- संजय युद्धभूमि लौटकर आते हैं और धृतराष्ट्र को पितामह भीष्म की मृत्यु का समाचार सुनाते हैं, जिसे सुनकर धृतराष्ट्र बहुत दु:खी होते हैं। वह संजय से बार-बार युद्ध में भीष्म जी के साथ होने वाली घटनाओं के विषय में पूछते हैं और विलाप करते हैं, जिसका उल्लेख महाभारत भीष्म पर्व में श्रीमद्भगवद्गीता पर्व के अंतर्गत 14वें अध्याय में निम्न प्रकार हुआ है[1]-
विषय सूची
भीष्म की मृत्यु पर धृतराष्ट्र का विलाप करना
धृतराष्ट्र बोले- संजय! कुरुकुल के श्रेष्ठतम पुरुष मेरे पितृतुल्य भीष्म शिखण्डी के हाथ से कैसे मारे गये? वे इन्द्र के समान पराक्रमी थे, वे रथ से कैसे गिरे? संजय! जिन्होंने अपने पिता के संतोष के लिये आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन किया और जो देवताओं के समान बलवान थे, उन्हीं भीष्म से रहित होकर आज हमारे सैनिकों की कैसी अवस्था हुई है? यह बताओ महाज्ञानी, महाधनुर्धर, महाबली ओर महान धैर्यशाली नरश्रेष्ठ भीष्म जी के मारे जाने पर तुम्हारे मन की कैसी अवस्था हुई? संजय! तुम कहते हो, अकम्प्य वीर पुरुषसिंह, कुरुकुलशिरोमणि भीष्म जी मारे गये- इसे सुनकर मेरे हृदय में बड़ी पीड़ा हो रही हैं। संजय! जिस समय वे युद्ध के लिये अग्रसर हुए थे, उस समय इनके पीछे कौन गये थे अथवा उनके आगे कौन-कौन वीर थे? कौन उनके साथ युद्ध में डटे रहे? कौन युद्ध छोड़कर भाग गये? और किन लोगों ने सर्वथा उनका अनुसरण किया था? किन शूरवीर ने शत्रुसेना में प्रवेश करते समय रथियों में सिंह के समान अद्भुत पराक्रमी क्षत्रियशिरोमणि भीष्म जी के पास सहसा पहुँचकर सदा उनके पृष्ठभाग का अनुसरण किया? जैसे सूर्य अन्धकार को नष्ट कर देता है, उसी प्रकार शत्रुसूदन भीष्म शत्रुसेना का नाश करते थे। जिनका तेज सहस्र किरणों वाले सूर्य के समान था, जिन्होंने शत्रुओं को भयभीत कर रखा था। जिन्होंने युद्ध में पाण्डवों पर दुष्कर पराक्रम किया था तथा जो उनकी सेना का निरन्तर संहार कर रहे थे, उन अस्त्रविद्या के ज्ञाता दुर्जय वीर भीष्म जी को जिन्होंने रोका है, वे कौन हैं?
संजय! तुम तो उनके पास ही थे, पाण्डवों ने युद्ध में शान्तनुनन्दन भीष्म को किस प्रकार आगे बढ़ने से रोका? जो शत्रुपक्ष की सेनाओं का निरन्तर उच्छेद करते थे, बाण ही जिनकी दाढे़ थीं, धनुष ही खुला मुख था, तलवार ही जिनकी जिह्वा थी, उन भयकर एवं दुर्धर्ष पुरुषसिंह भीष्म को कुन्तीनन्दन अर्जुन ने युद्ध में कैसे मार गिराया? मनस्वी भीष्म इस प्रकार पराजय के योग्य नहीं थे। वे लज्जाशील और पराजयशून्य थे। जो उत्तम रथ पर बैठकर भयंकर धनुष और भयानक बाण लिये शत्रुओं के मस्तकों को सांयकों द्वारा काट-काटकर उनके ढेर लगा रहे थे। पाण्डवों की विशाल सेना दुर्धर्ष कालाग्नि के समान जिन्हें युद्ध के लिये उद्यम देख सदा कांपने लगती थी। वे ही शत्रुसूदन भीष्म दस दिनों तक शत्रुओं की सेना का संहार करते हुए अत्यन्त दुष्कर पराक्रम दिखाकर सूर्य की भाँति अस्त हो गये।
