भागवत सुधा -करपात्री महाराजपंचम-पुष्प श्रीमद्भागवत के अनुसार राजा परीक्षित पाण्डवों के निर्माण[1] के अनन्तर सम्राट हुए। वे धर्म पूर्वक राष्ट्र[2] का रक्षण कर रहे थे। उनको प्रसंगानुसार एक ऋषि[3] का शाप हो गया- ‘तक्षकः सप्तमेअहनि। दड्क्षयति स्म........’।[4] ‘आज के सातवें दिन तक्षक नाग काटेगा।’ अनन्त, वासुकि, तक्षक, कर्कीटक, पद्य, महापद्य, शंख कुलिक- ये सब अष्ट महानाग हैं। स्वाभाव से ही राजा अन्तर्मुख-विरक्त और भगवत्परायण थे। उन्हें सर्वस्व त्याग पूर्वक भगवत्पद प्राप्ति का निमित्त मिल गया। जहाँ और लोग विपत्ति के आने में रोने-गाने[5] में समय का अपव्यय करते हैं, वहाँ राजा परीक्षित ने यह सब नहीं किया[6], तत्काल जनमेजय को उत्तराधिकारी घोषित करके स्वयं सर्वस्व त्याग करके गंगा के तट पर शुकताल[7] में जहाँ गंगा जी की पवित्र रती थी वहीं जाकर बैठ गये। वे लोकैषणा, पुत्रैषणा और वित्तैषणा से विनिर्मुक्त थे। सर्वान्तरात्मा सर्वेश्वर सर्वाधिष्ठान परात्पर परब्रह्म श्रीकृष्ण में अनन्य भक्ति उनकी थी। धर्मात्मा तो प्रसिद्ध ही थे। सुनते ही बड़े-बड़े़ योगीन्द्र-मुनीन्द्र-अमलात्मा-परमहंस सब पहुँचे वहाँ पर। इसी बीच में भगवान शुकदेव जी भी आ गये। ‘‘तत्राभवद् भगवान व्यासपुत्रो यदृच्छद्या गामटमानोअनपेक्षः। उसी समय पृथ्वी पर स्वेच्छा से विचरण करते हुए, किसी से और किसी की कोई अपेक्षा न रखने वाले व्यासनन्दन भगवान श्रीशुकदेव जी महाराज वहाँ प्रकट हो गये। वे शेष अथवा आश्रम के बाह्म चिह्नों से रहित एवं आत्मानुभूति में सन्तुष्ट थे। बच्चों और स्त्रियों ने उन्हें घेर रक्खा था। उनका वेष अवधूत का था। ‘तत्राभवत्’ कहा है। मालूम होता है, थे तो वहाँ पहले से ही, परन्तु अभिव्यक्त हो गये। नहीं तो ‘तत्रागच्छत’ ऐसा कुछ बोलना चाहिये था। जैसा कि हमने पहले ही कहा था कि वे सर्वात्मा परात्पर परमात्मा को प्राप्त हो गये थे। श्री शुकदेव जी विम्ब रूप परमेश्वर की आराधना से स्वयं को सुशोभित बनाकर पुनः ब्रह्मात्मभाव सम्पन्न हो गये थे। सर्वभूत हृदय होने के कारण सर्वात्मा श्रीकृष्ण में अनुरक्त परीक्षित का समुद्धार करने के लिये स्वयं ही अवतीर्ण हो गये। ब्रह्मात्म तत्त्व के विज्ञान से जीव को अद्वैतवाद के अनुसार ईश्वर की प्राप्ति होती है मुक्ति में- यह एक सिद्धान्त है। ईश्वर या ब्रह्म क्या है? जैसे वही गगनस्थ सूर्य कभी विम्ब कहलाता है और कभी केवल गगनस्थ सूर्य। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ स्वर्गारोहण
- ↑ विश्व
- ↑ ऋषि-बालक
- ↑ भागवत 1/18/37
- ↑ चिल्लाने
- ↑ यह प्रसंग भागवत स्कन्ध 1 अध्याय 15 से 19 तक के अनुसार है।
- ↑ यह स्थान मुजफ्फुर नगर (उ0प्र0) जिला में आजकल है। मुजफ्फुर नगर-मोरना से आगे अवस्थित है। शुकताल के दक्षिण (मेरठ जनपद में) हस्तिनापुर है।
- ↑ भागवत 1.19.25
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