भागवत सुधा -करपात्री महाराजअव्यक्तं कारणं यत्तत् प्रधानमृषिसत्तमैः । (अव्यक्त कारण है। उसी को ऋषिश्रेष्ठ प्रधान प्रकृति कहते हैं। वह सूक्ष्म, नित्य और सत्- असदात्मक है।।) यतो वा इमानि भूतानि जायन्ते। येन जातानि जीवन्ति। (जिससे निश्चय ही ये सब भूत उत्पन्न होते हैं, उत्पन्न होकर जिसके आश्रय से जीवित रहते हैं और अन्त में विनाशीन्मुख होकर जिसमें ये लीन होते हैं, उसे विशेष रूप से जानने की इच्छा करें, वही ब्रह्म है।।) निःश्वसितमस्य वेदा वीक्षितमेतस्य पंचभूतानि। (वेद जिस ब्रह्म के निःश्वास हैं, पंचभूत जिनके वीक्षणमात्र से उत्पन्न है, यह चराचर जगत् जिसका मन्द हास है एवं महाप्रलय जिसका शयन है, उसे नमस्कार करता हूँ।।) अस्य महतो भूतस्य निःश्वसितमेतद्यदृग्वेदः[5] (यह जो ऋग्वेद आदि है, वह इस सत्य ब्रह्म का निःश्वास है।।) जाकी सहज स्वास श्रुति चारी। सहज श्वास (स्वाँस) माने अकृतिम स्वाँस। स्वाँस अकृत्रिम होती ही है। अकृत्रिम माने बुद्धिप्रयत्नानपेक्ष। स्वाँस के निर्माण में बुद्धि नहीं खर्च करनी पड़ती। स्वाँस के लेने में प्रयत्न नहीं खर्च करना पड़ता। क्योंकि निद्राकाल में भी स्वाँस चलती है। निद्रा में बृद्धि होती नहीं। अगर निद्राकाल में बुद्धि रहे प्रयत्न रहे तो निद्रा ही नहीं। बुद्धि, प्रयत्न बिना भी सुषुप्ति में स्वाँस चलता रहता है। इसलिए स्वाँस अकृत्रिम है। अनन्तकोटिब्रह्माण्डनायक भगवान के सहज स्वाँस से चारों वेदों का प्रादुर्भाव हुआ। नैयायिक कहते हैं- ‘भगवान ने बुद्धि और प्रयत्न पूर्वक ही वेद की रचना की है’ ऐसा मानने में क्या हर्ज हैं? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ विष्णु पुराणे 2/1/19
- ↑ श्रुतियाँ स्वयं ही इसी तथ्य का प्रतिपादन करती हैं-
सर्वाणि भौतिकानि कारणे भूतपंचके संयोज्य भूमिं जले जलं वह्नौ वह्नौ वायौ वायु-माकाशे चाकाशमहंकारे चाहंकारं महति महदव्यक्तेअव्यक्तं पुरुषे क्रमेण विलीयते।(पैंगलोपनिषद् 3/1) - ↑ (तैत्तिरीयोपनिषद् 3/1)
- ↑ (भामती 2)
- ↑ (बृहदारण्यकोपनिषद् 4/5/11)
- ↑ (रामचरितमानस 1।204)
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