जिन्होंने इन्द्र के समान युद्ध में दस दिनों तक अक्षय बाणों की वर्षा करके इस करोड़ विपक्षी सेनाओं का संहार कर डाला, वे ही भरतवंशी वीर भीष्म मेरी कुमन्त्रणा के कारण आंधी से उखाडे़ गये वृक्ष की भाँति युद्ध में मारे जाकर पृथ्वी पर शयन कर रहे हैं, वे कदापि इसके योग्य नहीं थे। शान्तनुनन्दन भीष्म तो बड़े भयंकर पराक्रमी थे, उन्हें सामने देखकर पाण्डवसेना उन पर प्रहार कैसे कर सकी? संजय! पाण्डवों ने भीष्म के साथ संग्राम कैसे किया? द्रोणाचार्य के जीते-जी भीष्म विजयी कैसे नहीं हो सके? उस युद्ध में कृपाचार्य तथा भरद्वाजपुत्र द्रोणाचार्य दोनों ही उनके निकट थे तो भी योद्धाओं में श्रेष्ठ भीष्म कैसे मारे गये? भीष्म तो युद्ध में देवताओं के लिये भी दुर्जय एवं अतिरथी थे, फिर पाञ्चालराजकुमार शिखण्डी के हाथ से वे किस प्रकार मारे गये?[1]
जो रणभूमि में महाबली जमदग्निनन्दन परशुराम से भी टक्कर लेने की सदा इच्छा रखते थे, जिनका पराक्रम इन्द्र के समान था और परशुराम जी भी जिन्हें पराजित न कर सके थे; संजय! महारथियों के कुल में प्रकट हुए वे महावीर भीष्म समरभूमि में किस प्रकार मारे गये, यह मुझे बताओ; क्योंकि मुझे शान्ति नहीं मिल रही है। संजय! कभी युद्ध के पीछे न हटने वाले भीष्म जी का मेरे पक्ष के किन महाधनुर्धरों ने साथ नहीं छोड़ा? दुर्योधन की आज्ञा पाकर किन-किन वीरों ने उन्हें सब ओर से घेर रखा था? संजय! जब शिखण्डी आदि समस्त पाण्डव वीरों ने भीष्म पर आक्रमण किया, उस समय समस्त कौरवों ने कहीं अच्युत भीष्म का साथ छोड़ तो नहीं दिया था? अवश्य ही मेरा यह हृदय लोहे के समान सुदृढ़ है तभी तो पुरुषसिंह भीष्म को मारा गया सुनकर विदीर्ण नहीं होता है! जिन दुर्जय वीर भरतभूषण भीष्म में सत्य, मेघा और नीति- ये तीन अप्रमेय शक्तियां थी, वे युद्ध में कैसे मारे गये? वे युद्ध में महान मेघ के समान ऊंचे उठे हुए थे। धनुष की टंकार ही उनकी गर्जना थी, बाण ही उनके लिये वर्षा की बूँदें थीं और धनुष का महान शब्द ही बिजली की गड़गड़ाहट का भयंकर शब्द था।[1]
वीरवर भीष्म ने शत्रुपक्ष के रथियों- कुन्तीकुमारों, पाञ्चालों तथा सृंजयों को मारते हुए उनके ऊपर उसी प्रकार बाणों की बौछार की, जैसे वज्रधारी इन्द्र दानवों पर बाण-वर्षा करते हैं। उनका धनुष-बाण आदि अस्त्रसमुह भयंकर एवं दुर्गम समुद्र के समान था, बाण ही उसमें ग्राह थे, धनुष लहरों के समान जान पड़ता था, वह अक्षय, द्वीपरहित, चञ्चल तथा नौका आदि तैरने के साधनों से शून्य था। गदा ओर खड्ग आदि ही उसमें मगर के समान थे। वह अश्वरूपी भंवरों से भयावह प्रतीत होता थे, पैदल सेना उसमें भरे हुए मत्स्यों के समान जान पड़ती थी तथा शंख और दुन्दुभियों की ध्वनि ही उस समुद्र की गर्जना थी। भीष्म जी उस समुद्र में शत्रुपक्ष के हाथियों, घोड़ों, पैदलों तथा बहुसंख्यक रथों को वेगपूर्वक डुबो रहे थे। वे समरभूमि में शत्रुवीर के प्राणों का अपहरण करने वाले थे। अपने क्रोध और तेज से दग्ध एवं प्रज्वलित से होते हुए शत्रुसंतापी भीष्म को जैसे तट समुद्र को रोक देता हैं उसी प्रकार किन वीरों ने आगे बढ़ने से रोका था।
