विषय सूचीभागवत सुधा -करपात्री महाराजअष्टम-पुष्प 11. सत्यज्ञानानन्तान्दमात्रैकरसमूति ‘श्रीकृष्ण’जो लोक शंकराचार्य जी महाराज को मायावादी कहकर उपहास करते हैं, वे समझते-बूझते नहीं, तभी ऐसा कहते हैं। भगवान शंकराचार्य स्वयं लिखते हैं- ब्रह्माण्डानि बहूनि पंकजभवान्प्रत्यण्डमत्यद्भुतान (जिन्होंने ब्रह्मा जी को अनेक ब्रह्माण्ड, प्रत्येक ब्रह्माण्ड में अलग-अलग अति अद्भुत ब्रह्मा, वत्सोसहित समस्त गोपों तथा भिन्न-भिन्न ब्रह्माण्डों के समस्त विष्णु दिखाये और जिनके चरणोदक को शंकर, अपने शिर पर धारण करते हैं वे श्रीकृष्ण त्रिमूर्ति-ब्रह्मा-विष्णु और महेश से भिन्न कोई अविकारिणी सच्चिदानन्दमयी नीलिमा हैं।) भूतेष्वन्तर्यामी ज्ञानमयः सच्चिदानन्दः। (जो ज्ञानस्वरूप, सच्चिदानन्द, प्रकृति से परे परमात्मा सब भूतों में अन्तर्यामी रूप से स्थित है, यह यदुकूल भूषण श्रीकृष्ण वही तो है।) यद्यपि साकारोअयं तथैकदेशी विभाति यदुनाथः। (यद्यपि यदुनाथ श्रीकृष्णचन्द्र साकार हैं और एकदेशी से दिखायी देते हैं, तथापि ये सर्वव्यापी, सर्वात्मा और सच्चिदानन्द ही हैं।) सत्यज्ञानानन्तानन्दमात्रैकरसमूर्त्तयः।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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