचना | भीमसेन की अध्यक्षता में पांडव सेना का आगे बढ़ना | कौरव-पांडव सेनाओं की स्थिति | युधिष्ठिर का विषाद और अर्जुन का उन्हें आश्वासन | युधिष्ठिर की रणयात्रा | अर्जुन द्वारा देवी दुर्गा की स्तुति | अर्जुन को देवी दुर्गा से वर की प्राप्ति | सैनिकों के हर्ष तथा उत्साह विषयक धृतराष्ट्र और संजय का संवाद | कौरव-पांडव सेना के प्रधान वीरों तथा शंखध्वनि का वर्णन | स्वजनवध के पाप से भयभीत अर्जुन का विषाद | कृष्ण द्वारा अर्जुन का उत्साहवर्धन एवं सांख्ययोग की महिमा का प्रतिपादन | कृष्ण द्वारा कर्मयोग एवं स्थितप्रज्ञ की स्थिति और महिमा का प्रतिपादन | कर्तव्यकर्म की आवश्यकता का प्रतिपादन एवं स्वधर्मपालन की महिमा का वर्णन | कामनिरोध के उपाय का वर्णन | निष्काम कर्मयोग तथा योगी महात्मा पुरुषों के आचरण एवं महिमा का वर्णन | विविध यज्ञों तथा ज्ञान की महिमा का वर्णन | सांख्ययोग, निष्काम कर्मयोग, ज्ञानयोग एवं ध्यानयोग का वर्णन | निष्काम कर्मयोग का प्रतिपादन और आत्मोद्धार के लिए प्रेरणा | ध्यानयोग एवं योगभ्रष्ट की गति का वर्णन | ज्ञान-विज्ञान एवं भगवान की व्यापकता का वर्णन | कृष्ण का अर्जुन से भगवान को जानने और न जानने वालों की महिमा का वर्णन | ब्रह्म, अध्यात्म तथा कर्मादि विषयक अर्जुन के सात प्रश्न और उनका उत्तर | कृष्ण द्वारा भक्तियोग तथा शुक्ल और कृष्ण मार्गों का प्रतिपादन | ज्ञान विज्ञान सहित जगत की उत्पत्ति का वर्णन | प्रभावसहित भगवान के स्वरूप का वर्णन | आसुरी और दैवी सम्पदा वालों का वर्णन | सकाम और निष्काम उपासना का वर्णन | भगवद्भक्ति की महिमा का वर्णन | कृष्ण द्वारा अर्जुन से शरणागति भक्ति के महत्त्व का वर्णन | कृष्ण द्वारा अपनी विभूति और योगशक्ति का वर्णन | कृष्ण द्वारा प्रभावसहित भक्तियोग का कथन | कृष्ण द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का पुन: वर्णन | अर्जुन द्वारा कृष्ण से विश्वरूप का दर्शन कराने की प्रार्थना | कृष्ण और संजय द्वारा विश्वरूप का वर्णन | अर्जुन द्वारा कृष्ण के विश्वरूप का देखा जाना | अर्जुन द्वारा कृष्ण की स्तुति और प्रार्थना | कृष्ण के विश्वरूप और चतुर्भुजरूप के दर्शन की महिमा का कथन | साकार और निराकार उपासकों की उत्तमता का निर्णय | भगवत्प्राप्ति वाले पुरुषों के लक्षणों का वर्णन | ज्ञान सहित क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ का वर्णन | प्रकृति और पुरुष का वर्णन | ज्ञान की महिमा और प्रकृति-पुरुष से जगत की उत्पत्ति का वर्णन | सत्त्व, रज और तम गुणों का वर्णन | भगवत्प्राप्ति के उपाय तथा गुणातीत पुरुषों के लक्षणों का वर्णन | संसारवृक्ष और भगवत्प्राप्ति के उपाय का वर्णन | प्रभाव सहित परमेश्वर के स्वरूप और पुरुषोत्तम के तत्त्व का वर्णन | दैवी और आसुरी सम्पदा का फलसहित वर्णन | शास्त्र के अनुकूल आचरण करने के लिए प्रेरणा | श्रद्धा और शास्त्र विपरीत घोर तप करने वालों का वर्णन | आहार, यज्ञ, तप और दान के भेद की व्याख्या | ओम, तत्‌ और सत्‌ के प्रयोग की व्याख्या | त्याग और सांख्यसिद्धान्त का वर्णन | भक्तिसहित निष्काम कर्मयोग का वर्णन | फल सहित वर्ण-धर्म का वर्णन | उपासना सहित ज्ञाननिष्ठा का वर्णन | भक्तिप्रधान कर्मयोग की महिमा का वर्णन | गीता के माहात्म्य का वर्णन
