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इसकी लंबाई एक सहस्र हाथ की है। खींचने पर यह दस हाथ तक फैलता है। इसका [[शंकर|भगवान शंकर]] की इच्छा से निर्माण हुआ है। पशुपति का यह [[पाशुपत अस्त्र|पाशुपत धनुष]] जुते हए रथ के द्वारा भी कठिनाई से ही ढोया जाता है। [[नारायण|भगवान नारायण देव]] को छोड़कर अन्य सब लोग कभी इसे तोड़ नहीं सकते। भगवान शंकर के इस कल्याणकारी [[यज्ञ]] में तुम शीघ्र ही इस [[धनुष अस्त्र|धनुष]] की [[पूजा]] करो और शुभ कर्म में भेजने योग्य निमन्त्रण सबके पास फेज दो। नरेश्वर! इस यज्ञ में यदि धनुष टूट जायगा तो यजमान का नाश होगा, इसमें संशय नहीं है। धनुष टूटने पर निश्चय ही यज्ञ भी भंग हो जाता है। जब यज्ञ कर्म संपन्न ही नहीं होगा तो उसका फल कौन देगा? महामते! इस धनुष के मूलभाग में [[ब्रह्मा]], मध्यभाग में स्वयं नारायण और अग्रभाग में उग्र प्रतापशाली महादेव जी प्रतिष्ठित हैं। इस धनुष में तीन विकार हैं तथा यह श्रेष्ठ रत्नों द्वारा जटित है। [[ग्रीष्म ऋतु]] के मध्याह्नकालिक प्रचण्ड मार्तण्ड की प्रभा को यह धनुष अपनी दिव्य दीप्ति से दबा देता है। राजन! महाबली अनन्त, [[सूर्य देवता|सूर्य]] तथा [[कार्तिकेय]] भी इस धनुष को झुकाने में समर्थ नहीं हैं; फिर दूसरे की तो बात ही क्या है? पूर्वकाल में त्रिपुरारि शिव ने इसी के द्वारा त्रिपुरासुर का वध किया था। तुम इस महोत्सव के लिए बिना किसी भय के स्वेच्छापूर्वक मांगलिक कार्य आरंभ करो। सत्यक की यह बात सुनकर चंद्रवंश की वृद्धि करने वाले कंस ने सभी कार्यों में सदा यजमान का हित चाहने वाले पुरोहित जी से कहा। | इसकी लंबाई एक सहस्र हाथ की है। खींचने पर यह दस हाथ तक फैलता है। इसका [[शंकर|भगवान शंकर]] की इच्छा से निर्माण हुआ है। पशुपति का यह [[पाशुपत अस्त्र|पाशुपत धनुष]] जुते हए रथ के द्वारा भी कठिनाई से ही ढोया जाता है। [[नारायण|भगवान नारायण देव]] को छोड़कर अन्य सब लोग कभी इसे तोड़ नहीं सकते। भगवान शंकर के इस कल्याणकारी [[यज्ञ]] में तुम शीघ्र ही इस [[धनुष अस्त्र|धनुष]] की [[पूजा]] करो और शुभ कर्म में भेजने योग्य निमन्त्रण सबके पास फेज दो। नरेश्वर! इस यज्ञ में यदि धनुष टूट जायगा तो यजमान का नाश होगा, इसमें संशय नहीं है। धनुष टूटने पर निश्चय ही यज्ञ भी भंग हो जाता है। जब यज्ञ कर्म संपन्न ही नहीं होगा तो उसका फल कौन देगा? महामते! इस धनुष के मूलभाग में [[ब्रह्मा]], मध्यभाग में स्वयं नारायण और अग्रभाग में उग्र प्रतापशाली महादेव जी प्रतिष्ठित हैं। इस धनुष में तीन विकार हैं तथा यह श्रेष्ठ रत्नों द्वारा जटित है। [[ग्रीष्म ऋतु]] के मध्याह्नकालिक प्रचण्ड मार्तण्ड की प्रभा को यह धनुष अपनी दिव्य दीप्ति से दबा देता है। राजन! महाबली अनन्त, [[सूर्य देवता|सूर्य]] तथा [[कार्तिकेय]] भी इस धनुष को झुकाने में समर्थ नहीं हैं; फिर दूसरे की तो बात ही क्या है? पूर्वकाल में त्रिपुरारि शिव ने इसी के द्वारा त्रिपुरासुर का वध किया था। तुम इस महोत्सव के लिए बिना किसी भय के स्वेच्छापूर्वक मांगलिक कार्य आरंभ करो। सत्यक की यह बात सुनकर चंद्रवंश की वृद्धि करने वाले कंस ने सभी कार्यों में सदा यजमान का हित चाहने वाले पुरोहित जी से कहा। | ||
