- महाभारत भीष्म पर्व मेंं भीष्मवध पर्व के अंतर्गत 119वें अध्याय मेंं 'कौरव पक्ष के प्रमुख महारथियों द्वारा सुरक्षित होने पर भी अर्जुन का भीष्म को रथ से गिराना' का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है-[1]
विषय सूची
- 1 भीष्म का अर्जुन और शिखण्डी के साथ युद्ध
- 2 पांडव योद्धाओं का अर्जुन की रक्षा के लिये आना
- 3 अर्जुन का भीष्म से युद्ध
- 4 भीष्म का युद्ध न करने का विचार करना
- 5 ऋषियों और वसुओं द्वारा भीष्म के विचार का स्वागत करना
- 6 शिखण्डी द्वारा भीष्म को विर्दीण करना
- 7 भीष्म और दु:शासन की वार्तालाप
- 8 कौरव और पांडव सेनाओं के बीच भीषण युद्ध
- 9 अर्जुन द्वारा भीष्म को रथ से गिराना
- 10 टीका टिप्पणी व संदर्भ
- 11 सम्बंधित लेख
भीष्म का अर्जुन और शिखण्डी के साथ युद्ध
संजय कहते हैं - राजन! इस प्रकार शिखण्डी को आगे करके सभी पाण्डवों ने समर भूमि में भीष्म को सब ओर से घेरकर बींधना आरम्भ किया। समस्त सृंजय वीर एक साथ संगठित हो भयंकर शतघ्री, परिघ, फरसे, मुद्रर, मुसल, प्रास, गोफन, स्वर्णमय पंख वाले बाण, शक्ति, तोमर, कम्पन, नाराच, वत्मदन्त और भुशुण्डी आदि अस्त्र-शस्त्रों द्वारा रणभूमि में भीष्म को सब ओर से पीड़ा देने लगे। उस समय बहुसंख्यक योद्धाओं के द्वारा अनेक प्रकार के अस्त्रों से पीड़ित होने के कारण भीष्म का कवच छिन्न-भिन्न हो गया। उनके मर्मस्थान विदीर्ण होने लगे, तो भी उनके मन में व्यथा नहीं हुई। वे शत्रुओं के लिये प्रलयकाल की अग्नि के समान अदभुत तेज से प्रज्वलित हो उठे। धनुष और बाण ही धधकती हुई आग थे। अस्त्रों का प्रसार ही वायु का सहारा था। रथों के पहियों की घरघराहट उस आग की आंच थी। बड़े-बड़े अस्त्रों का प्राकट्य अंगार के समान था। विचित्र चाप ही उस आग की प्रचण्ड ज्वालाओं के समान था। बड़े-बड़े वीर ही ईधन के समान उसमें गिरकर भस्म हो रहे थे। पितामह भीष्म एक ही क्षण में रथ की पंक्ति तोड़ कर घेरे से बाहर निकल आते और पुनः राजाओं की सेना के मध्य भाग में प्रवेश करके वहाँ विचरते दिखायी देते थे।
प्रजानाथ! तत्पश्चात द्रुपद तथा धृष्टकेतु की कुछ भी परवाह नहीं करके वे पाण्डव सेना के भीतर घुस आये। फिर भयंकर शब्द करने वाले, महान वेगशाली, मर्मस्थानों और कवचों को भी विदीर्ण कर देने वाले, तीखें एवं उत्तम बाणों द्वारा उन्होंने सात्यकि, भीमसेन, पाण्डुपुत्र अर्जुन, विराट, द्रुपद तथा उनके पुत्र धृष्टद्युम्न- इन छः महारथियों को अत्यन्त घायल कर दिया। तब उन महारथी वीरों ने भीष्म के उन तीखें बाणों का निवारण करके पुनः दस-दस बाणों द्वारा भीष्म को बलपूर्वक पीड़ित किया। महारथी शिखण्डी ने जिन महान बाणों का प्रयोग किया था, वे सब सुवर्णमय पंख से युक्त और शिलापर रगड़कर तेज किये गये थे, तो भी भीष्मजी के शरीर में घाव या पीड़ा नहीं उत्पन्न कर सके। तब किरीटधारी अर्जुन ने कुपित हो शिखण्डी को आगे किये हुये ही भीष्म पर धावा किया और उनके धनुष को काट डाला। भीष्म के धनुष का काटा जाना कौरव महारथियों को सहन नहीं हुआ।
पांडव योद्धाओं का अर्जुन की रक्षा के लिये आना
