भागवत सुधा -करपात्री महाराजइन सब दृष्टियों से स्पष्ट होता है कि कुन्ती का कहना बिल्कुल ठीक है कि अमलात्मा परमहंस महामुनीन्द्रों को भक्तियोग का विधान करके उन्हें ‘श्रीपरमहंस’ बनाकर उनके ज्ञान-विज्ञान को सुशोभित-समलंकृत करने के लिए, उनमें चार चाँद लगाने के लिए ही श्रीकृष्णचन्द्र का अवतार हुआ है। यही भगवान के आविर्भाव का प्रयोजन है। यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिभँवति भारत। (अर्जुन! प्राणियों के अभ्युदय और निःश्रेयस के साधन रूप वर्णाश्रम धर्म की जब हानि एवं अधर्म का उत्थान होता है, तब-तब मैं प्रकट होता हूँ- अपने आपको अभिव्यक्त करता हूँ। साधुओं-सन्मार्गस्थ सत्पुरुषों की रक्षा एवं दुष्टों का विनाश और धर्म की संस्थापना करने के लिए युग-युग में आविर्भूत होता हूँ।।) गेपीनां परमानन्द आसीद् गोविन्ददर्शने। (इधर ब्रज में गोपियों को श्रीकृष्ण के बिना एक-एक क्षण सौ-सौ युग के समान हो रहा था। जब भगवान श्रीकृष्ण लौटे तब उनका दर्शन करके वे परमानन्द में मग्न हो गयीं।) पूर्वानुरागगलितां मम लम्भनेअपि, लोकापवाद दलितामथ मद्वियुक्तौ। अर्थात यह तो मेरे पूर्वानुराग में ही गलित हो चुकी हैं और मेरे सम्मिलिन में भी लोकापवाद से दलित होती हैं। विप्रयोग में तो दावानल ज्वलित जातिवनी के समान हो जाती हैं। इन्हें मैं कैसे सान्त्वना दूँ? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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