− | '''[[कंस]] बोला-''' पुरोहित जी! [[वसुदेव]] के घर में मेरा वध करने वाला एक कुलनाशक पुत्र उत्पन्न हुआ है, जो [[नन्द]] के भवन में नन्दनन्दन होकर स्वच्छन्दतापूर्वक पालित-पोषित हो रहा है। उस बलवान बालक ने मेरे बुद्धिमान मंत्रियों, शूरवीर बान्धवों तथा पवित्र बहिन [[पूतना]] को मार डाला है। वह इच्छानुसार अपने बल को बढ़ा लेता है। उसने | + | '''[[कंस]] बोला-''' पुरोहित जी! [[वसुदेव]] के घर में मेरा वध करने वाला एक कुलनाशक पुत्र उत्पन्न हुआ है, जो [[नन्द]] के भवन में नन्दनन्दन होकर स्वच्छन्दतापूर्वक पालित-पोषित हो रहा है। उस बलवान बालक ने मेरे बुद्धिमान मंत्रियों, शूरवीर बान्धवों तथा पवित्र बहिन [[पूतना]] को मार डाला है। वह इच्छानुसार अपने बल को बढ़ा लेता है। उसने गोवर्धन पर्वत को एक हाथ पर ही धारण कर लिया था और शूरवीर महेंद्र को भी पराजित कर दिया था। उसने [[ब्रह्मा|ब्रह्मा जी]] को समस्त चराचर जगत का ब्रह्मरूप में दर्शन कराया था तथा बालकों और बछड़ों के कृत्रिम समुदाय की रचना कर ली थी। सत्यक जी! उस बलवान बालक का वध करने के लिए ही कोई सलाह दीजिए। निश्चय ही इस भूतल पर, स्वर्ग और पाताल में एवं तीनों [[लोक|लोकों]] में उसके सिवा दूसरा कोई मेरा शत्रु नहीं है। सर्वत्र जो श्रेष्ठ राजा हैं, वे मेरे प्रति बान्धवभाव रखते हैं। ब्रह्मा जी और [[शंकर|भगवान शंकर]] तो [[तपस्वी]] हैं। उन्हें तपस्या से ही छुट्टी नहीं है। रह गये सनातन [[विष्णु|भगवान विष्णु]]; परंतु वे भी सबके [[आत्मा]] हैं और सब पर समान दृष्टि रखते हैं। यदि नन्दपुत्र को मार डालूँ तो तीनों लोकों में मेरा सम्मान बढ़ जाएगा। मैं सार्वभौम सम्राट एवं सातों द्वीपों का महाराज हो जाऊँगा। स्वर्ग में जो [[इंद्र]] हैं वे भी दैत्यों से परास्त होने के कारण दुर्बल ही रहते हैं; अतः उनका वध करके मैं महेंद्र हो जाऊँगा। इंद्रलोक में प्रतिष्ठित होकर मैं सूर्य को, राजयक्ष्मा से ग्रस्त हुए अपने ही पूर्वपुरुष चंद्रमा को तथा [[वायु]], [[कुबेर]] और [[यम]] को भी निश्चय ही जीत लूँगा; अतः आप शीघ्र ही नन्द-व्रज में जाइये और नन्द, नन्दनन्दन [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] तथा उसके बलवान भाई [[बलराम]] को भी अभी बुला लाइये। |
कंस की बात सुनकर सत्यक ने हितकर, सत्य, नीति का सारभूत, उत्तम एवं समयोचित वचन कहा। | कंस की बात सुनकर सत्यक ने हितकर, सत्य, नीति का सारभूत, उत्तम एवं समयोचित वचन कहा। | ||
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01:13, 24 मार्च 2018 के समय का अवतरण
विषय सूची
ब्रह्म वैवर्त पुराण
श्रीकृष्ण जन्म खण्ड (उत्तरार्द्ध): अध्याय 63-64
