विषय सूचीभागवत सुधा -करपात्री महाराजअष्टम-पुष्प 5. धर्म रक्षक ‘श्रीराम’उन्होंने भक्तों के हृदय में अपना पाद-पंकज स्थापति किया- स्मरतां हृदि विन्यस्य विद्धं दण्डककण्टकैः। (तदनन्तर अपना स्मरण करने वाले भक्तों के हृदय में अपने चरण कमल, स्थापित करके, जो दण्डकवन के काँटों से बिंध गये थे, अपने स्वप्रकाश परमज्योतिर्मय धाम में चले गये।) क्यों भाई, शुकाचार्य ने दण्डकवन के काँटे जिन चरणों में बिंधे हुए हैं, ऐसे चरण-पंकज को भक्तों के हृदय में क्यों विरजवाया है? सीता भगवती की मंगलमयी शय्या पर समासीन, कौशल्यात्सगं लालित या चक्रवर्ति-नरेन्द्र के उत्संग में लालित रामचन्द्र राघवेन्द्र भगवान् के पदारविन्द भक्तों के हृदय में विरजवाते? नहीं, नहीं विद्धं दण्डक कण्टकैः, भगवान के चरण-कमलों में काँटे चुभे हुए हैं’ पूर्वजों की मान मर्यादा के लिये, संस्कृति की रक्षा के लिये, धर्म की रक्षा के लिये; ऐसा ध्यान भक्तों को बना रहे इसलिये शुक्राचार्य ने काँटे चुभे चरण-कमल को भक्तों के हृदय में पधराया। राम नंगे पावों वन-वन विहरे, तब उनके पाँवों में काँटे चुभे। गौ रक्षा के लिये धर्म की रक्षा के लिए, हमारे देवता भगवान राम के मंगलमय पादों में काँटे चुभे। कितना सुकोमल है उनका चरण! पंकज का पराग की उसमें चुभता है। फिर कमल की कोमल पँखुड़ी चुभे यह तो बात गौण हो गयी। ऐसे चरणाविन्द में दण्डकवन के काँटे चुभे। हम भी धर्म की रक्षा के लिये, संस्कृति की रक्षा के लिये, पूर्वजों की मान-मर्यादा की रक्षा के लिये सिर को हथेली में रखकर, प्राणों को खतरे में डालकर आनन्द से जूझना सीखें, इस बात को बताने के लिये शुक्राचार्य ने कहा- ‘विद्धं दण्डक कण्टकैः’ 6.लीला पुरुषोत्तम ‘श्रीकृष्ण’वही परात्पर परब्रह्म प्रभु श्रीकृष्ण चन्द्र परमानन्दकन्द मदन मोहन ब्रजेन्द्र नन्दन के रूप में प्रकट हुआ। दोनों के रूप में और वपु एक-सरीखे हैं। श्रीरामचन्द्र के नयन गंभीर हैं और श्रीकृष्णचन्द्र के चपल विशेष। नारायण दोऊ एक हैं रूप रंग तिल रेख। श्री रामचन्द्र मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, श्रीकृष्णचन्द्र लीला पुरुषोत्तम। दोनों साक्षात परात्पर परब्रह्म प्रभु ही हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भागवत 9.11.19
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