उभय पक्ष की सेनाओं का युद्ध तथा दु:शासन का पराक्रम

महाभारत भीष्म पर्व मेंं भीष्मवध पर्व के अंतर्गत 117वें अध्याय मेंं 'भीष्म के अद्भुत पराक्रम' का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है-[1]

अर्जुन के कहने पर शिखण्डी का भीष्म पर आक्रमण करना

संजय कहते हैं - महाराज! शिखण्डी ने रणक्षेत्र में पुरुष रत्न भीष्म के सामने पहुँचकर उनकी छाती में दस तीखे भल्ल नामक बाण मारे। भारत! गंगानन्दन भीष्म ने क्रोध से प्रज्वलित हुई दृष्टि एवं कनखियों से शिखण्डी की ओर इस प्रकार देखा, मानो वे उसे भस्म कर डालेंगे। राजन! किंतु उसके स्त्रीत्व का विचार करके भीष्मजी ने युद्ध स्थल में उस पर कोई आघात नहीं किया। इस बात को सब लोगों ने देखा, पर शिखण्डी इस बात को नहीं समझा सका। महाराज! उस समय अर्जुन ने शिखण्डी से कहा- वीर! तुम झटपट आगे बढ़ो और इन पितामह भीष्म का वध कर डालो। ‘वीर! उस विषय में बार-बार विचारने या संदेह निवारण के लिये कुछ कहने की आवश्‍यकता नहीं है। तुम महारथी भीष्म को शीघ्र मार डालो। युधिष्ठिर की सेना में तुम्हारे सिवा दूसरे किसी को ऐसा नहीं देखता, जो समरभूमि में भीष्म का सामना कर सके। पुरुषसिंह! मैं तुमसे यह सच्ची बात कह रहा हूँ। भरतश्रेष्ठ! अर्जुन के ऐसा कहने पर शिखण्डी तुरंत ही पितामह भीष्म पर नाना प्रकार के बाणों की वर्षा करने लगा। परंतु आपके पितृतुल्य देवव्रत ने उन बाणों की कुछ भी परवाह न करके समर में कुपित हुए अर्जुन को अपने बाणों द्वारा रोक दिया। आर्य! इसी प्रकार महारथी भीष्म ने पाण्डवों की उस सारी सेना को (जो उनके सामने मौजूद थी) अपने तीखें बाणों द्वारा मारकर परलोक भेज दिया। राजन! फिर विशाल सेना से घिरे हुए पाण्डवों ने अपने बाणों द्वारा भीष्म को उसी प्रकार ढक दिया, जैसे बादल सूर्यदेव को आच्छादित कर देते हैं।

दु:शासन का अद्‌भुत पराक्रम

भरतभूषण! उस रणक्षेत्र में सब ओर से घिरे हुए भीष्म वन में प्रज्वलित हुए दावानल के समान शूरवीरों को दग्ध करने लगे। उस समय वहाँ हमने आपके पुत्र दुःशासन अदभूत पराक्रम देखा। एक तो वह अर्जुन के साथ युद्ध कर रहा था और दूसरे पितामह भीष्म की रक्षा में भी तत्पर था। राजन! युद्ध में आपके धनुर्धर महामनस्वी पुत्र दुःशासन के उस पराक्रम से सब लोग बड़े संतुष्ट हुए। वह समर भूमि में अकेला ही अर्जुन सहित समस्त कुन्ती कुमारों से युद्ध कर रहा था। किन्‍तु वहाँ पाण्डव उस प्रचण्ड पराक्रमी दुःशासन को रोक नहीं पाते थे। दुःशासन ने वहाँ युद्ध के मैदान में कितने ही रथियों को रथहीन कर दिया। उसके तीखे बाणों से विदीर्ण होकर बहुत से महाधनुर्धर घुड़सवार और महाबली गजारोही पृथ्वी पर गिर पड़े उसके बाणों से आतुर होकर बहुत से दन्तार हाथी भी चारों दिशाओं में भागने लगे। जैसे आग ईधन पाकर दहकती हुई लपटों के साथ प्रचण्ड वेग से प्रज्वलित हो उठती है, उसी प्रकार पाण्डव सेना को दग्ध करता हुआ आपका पुत्र दुःशासन अपने तेज से प्रज्वलित हो रहा था। कृष्ण सारथी श्वेतवाहन महेन्द्र कुमार अर्जुन को छोड़कर दूसरा कोई भी पाण्डव महारथी भरतकुल के उस महाबली वीर को जीतने या उसके सामने जाने का साहस किसी प्रकार न कर सका। राजन! विजयी अर्जुन ने समर भूमि में दुःशासन को जीतकर समस्त सेनाओं के देखते-देखते भीष्म पर ही आक्रमण किया। भीष्म की भुजाओं के आश्रय में रहने वाला आपका मदोन्मत्त पुत्र दुःशासन पराजित होने पर भी बार-बार सुस्ता कर बड़े वेग से युद्ध करता था। राजन! अर्जुन उस रणक्षेत्र में युद्ध करते हुए बड़ी शोभा पा रहे थे।[1]