इसकी लंबाई एक सहस्र हाथ की है। खींचने पर यह दस हाथ तक फैलता है। इसका भगवान शंकर की इच्छा से निर्माण हुआ है। पशुपति का यह पाशुपत धनुष जुते हए रथ के द्वारा भी कठिनाई से ही ढोया जाता है। भगवान नारायण देव को छोड़कर अन्य सब लोग कभी इसे तोड़ नहीं सकते। भगवान शंकर के इस कल्याणकारी यज्ञ में तुम शीघ्र ही इस धनुष की पूजा करो और शुभ कर्म में भेजने योग्य निमन्त्रण सबके पास फेज दो। नरेश्वर! इस यज्ञ में यदि धनुष टूट जायगा तो यजमान का नाश होगा, इसमें संशय नहीं है। धनुष टूटने पर निश्चय ही यज्ञ भी भंग हो जाता है। जब यज्ञ कर्म संपन्न ही नहीं होगा तो उसका फल कौन देगा? महामते! इस धनुष के मूलभाग में ब्रह्मा, मध्यभाग में स्वयं नारायण और अग्रभाग में उग्र प्रतापशाली महादेव जी प्रतिष्ठित हैं। इस धनुष में तीन विकार हैं तथा यह श्रेष्ठ रत्नों द्वारा जटित है। ग्रीष्म ऋतु के मध्याह्नकालिक प्रचण्ड मार्तण्ड की प्रभा को यह धनुष अपनी दिव्य दीप्ति से दबा देता है। राजन! महाबली अनन्त, सूर्य तथा कार्तिकेय भी इस धनुष को झुकाने में समर्थ नहीं हैं; फिर दूसरे की तो बात ही क्या है? पूर्वकाल में त्रिपुरारि शिव ने इसी के द्वारा त्रिपुरासुर का वध किया था। तुम इस महोत्सव के लिए बिना किसी भय के स्वेच्छापूर्वक मांगलिक कार्य आरंभ करो। सत्यक की यह बात सुनकर चंद्रवंश की वृद्धि करने वाले कंस ने सभी कार्यों में सदा यजमान का हित चाहने वाले पुरोहित जी से कहा। कंस बोला- पुरोहित जी! वसुदेव के घर में मेरा वध करने वाला एक कुलनाशक पुत्र उत्पन्न हुआ है, जो नन्द के भवन में नन्दनन्दन होकर स्वच्छन्दतापूर्वक पालित-पोषित हो रहा है। उस बलवान बालक ने मेरे बुद्धिमान मंत्रियों, शूरवीर बान्धवों तथा पवित्र बहिन पूतना को मार डाला है। वह इच्छानुसार अपने बल को बढ़ा लेता है। उसने गोवर्धन पर्वत को एक हाथ पर ही धारण कर लिया था और शूरवीर महेंद्र को भी पराजित कर दिया था। उसने ब्रह्मा जी को समस्त चराचर जगत का ब्रह्मरूप में दर्शन कराया था तथा बालकों और बछड़ों के कृत्रिम समुदाय की रचना कर ली थी। सत्यक जी! उस बलवान बालक का वध करने के लिए ही कोई सलाह दीजिए। निश्चय ही इस भूतल पर, स्वर्ग और पाताल में एवं तीनों लोकों में उसके सिवा दूसरा कोई मेरा शत्रु नहीं है। सर्वत्र जो श्रेष्ठ राजा हैं, वे मेरे प्रति बान्धवभाव रखते हैं। ब्रह्मा जी और भगवान शंकर तो तपस्वी हैं। उन्हें तपस्या से ही छुट्टी नहीं है। रह गये सनातन भगवान विष्णु; परंतु वे भी सबके आत्मा हैं और सब पर समान दृष्टि रखते हैं। यदि नन्दपुत्र को मार डालूँ तो तीनों लोकों में मेरा सम्मान बढ़ जाएगा। मैं सार्वभौम सम्राट एवं सातों द्वीपों का महाराज हो जाऊँगा। स्वर्ग में जो इंद्र हैं वे भी दैत्यों से परास्त होने के कारण दुर्बल ही रहते हैं; अतः उनका वध करके मैं महेंद्र हो जाऊँगा। इंद्रलोक में प्रतिष्ठित होकर मैं सूर्य को, राजयक्ष्मा से ग्रस्त हुए अपने ही पूर्वपुरुष चंद्रमा को तथा वायु, कुबेर और यम को भी निश्चय ही जीत लूँगा; अतः आप शीघ्र ही नन्द-व्रज में जाइये और नन्द, नन्दनन्दन श्रीकृष्ण तथा उसके बलवान भाई बलराम को भी अभी बुला लाइये। कंस की बात सुनकर सत्यक ने हितकर, सत्य, नीति का सारभूत, उत्तम एवं समयोचित वचन कहा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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