नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
6. माता रोहिणी-दाऊ का जन्म
उस मूर्छा में कोई तेजोमयी अष्टभुजा देवी मेरे समीप आयी। उसने सब हाथ जोड़कर मस्तक झुकाकर मुझे प्रणाम किया और बोली- 'माँ! मझे क्षमा करना। मैं तुम्हारी स्नेह-भाजना बालिका हूँ। तुम्हारे गर्भ का आकर्षण करना पड़ा है मुझे सर्वेश्वर के आदेश से। अब भगवान अनन्त आपके उदर में आ गये।' वह देवी अदृश्य हो गयी। मुझे लगा कि अत्यन्त उज्ज्वल ज्योतिर्मय सहस्रफणा कोई महासर्प मेरे मुख से मेरे उदर में प्रविष्ट हो गया। मैं घबड़ाकर मूर्छा से जागी तो वहाँ कुछ भी नहीं था। केवल मैं भूमि पर पड़ी थी। मैंने अपने उदर पर हाथ फेरा। वह यथावत था। भूमि को बहुत देर तक देखती रही; किंतु वहाँ रक्त का एक सीकर नहीं था। स्वप्न में गर्भपात हुआ- पता नहीं यह किस अमंगल का सूचक था। इस स्वप्न की चिन्ता बहुत नहीं करनी पड़ी। व्रजपति ने उसी दिन सायंकाल सुनाया- 'मथुरा से लौटे एक गोप ने वहाँ सुना है कि क्रूर कंस ने इस बार किसी कुटिल उपाय से देवकी का गर्भपात करा दिया है।' बेचारी देवकी- मुझे उस दु:खिया बहिन का मुख उस रात नहीं भूला। मैं उस रात सो नहीं सकी। हाय! तो मेरा स्वप्न देवकी के गर्भपात का सूचक था; किंतु इससे अन्तर क्या पड़ा? वैसे भी कंस उस शिशु को जन्मते ही मार डालता। देवकी के लिए तो यह अच्छा ही हुआ। जीवित शिशु उत्पन्न होकर मार दिया जाय, इससे गर्भस्थ को मार देना कम त्रासदायक है। यह युक्ति प्रारम्भ से कंस को सूझ गयी होती तो देवकी को व्यथा कम होती। अब दैवकी का अष्टम गर्भ आवेगा! नारायण उसकी रक्षा करें! इसी की प्रतीक्षा में तो सब उत्पात हो रहे हैं। इस प्रकार अनेक भावनाएँ उठ रही थीं और स्वयं मेरी अपनी अवस्था भी मुझे आश्चर्य में डाले थी। पीछे तो मैं इन आश्चर्यजनक बातों की धीरे-धीरे अभ्यस्त हो गयी। |
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