भागवत सुधा -करपात्री महाराजषष्ठ-पुष्प 8. श्री जीअपने ऐसे सुकोमल हस्तारविन्द से वह श्री राधारानी के चरणों का स्पर्श करने में सकुचाती है- ‘हमारे हाथ कठोर हैं, श्री जी के चरणारविन्द बड़े सुकोमल हैं, कहीं कोई आघात न हो जाय।’ इस तरह सुन्दरता की अधिष्ठात्री देवी, मधुरता की अधिष्ठात्री देवी, मृदुता की अधिष्ठात्री देवी, सौन्दर्या-मृत-सौगंध्यामृत की अधिष्ठात्री महाशक्तियाँ मूर्तिमति होकर जिनके मंगलमय चरणाविन्द की आराधना करती हैं- उनका नाम है श्री। ब्रह्मादयो बहुतिथं यदपाड़ुमोक्षकामास्तपः समचरन् भगवत्प्रपन्नाः। जिनका कृपा-कटाक्ष प्राप्त करने के लिये ब्रह्मा आदि देवता भगवान के शरणागत होकर बहुत दिनों तक तपस्या करते रहे, वही लक्ष्मी जी अपने निवास-स्थान कमलवन का परित्याग करके बड़े प्रेम से जिनके चरण कमलों की सुभग छत्रच्छाया का सेवन करती हैं।) ब्रह्म में ढूड्यो पुरानन-कानन वेद रिचा सुनि चैगुने चायन, वेद में पुरान में ब्रह्म को ढूँढ़ते-ढूँढ़ते थक गया। लोग-लुगाइयों ने कुछ बताया नहीं, आकर देखा तो कुन्ज-कुटीर में राधारानी के मंगलमय पादारविन्द का संवाहन कर रहा था। इस तरह श्रीहरि भगवान भी जिनकी आराधना करते हैं, वे हैं श्री जी। रामलीला की[3] कथा में है- बन्दर-भालुओं ने राक्षसों को मार कर कहा कि अब हमारी वीर पूजा हो। हमने रावण का वध कर दिया। जनक नन्दिनी हंस पड़ी। बन्दर-भालुओं ने कहा- ‘‘माँ क्यों हंसती हो?’’ माँ ने कहा- ‘‘कुछ नहीं, यों ही, तुम्हारी वीर-पूजा अवश्य होनी चाहिये, अवश्य होनी चाहिये।’’ भालुओं ने कहा- ‘‘नहीं, हंसी का कारण बताओ।’’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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