द्रोण, कृतवर्मा, सिन्धुराज जयद्रथ, भूरिश्रवा, शल, शल्य और भगदत्त- ये सात महारथि अत्यन्त क्रुद्ध हो किरीटधारी अर्जुन की ओर दौड़े तथा अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्रों का प्रदर्शन करते हुए पाण्डुनन्दन अर्जुन को अत्यन्त क्रोधपूर्वक बाणों से आच्छादित करने लगे। अर्जुन के प्रति आक्रमण करते हुए उन वीरों का सिहंनाद उसी प्रकार सुनायी पड़ा, जैसे प्रलयकाल में अपनी मर्यादा छोड़कर बढ़ने वाले समुद्रों की भीषण गर्जना सुनायी पड़ती है। अर्जुन के रथ के समीप ‘मार डालो, ले आओ, पकड़ लो, बींध डालो, टुकड़े-टुकड़े कर दो’ इस प्रकार भयंकर शब्द गूंजने लगा। भरतश्रेष्ठ! उस भयानक शब्द को सुनकर पाण्डव महारथी अर्जुन की रक्षा के लिये दौड़े।[1] सात्यकि, भीमसेन, द्रुपद कुमार धृष्टद्युम्न, विराट, द्रुपद, राक्षस घटोत्कच और अभिमन्यु- ये सात वीर क्रोध से मूर्च्छित हो तुरंत ही विचित्र धनुष धारण किये वहाँ दौड़े आये। भरतभूषण! उनका वह भयंकर युद्ध देवासुर संग्राम के समान रोंगटे खड़े कर देने वाला था।[2]
अर्जुन का भीष्म से युद्ध
भीष्मजी का धनुष कट गया था। उसी अवस्था में अर्जुन से सुरक्षित शिखण्डी ने दस बाणों से उनके सारथी को भी घायल कर दिया। तत्पश्चात एक बाण से ध्वज को काट गिराया। तब शत्रुवीरों का संहार करने वाले गंगानन्दन भीष्म ने दूसरा अत्यन्त वेगशाली धनुष लेकर तीखे बाणों से अर्जुन का घायल करना आरम्भ किया। यह देख अर्जुनने उस धनुष को भी तीन पैने बाणों द्वारा काट डाला। इस प्रकार क्रोध में भरे हुए शत्रुसंतापी, सव्यसाची पाण्डुनन्दन अर्जुन जो-जो धनुष भीष्म लेते, उसी-उसी को काट डालते थे। धनुष कट जाने पर क्रोधपूर्वक अपने मुंहे के दोनों कोनों को चाटते हुए भीष्म ने बलपूर्वक एक शक्ति हाथ में ली, जो पर्वतों को भी विदीर्ण करने वाली थी। भरतश्रेष्ठ! फिर उसे क्रोधपूर्वक उन्होंने अर्जुन के रथ की ओर चला दिया। प्रज्वलित व्रज के समान उस शक्ति को आती देख पाण्डवों को आनन्दित करने वाले अर्जुन ने अपने हाथ में भल्ल नामक पांच तीखे बाण लिये और कुपित हो उन पांच बाणों द्वारा भीष्म की भुजाओं से प्रेरित हुई उस शक्ति के पांच टुकड़े कर दिये क्रोध में भरे हुए अर्जुन द्वारा काटी हुई वह शक्ति मेंघों के समूह से निर्मुक्त होकर गिरी हुई बिजली के समान पृथ्वी पर गिर पड़ी।
भीष्म का युद्ध न करने का विचार करना
अपनी उस शक्ति को छिन्न-भिन्न देख भीष्मजी क्रोध में निमग्न हो गये और शत्रुनगर विजयी उन वीर शिरोमणि रण क्षेत्र में अपनी बुद्धि के द्वारा इस प्रकार विचार किया- ‘यदि महाबली भगवान श्रीकृष्ण उन पाण्डवों की रक्षा न करते तो मैं इन सबको केवल एक धनुष के ही द्वारा मार सकता था। ‘भगवान सम्पूर्ण लोकों के लिये अजेय हैं। ऐसा मेरा विश्वास है। इस समय मैं दो कारणों का आश्रय लेकर पाण्डवों से युद्ध नहीं करूंगा। एक तो ये पाण्डु की संतान होने के कारण मेरे लिये अबध्य हैं और दूसरे मेरे सामने शिखण्डी आ गया है, जो पहले स्त्री था। ‘पूर्वकाल में जब मैंने माता सत्यवती का विवाह पिताजी के साथ कराया था, उस समय मेरे पिता ने संतुष्ट होकर मुझे दो वर दिये थे ‘जब तुम्हारी इच्छा होगी, तभी तुम मरोगे तथा युद्ध में कोई भी तुम्हें मार न सकेगा।’ ऐसी दशा में मुझे स्वेच्छा से ही मृत्यु स्वीकार कर लेनी चाहिए। मैं समझता हूँ कि अब उसका अवसर आ गया है।’
ऋषियों और वसुओं द्वारा भीष्म के विचार का स्वागत करना
अमित तेजस्वी भीष्म के इस निश्चय को जानकर आकाश में खड़े हुए ऋषियों और वसुओं ने उनसे इस प्रकार कहा-‘तात! तुमने जो निश्चय किया है, वह हम लोगों को भी बहुत प्रिय है। महाराज! अब तुम वहीं करो। युद्ध की ओर से अपनी चित्तवृति हटा लो। यह बात समाप्त होते ही जल की बूंदों के साथ सुखद, शीतल, सुगन्धित एवं मन के अनुकूल वायु चलने लगी। आर्य! देवताओं की दुन्दुभियां जोर-जोर से बज उठीं। भीष्म के ऊपर फूलों की वर्षा होने लगी। राजन! उस समय उपर्युक्त बातें कहने वाले ऋषियों का शब्द महाबाहु भीष्म तथा मुझको छोड़कर ओर कोई नहीं सुन सका। मुझे तो महर्षि व्यास के प्रभाव से ही वह बात सुनायी पड़ी।[2]