भीष्मवध पर्व
युधिष्ठिर का भीष्म, द्रोण आदि से अनुमति लेकर युद्ध हेतु तैयार होना | कौरव-पांडवों के प्रथम दिन के युद्ध का प्रारम्भ | उभय पक्ष के सैनिकों का द्वन्द्व युद्ध | कौरव-पांडव सेना का घमासान युद्ध | भीष्म के साथ अभिमन्यु का भयंकर युद्ध | शल्य द्वारा उत्तरकुमार का वध और श्वेत का पराक्रम | विराट के पुत्र श्वेत का महापराक्रम | भीष्म द्वारा श्वेत का वध | भीष्म का प्रचण्ड पराक्रम तथा प्रथम दिन के युद्ध की समाप्ति | युधिष्ठिर की चिंता और श्रीकृष्ण द्वारा उनको आश्वासन | धृष्टद्युम्न का उत्साह और क्रौंचारुण व्यूह की रचना | कौरव सेना की व्यूह रचना | कौरव-पांडव सेना में शंखध्वनि और सिंहनाद | भीष्म और अर्जुन का युद्ध | धृष्टद्युम्न और द्रोणाचार्य का युद्ध | भीमसेन का कलिंगों और निषादों से युद्ध | भीमसेन द्वारा शक्रदेव और भानुमान का वध | भीमसेन द्वारा कई गजराजों और केतुमान का वध | भीमसेन द्वारा कौरव सेना के असंख्य सैनिकों का वध | अभिमन्यु और अर्जुन का पराक्रम तथा दूसरे दिन के युद्ध की समाप्ति | कौरव-पांडवों की व्यूह रचना | उभय पक्ष की सेनाओं का घमासान युद्ध | पांडव वीरों का पराक्रम और कौरव सेना में भगदड़ | दुर्योधन और भीष्म का संवाद | भीष्म का पराक्रम | कृष्ण का भीष्म को मारने के लिए उद्यत होना | अर्जुन द्वारा कौरव सेना की पराजय और तीसरे दिन के युद्ध की समाप्ति | कौरव-पांडव सेनाओं का व्यूह निर्माण | भीष्म और अर्जुन का द्वैरथ युद्ध | अभिमन्यु का पराक्रम | धृष्टद्युम्न द्वारा शल के पुत्र का वध | धृष्टद्युम्न और शल्य आदि दोनों पक्ष के वीरों का युद्ध | भीमसेन द्वारा गजसेना का संहार | भीमसेन का पराक्रम | सात्यकि और भूरिश्रवा की मुठभेड़ | भीमसेन और घटोत्कच का पराक्रम | कौरवों की पराजय तथा चौथे दिन के युद्ध की समाप्ति | धृतराष्ट्र-संजय प्रसंग में दुर्योधन का भीष्म से पांडवों की विजय का कारण पूछना | भीष्म का ब्रह्मा द्वारा की हुई भगवत-स्तुति का कथन | नारायणावतार श्रीकृष्ण एवं नरावतार अर्जुन की महिमा का प्रतिपादन | भगवान श्रीकृष्ण की महिमा | ब्रह्मभूतस्तोत्र तथा श्रीकृष्ण और अर्जुन की महत्ता | कौरवों द्वारा मकरव्यूह तथा पांडवों द्वारा श्येनव्यूह का निर्माण | भीष्म और भीमसेन का घमासान युद्ध | भीष्म, अर्जुन आदि योद्धाओं का घमासान युद्ध | कौरव-पांडव सेनाओं का परस्पर घोर युद्ध | कौरव-पांडव योद्धाओं का द्वन्द्व युद्ध | भूरिश्रवा