भागवत सुधा -करपात्री महाराज5. देव दुर्लभ श्रीमद्भागवत:- एवं विनिमये जाते सुधा राज्ञा प्रतीयताम् । अर्थात जब शुकदेव जी राजा परीक्षित को यह कथा सुनाने के लिये सभा में विराजमान हुए, तब देवता लोग उनके पास अमृत का कलश लेकर आये। देवगण अपना काम बनाने में बड़े कुशल होते हैं। वे इस अवसर पर भी भला कब चूकने वाले थे? उन्होंने शुकदेव जी को नमस्कार करके कहा- ‘आप यह अमृत ले लीजिये। बदले में हमें कथासुधा प्रदान कीजिये’ इस प्रकार परस्पर विनिमय का प्रस्ताव देवताओं ने रखा- ‘राजा परीक्षित अमृत का पान करें और हम श्रीमद्भागवतरूप अमृत का पान करेंगे।।’ इस संसार में कहाँ काँच और कहाँ महामूल्य मणि? कहाँ सुधा और कहाँ कथा?’ श्री शुकदेव जी ने यह विचार कर उस समय देवताओं की हँसी उड़ा दी।। उन्हें भक्तिशून्य जानकर कथामृत का दान नहीं किया। इस प्रकार यह श्रीमद्भागवत की कथा देवताओं को भी दुर्लभ है। हमें तो ऐसा लगता है कि जैसे निराकार निर्विकार अखण्ड परात्पर परब्रह्म का चिन्तन करने का अद्भुत महत्त्व है, वैसे ही चरित्र का भी वही महत्त्व है। जो चरित्रनायक है वही चरित्र है। ‘भक्तों के हृदय में भगवान कैसे प्रवेश करते हैं, कहाँ से आते हैं?’ इस पर कहते हैं- ‘प्रविष्टः कर्णरन्ध्रेण’[2]कर्णरन्ध्र से ही सर्वान्तरात्मा सर्वेश्वर सर्वशक्ति सम्पन्न भगवान भक्तों के हृदय में प्रवेश करते हैं। |
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