शिखण्डी द्वारा भीष्म को विर्दीण करना
संजय कहते हैं- प्रजानाथ! सम्पूर्ण लोकों के प्रिय भीष्म रथ से गिरना चाहते हैं, यह जानकर उस समय सम्पूर्ण देवताओं को भी महान आश्चर्यहुआ। देवताओं की वह बात सुनकर महातपस्वी शान्तनु नन्दन भीष्म समस्त आवरणों का भेदन करने वाले तीखे बाणों द्वारा विदीर्ण होने पर भी अर्जुन को जीतने का प्रयत्न न कर सके। महाराज! उस समय शिखण्डी ने कुपित होकर भरतवंशियों के पितामह भीष्म जी की छाती में नौ पैने बाणमारे। नरेश्वर! युद्ध में शिखण्डी के द्वारा आहत होकर भी कुरुवंशियों के पितामह भीष्म उसी प्रकार कम्पित नहीं हुए, जैसे भूकम्प होने पर भी पर्वत नहीं हिलता। तदनन्तर अर्जुन ने हंसकर गाण्डीव धनुष की टंकार करते हुए गंगानन्दन भीष्म को पचीस बाण मारे। तत्पश्चात पुनः उन्होंने अत्यन्त कुपित हो शीघ्रतापूर्वक सौ बाणों द्वारा भीष्म के सम्पूर्ण अंगों और सभी मर्म स्थानों में आघात किया। इसी प्रकार दूसरे लोगों ने भी सहस्रों बाणों द्वारा भीष्मजी को घायल किया। तब महारथी भीष्म ने भी तुरंत ही अपने बाणों द्वारा उन सबको बींध डाला। सत्य पराक्रमी भीष्म युद्ध स्थल में अन्य सब राजाओं द्वारा छोड़े हुए बाणों का झुकी हुई गांठवाले अपने बाणों द्वारा तुरंत ही निवारण कर देते थे।[3]
महारथी शिखण्डी ने रणक्षेत्र में जिनका प्रयोग किया था, वे शानपर चढ़ाकर तेज किये हुए सुवर्णमय पंखयुक्त बाण भीष्मजी के शरीर में कोई घाव या पीड़ा नहीं उत्पन्न कर सके। तत्पश्चात क्रोध में भरे हुए अर्जुन शिखण्डी को आगे रखकर पुनः भीष्म की ही ओर बढ़े। उन्होंने भीष्मजी के धनुष को काट डाला। तदनन्तर नौ बाणों से उन्हें घायल करके एक बाण से उनके ध्वज को भी काट डाला। फिर दस बाणों द्वारा उनके सारथी को कम्पित कर दिया। तब गंगानन्दन भीष्म ने दूसरा अत्यन्त प्रबल धनुष हाथ में लिया, परंतु अर्जुन ने तीन तीखे भल्लों द्वारा मार कर उसे भी तीन जगह से खण्डित कर दिया। उस महायुद्ध में भीष्म जो-जो धनुष हाथ में लेते थे कुन्तीकुमार अर्जुन उसे आधे निमेष में काट डालते थे। इस प्रकार उन्होंने रणक्षेत्र में उनके बहुत से धनुष खण्डित कर दिये। तब शान्तनुनन्दन भीष्म ने अर्जुन पर हाथ उठाना बंद कर दिया। फिर भी अर्जुन ने उन्हें पचीस बाण मारे।
भीष्म और दु:शासन की वार्तालाप
इस प्रकार अत्यन्त घायल होने पर महाधनुर्धर भीष्म ने दुःशासन से कहा- ‘ये पाण्डव महारथी अर्जुन युद्ध में क्रुद्ध होकर अनेक सहस्र बाणों द्वारा मुझे घायल कर चुके हैं। ‘इन्हें वज्रधारी इन्द्र भी युद्ध में जीत नहीं सकते। इसी प्रकार समस्त देवता, दानव तथा राक्षस वीर एक साथ आ जायें तो मुझे भी वे युद्ध में परास्त नहीं कर सकते, फिर दूसरे मानव महारथियों की तो बात ही क्या है। इस प्रकार दुःशासन और भीष्म में जब बातचीत हो रही थी, उसी समय अर्जुन ने अपने तीखे बाणों द्वारा युद्ध स्थल में शिखण्डी को आगे करके भीष्म को क्षत-विक्षत कर दिया। तब वे पुनः दुःशासन से मुस्कराते हुए से बोले- ‘गाण्डीवधारी अर्जुन ने युद्ध स्थल में ऐसे बाण छोड़े हैं, जिनका स्पर्श वज्र और विद्युत के समान असह्य है। उनके तीखे बाणों से मैं अत्यन्त घायल हो गया हूँ। ये अविच्छिन्न रूप से छूने वाले समस्त बाण शिखण्डी के नहीं हो सकते। ‘क्योंकि ये मेरे सुद्रढ़ कवच को छेदकर मर्मस्थानों में आघात कर रहे थे, ये बाण मेरे शरीर पर मुसल के समान चोट करते हैं। इनका स्पर्श वज्र और यमदण्ड के समान असह्य है। इनका वेग वज्र के समान होने के कारण निवारण करना कठिन है। ये शिखण्डी के बाण कदापि नहीं हो सकते।