शत्रुहन्ता भीष्म ने दुर्योधन के हित के लिये समरभूमि में जो पराक्रम किया था, वह अनुपम है। उस समय कौन-कौन से योद्धा उनके आगे थे? किन-किन वीरों ने अमित-तेजस्वी भीष्म के रथ के दाहिने पहिये की रक्षा की थी? किन लोगों ने दृढ़तापूर्वक व्रत का पालन करते हुए उनके पीछे की ओर रहकर शत्रुपक्ष के वीरों को आगे बढ़ने से रोका था? कौन-कौन से वीर निकट से भीष्म की रक्षा करते हुए उनके आगे खडे़ थे? और किन वीरों ने युद्ध में लगे हुए शूरशिरोमणि भीष्म के बायें पहिये की रक्षा की थी? संजय! उनके बायें चक्र की रक्षा में तत्पर होकर किन-किन योद्धाओं ने सृंजयवंशियों का विनाश किया था तथा किन्होंने आगे रहकर सेना के अग्रणी दुर्जय वीर भीष्म की सब ओर से रक्षा की थी? संजय! किन लोगों ने दुर्गम संग्राम में आगे बढ़ते हुए उनके पार्श्वभाग का संरक्षण किया था? और किन्होंने उस सैन्यसमूह में आगे रहकर वीरतपूर्वक शत्रुयोद्धाओं का डटकर सामना किया था?[1]
जब मेरे पक्ष के बहुत-से वीर उनकी रक्षा करते थे और वे भी उन वीरों की रक्षा में दत्तचित्त थे तब भी उन सब लोगों ने मिलकर शत्रुपक्ष की दुर्जय सेनाओं को कैसे वेगपूर्वक परास्त नहीं कर दिया। संजय! भीष्म जी सम्पूर्ण लोकों के स्वामी परमेष्ठी प्रजापति ब्रह्मा जी के समान अजेय थे; फिर पाण्डव उनके ऊपर कैसे प्रहार कर सके? संजय! जिन द्वीपस्वरूप भीष्म जी के आश्रय में निर्भय एवं निश्चिंत होकर समस्त कौरव शत्रुओं के साथ युद्ध करते थे, उन्हीं नरश्रेष्ठ भीष्म को तुम मारा गया बता रहे हो, यह कितने दु:ख की बात है? जिनके पराक्रम का आश्रय लेकर विशाल सेनाओं से सम्पन्न मेरा पुत्र पाण्डवों को कुछ नहीं गिनता था, वे शत्रुओं द्वारा किस प्रकार मारे गये? पहले की बात है, दानवों का संहार करने वाले सम्पूर्ण देवताओं ने जिन मेरे महान व्रतधारी पिता रणदुर्मद भीष्म जी को अपना सहायक बनाने की अभिलाषा की थी, जिन महापराक्रमी पुत्ररत्न के जन्म लेने पर लोकविख्यात महाराज शांतनु ने शोक, दीनता और दु:ख का सदा के लिये त्याग कर दिया था, जो सबके आश्रयदाता, बुद्धिमान, स्वधर्मपरायण, पवित्र और वेदवेदांगों के तत्त्वज्ञ बताये गये हैं, उन्हीं भीष्म को तुम मारा गया कैसे बता रहे हो? जो सम्पूर्ण अस्त्र-शस्त्रों की शिक्षा से सम्पन्न, शांत, जितेन्द्रिय और मनस्वी थे, उन शांतनुनंदन भीष्म को मारा गया सुनकर मुझे यह विश्वास हो गया कि अब हमारी सारी सेना मार दी गयी। आज मुझे निश्चित रूप से ज्ञात हुआ कि धर्म से अधर्म ही बलवान है; क्योंकि पाण्डव अपने वृद्ध गुरुजन की हत्या करके राज्य लेना चाहते हैं।[2]
पूर्वकाल में अम्बा के लिये उद्यत होकर सम्पूर्ण अस्त्र-वेत्ताओं में श्रेष्ठ जगदग्निनंदन परशुराम युद्ध करने के लिये आये थे, परंतु भीष्म ने उन्हें परास्त कर दिया, उन्हीं इन्द्र के समान पराक्रमी तथा सम्पूर्ण धनुर्धरों में श्रेष्ठ भीष्म को तुम मारा गया कह रहे हो, इससे बढ़कर दु:ख की बात और क्या हो सकती है? शत्रुवीरों का संहार करने वाले जिन वीरवर परशुराम जी ने अनेक बार समस्त क्षत्रियों को युद्ध में परास्त किया था, उनसे भी जो मारे न जा सके, ये ही परम बुद्धिमान भीष्म आज शिखण्डी के हाथ से मार दिये गये! इससे जान पड़ता है कि महापराक्रमी युद्धदुर्मद परशुराम जी की अपेक्षा भी तेज, पराक्रम और बल में द्रुपदकुमार शिखण्डी निश्चय ही बहुत बढ़ा-चढ़ा है, जिसने सम्पूर्ण शास्त्रों के ज्ञान में निपुण, परमास्त्रवेत्ता और शूरवीर विद्वान भरतकुशलभूषण भीष्म जी का वध कर डाला है। उस समय युद्ध में शत्रुहंता भीष्म जी के साथ कौन-कौन से वीर थे?
