भागवत सुधा -करपात्री महाराजपूतना लोकबालघ्नी राक्षसी रुधिराशना। (पूतना संसार के बालकों को मार डालने वाली और रक्तपान करने वाली राक्षसी थी। उसने भगवान को दूध तो पिलाया सही, परन्तु मारने की इच्छा से ही। उसे सद्गति प्राप्त हुई। फिर जिन्होंने परमात्मा कृष्ण को माता के समान स्नेह पूर्वक श्रद्धा और भक्ति से उनकी मनचाही वस्तुएँ दी, उन गोपियों की सद्गति के विषय में तो कहना ही क्या है? जिसके अंगों पर श्रीहरि ने अपने लोकवन्द्य देवताओं के भी पूज्य भक्तों के हृदय में निरन्तर विराजमान रहने वाले चरणों से चढ़कर स्तन पान किया, वह पूतना राक्षसी होकर भी जब माता को प्राप्त होने योग्य परमगति रूप स्वर्ग लोक को प्राप्त हुई। फिर जिसके स्तन का पान भगवान ने स्वयं किया, उन गौवों और माताओं की तो बात ही क्या है? है राजन! कैवल्यादि सर्व प्रकार की मुक्तियों को देने वाले भगवान देवकीनन्दन ने जिनका पुत्रस्नेह से स्वयं ही झरता हुआ दूध पिया, श्रीकृष्ण में निरन्तर पुत्रभाव करने वाली उन गो और गोपियों को फिर कभी अज्ञानजन्य संसार की प्राप्ति नहीं हो सकती।) |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (भागवत 10/6/35-40)
- ↑ ऐसी कवन प्रभु की रीति?
विरद हेतु पुनीत परिहरि पाँवरनि पर प्रीति।।1।।
गई मारन पूतना कुच काल कूट लगाइ।
मातु की गति दई ताहि कृपालु यादवराय ।।2।।(विनयपत्रिका 214)
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