[3] ‘ये मेरे प्राणों में व्यथा उत्पन्न कर देते हैं। अहितकारी यमदूतों के समान मेरे प्राणों का विनाश सा कर रहे हैं। ये शिखण्डी के बाण कदापि नहीं हो सकते। ‘इनका स्पर्श गदा और परिघ की चोट के समान प्रतीत होता है, ये क्रोध में भरे हुए प्रचण्ड विषवाले सर्पो के समान डस लेते हैं। ये शिखण्डी के बाण नहीं हैं। ‘ये बाण मेरे मर्म स्थानों में प्रवेश कर रहे हैं, अतः शिखण्डी के नहीं हैं। ये अर्जुन के बाण हैं। ये शिखण्डी के बाण नहीं हैं। जैसे केंकडी के बच्च्ो अपनी माता का उदर विदीर्ण करके बाहर निकलते हैं, उसी प्रकार ये बाण मेरे सम्पूर्ण अंगों को छेदे डालते हैं। ‘गाण्डीवधारी वीर कपिध्वज अर्जुन को छोड़कर अन्य सभी नरेश अपने प्रहारों द्वारा मुझे इतनी पीड़ा नहीं दे सकते।
भारत! ऐसा कहते हुए शान्तनुनन्दन भीष्म ने पाण्डवों की ओर इस प्रकार देखा, मानो उन्हें भस्म कर डालेंगे। फिर उन्होंने अर्जुन पर एक शक्ति चलायी, परंतु अर्जुन ने तीन बाणों द्वारा उनकी उस शक्ति को तीन जगह से काट गिराया। भरतनन्दन! समस्त कौरवों वीरों के देखते-देखते गंगानन्दन भीष्म ने मृत्यु अथवा विजय इन दोनों में से किसी एक का वरण करने के लिये अपने हाथ में सुवर्णभूषित ढाल और तलवार ले ली। परंतु वे अभी अपने रथ से उतर भी नहीं पाये थे कि अर्जुन ने अपने बाणों द्वारा उनकी ढाल के सौ टुकडे़ कर दिये, यह एक अदभुत सी बात हुई।[4]
कौरव और पांडव सेनाओं के बीच भीषण युद्ध
इसी समय राजा युधिष्ठिर ने अपने सैनिकों को आज्ञा दी- ‘वीरों! गंगानन्दन भीष्म पर आक्रमण करो। उनकी ओर से तुम्हारे मन में तनिक भी भय नहीं होना चाहिये’। तदनन्तर वे पाण्डव सैनिक सब ओर से तोमर, प्रास, बाणसमुदाय, पट्टिश, खड़ग, तीखें नाराच, वासदन्त तथा भल्लों का प्रहार करते हुए एकमात्र भीष्म की ओर दौड़े। तदनन्तर पाण्डवों की सेना में घोर सिंहनाद हुआ। इसी प्रकार भीष्म की विजय चाहने वाले आपके पुत्र भी उस समय गर्जना करने लगे। आपके सैनिक एकमात्र भीष्म की रक्षा और सिंहनाद करने लगे। वहाँ आपके योद्धाओं का शत्रुओं के साथ भयंकर युद्ध हुआ। राजेन्द! दसवें दिन भीष्म और अर्जुन के संघर्ष में दो घड़ी तक ऐसा दृष्य दिखायी दिया, मानों समुद्र में गंगाजी के गिरते समय उनके जल में भारी भंवर उठ रहीं हो। उस समय एक दूसरे को मारने वाले युद्ध परायण सैनिकों के रक्त से रंजित हो वहाँ की सारी पृथ्वी भयानक हो गयी थी। यहाँ ऊंची और नीची भूमि का भी कुछ ज्ञान नहीं हो पाता था, दसवें दिन के उस युद्ध में अपने मर्मस्थानों के विदीर्ण होते रहने पर भी भीष्मजी दस हजार योद्धाओं को मारकर वहाँ खड़े हुए थे।
अर्जुन द्वारा भीष्म को रथ से गिराना
उस समय सेना के अग्रभाग में खडे हुए धनुर्धर अर्जुन ने कौरव सेना के भीतर प्रवेश करके आपके सैनिकों को खदेड़ना आरम्भ किया। पाण्डवों तथा अन्य राजाओं ने वज्र के समान बाणों द्वारा आपकी सेनाओं को बलपूर्वक पीड़ित किया। वहाँ हमने पाण्डवों का यह अदभुत पराक्रम देखा कि उन्होंने अपने बाणों की वर्षा से भीष्म का अनुगमन करने वाले समस्त योद्धाओं को मार भगाया। राजन! उस समय श्वेतवाहन कुन्तीपुत्र धनंजय से डरकर उनके तीखे अस्त्र-शस्त्रों से पीड़ित हो हम सभी लोग रणभूमि से भागने लगे थे। सौ वीर, कितव, प्राच्य, प्रतीच्य, उदीच्य, मालव, अभीषाह, शूरसेन, शिवि, वसाति, षाल्वाश्रय, त्रिगर्त, अम्बष्ठ और केकय- इन सभी देशों के ये सारे महामनस्वी वीर बाणों से घायल और घावों से पीड़ित होने पर भी अर्जुन के साथ युद्ध करने वाले भीष्म को संग्राम में छोड़ न सके।