संजय! पाण्डवों के साथ भीष्म का किस प्रकार युद्ध हुआ? यह मुझे बताओ। उन वीर सेनापति के मारे जाने पर मेरे पुत्र की सेनाविधवा स्त्री के समान असहाय हो गयी है। जैसे ग्वाले के बिना गौओं का समुदाय इधर-उधर भटकता फिरता है, उसी प्रकार अब मेरी सेना उद्भ्रांत हो रही होगी। महान युद्ध के समय जिनमें सम्पूर्ण जगत का परम पुरुषार्थ प्रकट दिखायी देता था, वे ही भीष्म जब परलोक के पथिक हो गये? उस समय तुम लोगों के मन की अवस्था कैसी हुई थी। संजय! आज जीवित रहने पर भी हम लोगों में क्या सामर्थ्य है? जगत के विख्यात धर्मात्मा महापराक्रमी पिता भीष्म को युद्ध में मरबाकर हम उसी प्रकार शोक में डूबे गये हैं, जैसे पार जाने की इच्छा वाले पथिक नाव को अगाध जल में डूबी हुई देखकर दुखी होते हैं।[2] मैं समझता हूँ कि भीष्म जी के मारे जाने पर मेरे बेटे दु:ख के कारण अत्यंतशोकमग्न हो गये होंगे। संजय! मेरा हृदय निश्चय ही लोहे का बना हुआ है, जो पुरुषसिंह भीष्म को मारा गया सुनकर भी विदीर्ण नहीं हो रहा है। जिन पुरुष रत्न तथा दुर्घर्ष वीरशिरोमणि में अस्त्र, बुद्धि और नीति तीन अप्रमेय शक्तियां थीं, वे युद्ध में कैसे मारे गये? जान पड़ता है कि अस्त्र से शौर्य से, तपस्या से, बुद्धि से, धैर्य से तथा त्याग के द्वारा भी कोई मृत्यु से छूट नहीं सकता है। [3]
टीका टिप्पणी व संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 1.3 महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 14 श्लोक 1-20
- ↑ 2.0 2.1 महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 14 श्लोक 38-56
- ↑ महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 14 श्लोक 57-80
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| भीष्म-दुर्योधन संवाद
| भीष्म द्वारा लाखों पांडव सैनिकों का संहार
| अर्जुन के प्रोत्साहन से शिखंडी का भीष्म पर आक्रमण
| दु:शासन का अर्जुन के साथ घोर युद्ध
| कौरव-पांडव पक्ष के प्रमुख महारथियों के द्वन्द्वयुद्ध का वर्णन
| द्रोणाचार्य का अश्वत्थामा को अशुभ शकुनों की सूचना देना
| द्रोणाचार्य का अश्वत्थामा को धृष्टद्युम्न से युद्ध करने का आदेश
| कौरव पक्ष के दस महारथियों के साथ भीम का घोर युद्ध
| कौरव महारथियों के साथ भीम और अर्जुन का अद्भुत पुरुषार्थ
| भीष्म के आदेश से युधिष्ठिर का उन पर आक्रमण
| कौरव-पांडव सैनिकों का भीषण युद्ध
| कौरव-पांडव महारथियों के द्वन्द्वयुद्ध का वर्णन
| भीष्म का अद्भुत पराक्रम
| उभय पक्ष की सेनाओं का युद्ध तथा दु:शासन का पराक्रम
| अर्जुन के द्वारा भीष्म का मूर्च्छित होना
| भीष्म द्वारा पांडव सेना का भीषण संहार
| अर्जुन का भीष्म को रथ से गिराना
| शरशय्या पर स्थित भीष्म के पास ऋषियों का आगमन
| भीष्म द्वारा उत्तरायण की प्रतीक्षा कर प्राण धारण करना
| भीष्म की महत्ता
| अर्जुन द्वारा भीष्म को तकिया देना
| उभय पक्ष की सेनाओं का अपने शिबिर में जाना एवं कृष्ण-युधिष्ठिर संवाद
| अर्जुन द्वारा भीष्म की प्यास बुझाना
| अर्जुन की प्रसंशा कर भीष्म का दुर्योधन को संधि के लिए समझाना
| भीष्म और कर्ण का रहस्यमय संवाद
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