द्वारा सात्यकि के दस पुत्रों का वध | अर्जुन का पराक्रम तथा पाँचवें दिन के युद्ध की समाप्ति | पांडवों द्वारा मकरव्यूह तथा कौरवों द्वारा क्रौंचव्यूह का निर्माण | धृतराष्ट्र की चिन्ता | भीमसेन, धृष्टद्युम्न तथा द्रोणाचार्य का पराक्रम | उभय पक्ष की सेनाओं का संकुल युद्ध | भीमसेन के द्वारा दुर्योधन की पराजय | अभिमन्यु आदि का धृतराष्ट्रपुत्रों के साथ युद्ध तथा छठे दिन के युद्ध की समाप्ति | भीष्म द्वारा दुर्योधन को आश्वासन | कौरव-पांडव सेनाओं का मण्डल और वज्रव्यूह बनाकर भीषण संघर्ष | श्रीकृष्ण और अर्जुन से डरकर कौरव सेना में भगदड़ | द्रोणाचार्य और विराट का युद्ध तथा विराटपुत्र शंख का वध | शिखण्डी और अश्वत्थामा का युद्ध | सात्यकि द्वारा अलम्बुष की पराजय | धृष्टद्युम्न और दुर्योधन तथा भीमसेन और कृतवर्मा का युद्ध | इरावान द्वारा विन्द-अनुविन्द की पराजय | भगदत्त द्वारा घटोत्कच की पराजय | मद्रराज पर नकुल और सहदेव की विजय | युधिष्ठिर द्वारा राजा श्रुतायु की पराजय | महाभारत युद्ध में चेकितान और कृपाचार्य का मूर्छित होना | भूरिश्रवा से धृष्टकेतु तथा अभिमन्यु से चित्रसेन आदि की पराजय | सुशर्मा आदि से अर्जुन का युद्धारम्भ | अर्जुन का पराक्रम और पांडवों का भीष्म पर आक्रमण | युधिष्ठिर का शिखण्डी को उपालम्भ | भीमसेन का पुरुषार्थ | भीष्म और युधिष्ठिर का युद्ध | धृष्टद्युम्न के साथ विन्द-अनुविन्द का संग्राम | द्रोण आदि का पराक्रम और सातवें दिन के युद्ध की समाप्ति | व्यूहबद्ध कौरव-पांडव सेनाओं की रणयात्रा | व्यूहबद्ध कौरव-पांडव सेनाओं का घमासान युद्ध | भीष्म का रणभूमि में पराक्रम | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के आठ पुत्रों का वध | दुर्योधन और भीष्म का युद्ध विषयक वार्तालाप | कौरव-पांडव सेना का घमासान युद्ध और भयानक जनसंहार | इरावान द्वारा शकुनि के भाइयों का वध | अलम्बुष द्वारा इरावान का वध | घटोत्कच और दुर्योधन का भयानक युद्ध | घटोत्कच का दुर्योधन एवं द्रोण आदि वीरों के साथ युद्ध | घटोत्कच की रक्षा के लिए भीमसेन का आगमन | भीम आदि शूरवीरों के साथ कौरवों का युद्ध | दुर्योधन और भीमसेन तथा अश्वत्थामा और राजा नील का युद्ध | घटोत्कच की माया से कौरव सेना का पलायन | भीष्म की आज्ञा से भगदत्त का घटोत्कच से युद्ध हेतु प्रस्थान | भगदत्त का घटोत्कच, भीमसेन और पांडव सेना के साथ युद्ध | इरावान के वध से अर्जुन का दु:खपूर्ण उद्गार | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के नौ पुत्रों का वध | अभिमन्यु और अम्बष्ठ का युद्ध | युद्ध की भयानक स्थिति का वर्णन और आठवें दिन के युद्ध की समाप्ति | दुर्योधन की शकुनि तथा कर्ण आदि के साथ पांडवों पर विजय हेतु मंत्रणा | दुर्योधन का भीष्म से पांडवों का वध अथवा कर्ण को युद्ध हेतु आज्ञा देने का अनुरोध | भीष्म का दुर्योधन को