[4] तदनन्तर एकमात्र भीष्म को पाण्डव पक्षीय बहुत-से योजनाओं ने चारों ओर से घेर लिया और समस्त कौरवों को सब ओर से खदेड़कर उनके ऊपर बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी। राजन! उस समय भीष्म के रथ के समीप ‘मार गिराओ, पकड़ लो, युद्ध करों, टुकडे़-टुकड़े कर डालो’ इत्यादि भयंकर शब्द गूंज रहे थे। महाराज! समर में भीष्म सैकड़ों और हजारों वीरों का वध करके स्वयं इस स्थिति में पहुँच गये थे कि उनके शरीर में दो अंगुल भी ऐसा स्थान नहीं रह गया था, जो बाणों से बिद्ध नहीं हुआ हो। इस प्रकार आपके ताऊ भीष्म युद्ध स्थल में अर्जुन के तीखे बाणों से अत्यंत विद्ध हो गये थे- उनका शरीर छिदकर छलनी हो रहा था। वे उसी अवस्था में, जबकि दिन थोड़ा ही शेष था, आपके पुत्रों के देखते-देखते पूर्व दिशा की ओर मस्तक किये रथ से नीचे गिर पड़े।[5]
टीका टिप्पणी व संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 119 श्लोक 1-19
- ↑ 2.0 2.1 महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 119 श्लोक 20-40
- ↑ 3.0 3.1 महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 119 श्लोक 41-60
- ↑ 4.0 4.1 महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 119 श्लोक 61-83
- ↑ महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 119 श्लोक 84-97
सम्बंधित लेख
महाभारत भीष्म पर्व में उल्लेखित कथाएँ
जम्बूखण्डविनिर्माण पर्व
कुरुक्षेत्र में उभय पक्ष के सैनिकों की स्थिति
| कौरव-पांडव द्वारा युद्ध के नियमों का निर्माण
| वेदव्यास द्वारा संजय को दिव्य दृष्टि का दान
| वेदव्यास द्वारा भयसूचक उत्पातों का वर्णन
| वेदव्यास द्वारा अमंगलसूचक उत्पातों का वर्णन
| वेदव्यास द्वारा विजयसूचक लक्षणों का वर्णन
| संजय द्वारा धृतराष्ट्र से भूमि के महत्त्व का वर्णन
| पंचमहाभूतों द्वारा सुदर्शन द्वीप का संक्षिप्त वर्णन
| सुदर्शन द्वीप के वर्ष तथा शशाकृति आदि का वर्णन
| उत्तर कुरु, भद्राश्ववर्ष तथा माल्यवान का वर्णन
| रमणक, हिरण्यक, शृंगवान पर्वत तथा ऐरावतवर्ष का वर्णन
| भारतवर्ष की नदियों तथा देशों का वर्णन
| भारतवर्ष के जनपदों के नाम तथा भूमि का महत्त्व
| युगों के अनुसार मनुष्यों की आयु तथा गुणों का निरूपण
भूमि पर्व
संजय द्वारा शाकद्वीप का वर्णन
| कुश, क्रौंच तथा पुष्कर आदि द्वीपों का वर्णन
| राहू, सूर्य एवं चन्द्रमा के प्रमाण का वर्णन
श्रीमद्भगवद्गीता पर्व
संजय का धृतराष्ट्र को भीष्म की मृत्यु का समाचार सुनाना
| भीष्म के मारे जाने पर धृतराष्ट्र का विलाप
| धृतराष्ट्र का संजय से भीष्मवध घटनाक्रम जानने हेतु प्रश्न करना
| संजय द्वारा युद्ध के वृत्तान्त का वर्णन आरम्भ करना
| दुर्योधन की सेना का वर्णन
| कौरवों के व्यूह, वाहन और ध्वज आदि का वर्णन
| कौरव सेना का कोलाहल तथा भीष्म के रक्षकों का वर्णन
| अर्जुन द्वारा वज्रव्यूह की रचना
| भीमसेन की अध्यक्षता में पांडव सेना का आगे बढ़ना
| कौरव-पांडव सेनाओं की स्थिति
| युधिष्ठिर का विषाद और अर्जुन का उन्हें आश्वासन
| युधिष्ठिर की रणयात्रा
| अर्जुन द्वारा देवी दुर्गा की स्तुति
| अर्जुन को देवी दुर्गा से वर की प्राप्ति
| सैनिकों के हर्ष तथा उत्साह विषयक धृतराष्ट्र और संजय का संवाद
| कौरव-पांडव सेना के प्रधान वीरों तथा शंखध्वनि का वर्णन
| स्वजनवध के पाप से भयभीत अर्जुन का विषाद
| कृष्ण द्वारा अर्जुन का उत्साहवर्धन एवं सांख्ययोग की महिमा का प्रतिपादन
| कृष्ण द्वारा कर्मयोग एवं स्थितप्रज्ञ की स्थिति और महिमा का प्रतिपादन
| कर्तव्यकर्म की आवश्यकता का प्रतिपादन एवं स्वधर्मपालन की महिमा का वर्णन
