विषय सूचीभागवत सुधा -करपात्री महाराजपंचम-पुष्प2. अप्रमत्त के लिये अति सुगम भगवत्प्राप्तिशुकदेव जी कहते हैं- राजन! यह मत समझो कि तुम्हारे केवल सात दिन ही हैं, सात दिनों में क्या होगा? प्रमत्त प्राणों के लिये हजारों दिन शेष रहें तो भी कोई भायदा नहीं- किं प्रमत्तस्य बहुभिः परोक्षैर्हायनैरिह। (अपने कल्याण साधन की ओर से असावधान रहने वाले पुरुषों को लम्बी आयु भी अनजान में व्यर्थ बीत जाती है। उससे क्या लाभ? सावधानी से ज्ञानपूर्वक बितायी हुई घड़ी-दो-घड़ी भी श्रेष्ठ है, क्यों कि उसके द्वारा अपने कल्याण की चेष्टा तो की जा सकती है।) जो सावधान प्राणी होता है वह श्रेय के लिये प्रयत्नशील होता है। एक मुहूर्त का जीवन भी उसके कल्याण के लिये पर्याप्त होता है। राजर्षि खट्वांग ने तो एक मुहूर्त की शेष आयु में ही भगवत्पद प्राप्त कर लिया। फूल के तोड़ने में देरी हो सकती है, भगवत्पद-प्राप्ति में देरी नहीं हो सकती। रकाब पर पाँव रखकर घोडे़ पर चढ़ जाने में जितना बिलम्ब हो सकता है, उससे भी और जल्दी[2] भगवत्पद प्राप्ति हो सकती है। भक्तराज प्रह्लाद ने कहा है- कोअतिप्रयासोअसुरबालका हरेहेरुपासने स्वे हृदि छिद्रवत् सतः। (असुरकुमारों! अपने हृदय में ही आकाश के समान नित्य विराजमान भगवान का भजन करने में कौन-सा विशेष परिश्रम है? वे समान रूप से समस्त प्राणियों के अत्यन्त प्रेमी मित्र हैं, अपने आत्मा ही हैं। उनको छोड़कर विषयों के अर्जन में रमे रहना कितनी मूर्खता है?)
इस तरह प्रेमी के लिये प्रियतम दुर्लभ न हो और प्रियतम से उसका प्रेम ओझल न हो। अर्थात प्रेमास्पद में दुर्लभता और अनभिज्ञता न हो। प्रेम करने में यही दो समस्याएँ आती हैं कि जिससे हम प्रेम करना चाहते हैं वह यदि दुर्लभ हुआ और हमारे प्रेम को जानने में सर्वथा असमर्थ हुआ तो हमारा प्रेम सर्वतोभावेन एकांगी हो जाता है। भगवान की प्राप्ति में ये दोनों ही समस्याएँ नहीं हैं। चन्द्रमा तो लाखों मील दूर है, पर भगवान तो आकाश से भी अन्तरंग हैं, अन्तःकरण में अवस्थित हैं और सर्वज्ञ शिरोमणि-सर्वान्तर्यामी हैं। चन्द्रमा को तो मालूम नहीं कि चकोर का क्या हाल है, कौन-कौन उसे चाहता है; पर जीव के मन में भगवत्प्राप्ति की इच्छा हो और वह उसे जाने उससे पहली ही भगवान उसकी इच्छा को जानते[5] है। इसलिये सर्वज्ञ शिरोमणि सर्वत्र विराजमान उन परमात्मा-परमेश्वर को पाने के लिये कहाँ कठिनाई? शुकदेव जी कहते हैं- राजन! इस प्रकार भगवान सर्वेश्वर, सर्वान्तरात्मा, सर्वद्रष्टा और सर्वसाक्षी हैं। राजा खटवांग सर्वस्व त्याग करके अभय पद उन प्रभु को प्राप्त हो गये। तुम्हारे तो अभी सात दिन बाकी हैं, तैयारी करो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भागवत 2,1,12
- ↑ कम समय में
- ↑ भागवत 7.7.38
- ↑ किसमें हम प्रीति करते हैं वह
- ↑ भगवान् उर प्रेरक और संस्कारों के भी प्रकाशक जो ठहरे।
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