अर्जुन का पराक्रम बताना और भयंकर युद्ध की प्रतिज्ञा | दुर्योधन द्वारा भीष्म की रक्षा की व्यवस्था | उभयपक्ष की सेनाओं की व्यूह रचना तथा घमासान युद्ध | विनाशसूचक उत्पातों का वर्णन | अभिमन्यु के पराक्रम से कौरव सेना का युद्धभूमि से पलायन | अभिमन्यु तथा द्रौपदी के पुत्रों का अलम्बुष से घोर युद्ध | अभिमन्यु द्वारा अलम्बुष की पराजय | अर्जुन के साथ भीष्म का युद्ध | कृपाचार्य, द्रोणाचार्य तथा अश्वत्थामा के साथ सात्यकि का युद्ध | द्रोणाचार्य और सुशर्मा के साथ अर्जुन का युद्ध | भीमसेन द्वारा रणभूमि में गजसेना का संहार | कौरव-पांडव उभय पक्ष की सेनाओं का घमासान युद्ध | रक्तमयी रणनदी का वर्णन | अर्जुन द्वारा त्रिगर्तों की पराजय | अभिमन्यु से चित्रसेन की पराजय | सात्यकि और भीष्म का युद्ध | दुर्योधन द्वारा दु:शासन को भीष्म की रक्षा का आदेश | शकुनि की घुड़सवार सेना की पराजय | युधिष्ठिर और नकुल-सहदेव के साथ शल्य का युद्ध | भीष्म द्वारा पराजित पांडव सेना का पलायन | भीष्म को मारने के लिए कृष्ण का उद्यत होना | अर्जुन द्वारा उद्यत हुए कृष्ण को रोकना | नवें दिन के युद्ध की समाप्ति | कृष्ण व पांडवों की गुप्त मंत्रणा | कृष्णसहित पांडवों का भीष्म से उनके वध का उपाय पूछना | उभयपक्ष की सेना का रण प्रस्थान व दसवें दिन के युद्ध का प्रारम्भ | शिखण्डी को आगे कर पांडवों का भीष्म पर आक्रमण | शिखंडी एवं भीष्म का युद्ध | भीष्म-दुर्योधन संवाद | भीष्म द्वारा लाखों पांडव सैनिकों का संहार | अर्जुन के प्रोत्साहन से शिखंडी का भीष्म पर आक्रमण | दु:शासन का अर्जुन के साथ घोर युद्ध | कौरव-पांडव पक्ष के प्रमुख महारथियों के द्वन्द्वयुद्ध का वर्णन | द्रोणाचार्य का अश्वत्थामा को अशुभ शकुनों की सूचना देना | द्रोणाचार्य का अश्वत्थामा को धृष्टद्युम्न से युद्ध करने का आदेश | कौरव पक्ष के दस महारथियों के साथ भीम का घोर युद्ध | कौरव महारथियों के साथ भीम और अर्जुन का अद्भुत पुरुषार्थ | भीष्म के आदेश से युधिष्ठिर का उन पर आक्रमण | कौरव-पांडव सैनिकों का भीषण युद्ध | कौरव-पांडव महारथियों के द्वन्द्वयुद्ध का वर्णन | भीष्म का अद्भुत पराक्रम | उभय पक्ष की सेनाओं का युद्ध तथा दु:शासन का पराक्रम | अर्जुन के द्वारा भीष्म का मूर्च्छित होना | भीष्म द्वारा पांडव सेना का भीषण संहार | अर्जुन का भीष्म को रथ से गिराना | शरशय्या पर स्थित भीष्म के पास ऋषियों का आगमन | भीष्म द्वारा उत्तरायण की प्रतीक्षा कर प्राण धारण करना | भीष्म की महत्ता | अर्जुन द्वारा भीष्म को तकिया देना | उभय पक्ष की सेनाओं का अपने शिबिर में जाना एवं कृष्ण-युधिष्ठिर संवाद | अर्जुन द्वारा भीष्म की प्यास बुझाना | अर्जुन की प्रसंशा कर भीष्म का दुर्योधन को संधि के लिए समझाना | भीष्म और कर्ण का रहस्यमय संवाद

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः