विषय सूचीभागवत सुधा -करपात्री महाराजषष्ठ-पुष्प 5. शरण्य की शरणागतिहाँ एक बात है, ऐसा नहीं कि शरणागति दूसरी नहीं करनी चाहिये। इष्ट शरणागति के अनुकूल जो शरणागति हो, वह स्वीकार करने योग्य है। 6. शरण्य का स्वरूपशरण्य में क्या होता है? सर्वोश्वरत्व, सर्वकारणत्व, सर्वशेषित्व और सुलभत्व। ये शरण्य के प्रयोजक है। कौन शरण्य हो सकता है? जो सर्वोश्वर हो, सर्वकारण हो, सर्वशेषी हो और सर्व सुलभ हो। विभीषण की सहरणागति सफल हुई, क्योंकि उसने शरण्य ठीक चुना। भगवान राम सर्वेश्वर, सर्वकारण, सर्वशेषी और सर्व सुलभ भी हैं, पर उनसे भी ज्यादा सुलभ श्री जी है। श्रीराम को अनन्त ब्रह्माण्ड के उत्पाद, पालन और संगरण के प्रपञ्च में संलग्न रहना पड़ता है और सब सर्ते उनमें भी ठीक हैं। सर्वेश्वरत्व भी उनमें है, सर्वंशेषित्व भी उनमें है, सर्वकारणत्व भी उनमें है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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