| कामनिरोध के उपाय का वर्णन
| निष्काम कर्मयोग तथा योगी महात्मा पुरुषों के आचरण एवं महिमा का वर्णन
| विविध यज्ञों तथा ज्ञान की महिमा का वर्णन
| सांख्ययोग, निष्काम कर्मयोग, ज्ञानयोग एवं ध्यानयोग का वर्णन
| निष्काम कर्मयोग का प्रतिपादन और आत्मोद्धार के लिए प्रेरणा
| ध्यानयोग एवं योगभ्रष्ट की गति का वर्णन
| ज्ञान-विज्ञान एवं भगवान की व्यापकता का वर्णन
| कृष्ण का अर्जुन से भगवान को जानने और न जानने वालों की महिमा का वर्णन
| ब्रह्म, अध्यात्म तथा कर्मादि विषयक अर्जुन के सात प्रश्न और उनका उत्तर
| कृष्ण द्वारा भक्तियोग तथा शुक्ल और कृष्ण मार्गों का प्रतिपादन
| ज्ञान विज्ञान सहित जगत की उत्पत्ति का वर्णन
| प्रभावसहित भगवान के स्वरूप का वर्णन
| आसुरी और दैवी सम्पदा वालों का वर्णन
| सकाम और निष्काम उपासना का वर्णन
| भगवद्भक्ति की महिमा का वर्णन
| कृष्ण द्वारा अर्जुन से शरणागति भक्ति के महत्त्व का वर्णन
| कृष्ण द्वारा अपनी विभूति और योगशक्ति का वर्णन
| कृष्ण द्वारा प्रभावसहित भक्तियोग का कथन
| कृष्ण द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का पुन: वर्णन
| अर्जुन द्वारा कृष्ण से विश्वरूप का दर्शन कराने की प्रार्थना
| कृष्ण और संजय द्वारा विश्वरूप का वर्णन
| अर्जुन द्वारा कृष्ण के विश्वरूप का देखा जाना
| अर्जुन द्वारा कृष्ण की स्तुति और प्रार्थना
| कृष्ण के विश्वरूप और चतुर्भुजरूप के दर्शन की महिमा का कथन
| साकार और निराकार उपासकों की उत्तमता का निर्णय
| भगवत्प्राप्ति वाले पुरुषों के लक्षणों का वर्णन
| ज्ञान सहित क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ का वर्णन
| प्रकृति और पुरुष का वर्णन
| ज्ञान की महिमा और प्रकृति-पुरुष से जगत की उत्पत्ति का वर्णन
| सत्त्व, रज और तम गुणों का वर्णन
| भगवत्प्राप्ति के उपाय तथा गुणातीत पुरुषों के लक्षणों का वर्णन
| संसारवृक्ष और भगवत्प्राप्ति के उपाय का वर्णन
| प्रभाव सहित परमेश्वर के स्वरूप और पुरुषोत्तम के तत्त्व का वर्णन
| दैवी और आसुरी सम्पदा का फलसहित वर्णन
| शास्त्र के अनुकूल आचरण करने के लिए प्रेरणा
| श्रद्धा और शास्त्र विपरीत घोर तप करने वालों का वर्णन
| आहार, यज्ञ, तप और दान के भेद की व्याख्या
| ओम, तत् और सत् के प्रयोग की व्याख्या
| त्याग और सांख्यसिद्धान्त का वर्णन
| भक्तिसहित निष्काम कर्मयोग का वर्णन
| फल सहित वर्ण-धर्म का वर्णन
| उपासना सहित ज्ञाननिष्ठा का वर्णन
| भक्तिप्रधान कर्मयोग की महिमा का वर्णन
| गीता के माहात्म्य का वर्णन
भीष्मवध पर्व
युधिष्ठिर का भीष्म, द्रोण आदि से अनुमति लेकर युद्ध हेतु तैयार होना
| कौरव-पांडवों के प्रथम दिन के युद्ध का प्रारम्भ
| उभय पक्ष के सैनिकों का द्वन्द्व युद्ध
| कौरव-पांडव सेना का घमासान युद्ध
| भीष्म के साथ अभिमन्यु का भयंकर युद्ध
| शल्य द्वारा उत्तरकुमार का वध और श्वेत का पराक्रम
| विराट के पुत्र श्वेत का महापराक्रम
| भीष्म द्वारा श्वेत का वध
| भीष्म का प्रचण्ड पराक्रम तथा प्रथम दिन के युद्ध की समाप्ति
| युधिष्ठिर की चिंता और श्रीकृष्ण द्वारा उनको आश्वासन
| धृष्टद्युम्न का उत्साह और क्रौंचारुण व्यूह की रचना
| कौरव सेना की व्यूह रचना
| कौरव-पांडव सेना में शंखध्वनि और सिंहनाद
| भीष्म और अर्जुन का युद्ध
| धृष्टद्युम्न और द्रोणाचार्य का युद्ध
| भीमसेन का कलिंगों और निषादों से युद्ध
| भीमसेन द्वारा शक्रदेव और भानुमान का वध
| भीमसेन द्वारा कई गजराजों और केतुमान का वध
| भीमसेन द्वारा कौरव सेना के असंख्य सैनिकों का वध
| अभिमन्यु और अर्जुन का पराक्रम तथा दूसरे दिन के युद्ध की समाप्ति
| कौरव-पांडवों की व्यूह रचना
| उभय पक्ष की सेनाओं का घमासान युद्ध
| पांडव वीरों का पराक्रम और कौरव सेना में भगदड़
| दुर्योधन और भीष्म का संवाद
| भीष्म का पराक्रम
| कृष्ण का भीष्म को मारने के लिए उद्यत होना
| अर्जुन द्वारा कौरव सेना की पराजय और तीसरे दिन के युद्ध की समाप्ति
| कौरव-पांडव सेनाओं का व्यूह निर्माण
| भीष्म और अर्जुन का द्वैरथ युद्ध
| अभिमन्यु का पराक्रम
| धृष्टद्युम्न द्वारा शल के पुत्र का वध
| धृष्टद्युम्न और शल्य आदि दोनों पक्ष के वीरों का युद्ध
| भीमसेन द्वारा गजसेना का संहार
| भीमसेन का पराक्रम
| सात्यकि और भूरिश्रवा की मुठभेड़
| भीमसेन और घटोत्कच का पराक्रम
| कौरवों की पराजय तथा चौथे दिन के युद्ध की समाप्ति
| धृतराष्ट्र-संजय प्रसंग में दुर्योधन का भीष्म से पांडवों की विजय का कारण पूछना
| भीष्म का ब्रह्मा द्वारा की हुई भगवत-स्तुति का कथन
| नारायणावतार श्रीकृष्ण एवं नरावतार अर्जुन की महिमा का प्रतिपादन
| भगवान श्रीकृष्ण की महिमा
| ब्रह्मभूतस्तोत्र तथा श्रीकृष्ण और अर्जुन की महत्ता
| कौरवों द्वारा मकरव्यूह तथा पांडवों द्वारा श्येनव्यूह का निर्माण
| भीष्म और भीमसेन का घमासान युद्ध
| भीष्म, अर्जुन आदि योद्धाओं का घमासान युद्ध
| कौरव-पांडव सेनाओं का परस्पर घोर युद्ध
| कौरव-पांडव योद्धाओं का द्वन्द्व युद्ध
| भूरिश्रवा द्वारा सात्यकि के दस पुत्रों का वध
| अर्जुन का पराक्रम तथा पाँचवें दिन के युद्ध की समाप्ति
| पांडवों द्वारा मकरव्यूह तथा कौरवों द्वारा क्रौंचव्यूह का निर्माण
| धृतराष्ट्र की चिन्ता
| भीमसेन, धृष्टद्युम्न तथा द्रोणाचार्य का पराक्रम
| उभय पक्ष की सेनाओं का संकुल युद्ध
| भीमसेन के द्वारा दुर्योधन की पराजय
| अभिमन्यु आदि का धृतराष्ट्रपुत्रों के साथ युद्ध तथा छठे दिन के युद्ध की समाप्ति
| भीष्म द्वारा दुर्योधन को आश्वासन
| कौरव-पांडव सेनाओं का मण्डल और वज्रव्यूह बनाकर भीषण संघर्ष
| श्रीकृष्ण और अर्जुन से डरकर कौरव सेना में भगदड़
| द्रोणाचार्य और विराट का युद्ध तथा विराटपुत्र शंख का वध
| शिखण्डी और अश्वत्थामा का युद्ध
| सात्यकि द्वारा अलम्बुष की पराजय
| धृष्टद्युम्न और दुर्योधन तथा भीमसेन और कृतवर्मा का युद्ध
| इरावान द्वारा विन्द-अनुविन्द की पराजय
| भगदत्त द्वारा घटोत्कच की पराजय
| मद्रराज पर नकुल और सहदेव की विजय
| युधिष्ठिर द्वारा राजा श्रुतायु की पराजय
| महाभारत युद्ध में चेकितान और कृपाचार्य का मूर्छित होना
| भूरिश्रवा से धृष्टकेतु तथा अभिमन्यु से चित्रसेन आदि की पराजय
| सुशर्मा आदि से अर्जुन का युद्धारम्भ
| अर्जुन का पराक्रम और पांडवों का भीष्म पर आक्रमण
| युधिष्ठिर का शिखण्डी को उपालम्भ
| भीमसेन का पुरुषार्थ
| भीष्म और युधिष्ठिर का युद्ध
| धृष्टद्युम्न के साथ विन्द-अनुविन्द का संग्राम
| द्रोण आदि का पराक्रम और सातवें दिन के युद्ध की समाप्ति
| व्यूहबद्ध कौरव-पांडव सेनाओं की रणयात्रा
| व्यूहबद्ध कौरव-पांडव सेनाओं का घमासान युद्ध
| भीष्म का रणभूमि में पराक्रम
| भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के आठ पुत्रों का वध
| दुर्योधन और भीष्म का युद्ध विषयक वार्तालाप
| कौरव-पांडव सेना का घमासान युद्ध और भयानक जनसंहार
| इरावान द्वारा शकुनि के भाइयों का वध
| अलम्बुष द्वारा इरावान का वध
| घटोत्कच और दुर्योधन का भयानक युद्ध
| घटोत्कच का दुर्योधन एवं द्रोण आदि वीरों के साथ युद्ध
| घटोत्कच की रक्षा के लिए भीमसेन का आगमन
| भीम आदि शूरवीरों के साथ कौरवों का युद्ध
