नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
60. देवर्षि नारद-धेनुक-ध्वंस
ताड़ को उचित ही तृणराज का नाम मिला है। इसका तना कितना भी ऊँचा हो, उसकी अन्तःरचना तृण के समान ही है, इसमें काष्ठ कहाँ है; किंतु संकर्षण ने इसके विशाल वृक्ष को तृण के समान दोनों करों से पकड़कर हिलाया न होता तो मुझे यह नाम इसका स्मरण नहीं आता। वृक्ष को बल ने ऐसे झकझोर दिया कि उसके पके-अधपके फल भी भदा-भद गिर पड़े। मदमत्त गर्धभ धेनुक मध्याह्न में सो रहा था अपने साथियों के संग। एक साथ इतने फलों के गिरने, वृक्ष के हिलने से उसकी निन्द्रा भंग हो गयी। क्रुद्ध होकर बोला- 'कौन मतवाला गज मरने आ गया।' धेनुक समझता था कि ताड़ को इस प्रकार कोई गज ही हिला सकता है। अपने वन में इस प्रकार गज का अनपेक्षित प्रवेश उसे सह्य नहीं। वह स्वयं आकार में विशाल गज जैसा है और शक्ति में सम्भवतः शतगुणित ही होगा। भयानक गर्दभनाद 'चीपों! चीपों!' करता वह दोड़ा। बालक वृक्ष का हिलना रुकते ही दौड़ आने वाले थे; किन्तु गर्दभ की ध्वनि सुनकर सशंक देखने लगे। धेनुक दौड़ता आया और दाऊ के समीप आकर तनिक आगे जाकर अपने पिछले पैरों से दुलत्ती झाड़ी उसने। श्रीबलराम तनिक एक ओर हट गये। गधा धेनुक क्रोध में भरकर कुछ पद दौड़ गया। घूमकर समीप आया और फिर मुख घुमाकर पिछले पदों से प्रहार किया उसने। इस बार दाऊ ने उसके दोनों पैर दोनों हाथों में पकड़ लिये और मस्तक के चारों ओर घुमाने लगे। धेनुक तो मर गया इस घुमाने में ही। उसके नेत्र और जिह्वा निकल आयी। सहसा दाऊ ने उसे पूरे वेग से फेंक दिया एक विशाल ताड़ वृक्ष पर। इस आघात से ताड़ टूट गया और समीप के वृक्ष से टकराया। अनेक वृक्ष टूटे परस्पर की टकराहट से और पूरा वन प्रकम्पित हो उठा, जैसे प्रबल अन्धड़ आ गया हो। वृक्षों के पके फलों के गिरने से पृथ्वी पट गयी। पूरा वन प्रकम्पित हुआ, अतः उसके अन्तराल में स्थित धेनुक के सब साथी गर्दभ एक साथ क्रुद्ध होकर 'चीपों-चीपों' कोलाहल करते दोड़े। 'गधे-बहुत गधे आ रहे हैं!' बालकों ने अपने लकुट उठाये; किंतु कन्हाई ने रोक दिया- 'तुम सब यहीं रहो। मुझे दादा के साथ तनिक क्रीड़ा कर लेने दो।' 'ये सब राक्षस हैं!' मधुमंगल ने मुख बनाया- 'गधे होते तो हम सबकी सहायता की आवश्यकता पड़ती। इन्हें तो अपना कनूँ अकेला ही मार देगा।' सचमुच राम-कृष्ण की क्रीड़ा चलने लगी है। गधे आक्रमण की एक ही पद्धति अपनाते हैं। आये, कुछ पद आगे गये और पास खिसके वेगपूर्वक पिछले पैरों से प्रहार किया। राम और श्याम दोनों गधों के पैर पकड़ लेते हैं, जब वे प्रहार करते हैं और एक बार घुमाकर फेंक देते हैं किसी ताड़-वृक्ष पर। |
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