महाराज! उस समय रणक्षेत्र में शिखण्डी वज्र के समान स्पर्श वाले तथा सर्पविष के समान भयंकर बाणों द्वारा पितामह भीष्म को घायल करने लगा। परंतु जनेश्वशर! उसके चलाये हुए वे बाण आपके ताऊ के शरीर में कोई घाव या वेदना नहीं उत्पन्न कर पाते थे। गंगानन्दन भीष्म उस समय मुस्कराते हुए उन बाणों की चोट सह रहे थे। जैसे गर्मी से कष्ट पाने वाला मनुष्य अपने ऊपर जल की धारा ग्रहण करता है, उसी प्रकार गंगानन्दन भीष्म शिखण्डी की बाण धारा को ग्रहण कर रहे थे। महाराज! उस युद्ध स्थल में समस्त क्षत्रियों ने देखा, भयंकर रूपधारी भीष्म महामना पाण्डवों की सेनाओं को दग्ध कर रहे थे।

कौरव सेनाओं का अर्जुन से युद्ध करना

आर्य! उस समय आपके पुत्र ने अपने समस्त सैनिकों से कहा- ‘वीरों! तुम लोग समरभूमि में अर्जुन पर चारों ओर से धावा करो। ‘धर्मश भीष्म समरागंण में तुम सब लोगों की रक्षा करेंगे। अतः तुम लोग महान! भय का परित्याग करके पाण्डवों के साथ युद्ध करो। ‘सुवर्णमय तालचिह्न से युक्त विशाल ध्वज से सुशोभित होने वाले भीष्मजी हम सबकी रक्षा करते हुए युद्ध के मैदान में खड़े हैं। हम सभी धृतराष्ट्र पुत्रों के लिये ही कल्याणकारी आश्रय और कवच हैं। ‘यदि सम्पूर्ण देवता भी एकत्र हो युद्ध के लिये उद्योग करें तो वे भी भीष्म का सामना करने में समर्थ नहीं हो सकते, फिर कुन्ती के महाबली पुत्र तो मरणधर्मा मनुष्य ही हैं। वे उन महात्मा भीष्म का सामना क्या कर सकते हैं ? ‘अतः योद्धाओं! युद्धभूमि में अर्जुन को सामने पाकर पीछे न भागो। मैं स्वयं समरागंण में प्रयत्नपूर्वक आज पाण्डुकुमार अर्जुन के साथ युद्ध करूंगा। तुम सब नरेश सब ओर से सावधान होकर मेरे साथ रहो। राजन! आपके धनुर्धर पुत्र की ये जोशभरी बातें सुनकर वे सभी महाबली और शक्तिशाली योद्धारोष में भर गये। ये विदेह, कलिंग, दासेरक, निषाद (जाति), सौवीर, बाह्लीक, दरद, प्रतीच्य, उदीच्य, मालव, अभीषाह, शरसेन, शिबि, वसाति, शाल्व (योद्धा), शक, त्रिगर्त (राजा), अम्बष्ठ (जाति) और केकय देशों के नरेशगण उस महायुद्ध में कुन्ती कुमार अर्जुन पर उसी प्रकार धावा करने लगे, जैसे पतंग प्रज्वलित आग पर टूटे पड़ते हैं। राजेन्द्र! उस रणक्षेत्र में कुन्ती कुमार अर्जुन अप्रतिम तेजस्वी वीर थे और पूर्वोक्तल नरेश उनके सामने पतंगों के समान दोडे़ चले आ रहे थे। महाराज! महाबली धनंजय ने दिव्यास्त्रों का चिन्तन करके उनका धनुष पर संधान किया और उन महावेगशाली अस्त्रों द्वारा सेना सहित इन समस्त महारथियों को जलाकर भस्म कर डाला। जैसे आग पतंगों को जलाती है, उसी प्रकार अर्जुन ने अपने बाणों के प्रताप से उन सबको दग्ध कर दिया।

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 117 श्लोक 1-21

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जम्बूखण्डविनिर्माण पर्व
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भीष्मवध पर्व
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