| दुर्योधन और भीमसेन तथा अश्वत्थामा और राजा नील का युद्ध
| घटोत्कच की माया से कौरव सेना का पलायन
| भीष्म की आज्ञा से भगदत्त का घटोत्कच से युद्ध हेतु प्रस्थान
| भगदत्त का घटोत्कच, भीमसेन और पांडव सेना के साथ युद्ध
| इरावान के वध से अर्जुन का दु:खपूर्ण उद्गार
| भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के नौ पुत्रों का वध
| अभिमन्यु और अम्बष्ठ का युद्ध
| युद्ध की भयानक स्थिति का वर्णन और आठवें दिन के युद्ध की समाप्ति
| दुर्योधन की शकुनि तथा कर्ण आदि के साथ पांडवों पर विजय हेतु मंत्रणा
| दुर्योधन का भीष्म से पांडवों का वध अथवा कर्ण को युद्ध हेतु आज्ञा देने का अनुरोध
| भीष्म का दुर्योधन को अर्जुन का पराक्रम बताना और भयंकर युद्ध की प्रतिज्ञा
| दुर्योधन द्वारा भीष्म की रक्षा की व्यवस्था
| उभयपक्ष की सेनाओं की व्यूह रचना तथा घमासान युद्ध
| विनाशसूचक उत्पातों का वर्णन
| अभिमन्यु के पराक्रम से कौरव सेना का युद्धभूमि से पलायन
| अभिमन्यु तथा द्रौपदी के पुत्रों का अलम्बुष से घोर युद्ध
| अभिमन्यु द्वारा अलम्बुष की पराजय
| अर्जुन के साथ भीष्म का युद्ध
| कृपाचार्य, द्रोणाचार्य तथा अश्वत्थामा के साथ सात्यकि का युद्ध
| द्रोणाचार्य और सुशर्मा के साथ अर्जुन का युद्ध
| भीमसेन द्वारा रणभूमि में गजसेना का संहार
| कौरव-पांडव उभय पक्ष की सेनाओं का घमासान युद्ध
| रक्तमयी रणनदी का वर्णन
| अर्जुन द्वारा त्रिगर्तों की पराजय
| अभिमन्यु से चित्रसेन की पराजय
| सात्यकि और भीष्म का युद्ध
| दुर्योधन द्वारा दु:शासन को भीष्म की रक्षा का आदेश
| शकुनि की घुड़सवार सेना की पराजय
| युधिष्ठिर और नकुल-सहदेव के साथ शल्य का युद्ध
| भीष्म द्वारा पराजित पांडव सेना का पलायन
| भीष्म को मारने के लिए कृष्ण का उद्यत होना
| अर्जुन द्वारा उद्यत हुए कृष्ण को रोकना
| नवें दिन के युद्ध की समाप्ति
| कृष्ण व पांडवों की गुप्त मंत्रणा
| कृष्णसहित पांडवों का भीष्म से उनके वध का उपाय पूछना
| उभयपक्ष की सेना का रण प्रस्थान व दसवें दिन के युद्ध का प्रारम्भ
| शिखण्डी को आगे कर पांडवों का भीष्म पर आक्रमण
| शिखंडी एवं भीष्म का युद्ध
| भीष्म-दुर्योधन संवाद
| भीष्म द्वारा लाखों पांडव सैनिकों का संहार
| अर्जुन के प्रोत्साहन से शिखंडी का भीष्म पर आक्रमण
| दु:शासन का अर्जुन के साथ घोर युद्ध
| कौरव-पांडव पक्ष के प्रमुख महारथियों के द्वन्द्वयुद्ध का वर्णन
| द्रोणाचार्य का अश्वत्थामा को अशुभ शकुनों की सूचना देना
| द्रोणाचार्य का अश्वत्थामा को धृष्टद्युम्न से युद्ध करने का आदेश
| कौरव पक्ष के दस महारथियों के साथ भीम का घोर युद्ध
| कौरव महारथियों के साथ भीम और अर्जुन का अद्भुत पुरुषार्थ
| भीष्म के आदेश से युधिष्ठिर का उन पर आक्रमण
| कौरव-पांडव सैनिकों का भीषण युद्ध
| कौरव-पांडव महारथियों के द्वन्द्वयुद्ध का वर्णन
| भीष्म का अद्भुत पराक्रम
| उभय पक्ष की सेनाओं का युद्ध तथा दु:शासन का पराक्रम
| अर्जुन के द्वारा भीष्म का मूर्च्छित होना
| भीष्म द्वारा पांडव सेना का भीषण संहार
| अर्जुन का भीष्म को रथ से गिराना
| शरशय्या पर स्थित भीष्म के पास ऋषियों का आगमन
| भीष्म द्वारा उत्तरायण की प्रतीक्षा कर प्राण धारण करना
| भीष्म की महत्ता
| अर्जुन द्वारा भीष्म को तकिया देना
| उभय पक्ष की सेनाओं का अपने शिबिर में जाना एवं कृष्ण-युधिष्ठिर संवाद
| अर्जुन द्वारा भीष्म की प्यास बुझाना
| अर्जुन की प्रसंशा कर भीष्म का दुर्योधन को संधि के लिए समझाना
| भीष्म और कर्ण का रहस्यमय संवाद
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज