भागवत सुधा -करपात्री महाराजयह श्लोक है बड़ा सारनान। सम्पूर्ण शास्त्रों का सार है। ‘सत्यं परं धीमहि=परं परमात्मानं धीमहि।’ उस परमात्मा भगवान् सच्चिदानन्द परात्पर परब्रह्म का हम ध्यान करते हैं।
वह कौन हैं? परम अर्थात परमेश्वर; उसका क्या लक्षण है? पहले तटस्थ लक्षण कहते हैं, फिर स्परूप लक्षण। तटस्थ लक्षण है- ‘जन्माद्यस्य यतः’[1]।
अनन्त कोटि ब्रह्माण्डात्मक विश्व प्रपंच जिससे पैदा होता है, सम्पूर्ण विश्व प्रपंच जिससे उत्पन्न होकर जिस में स्थित रहता है और अन्त में जिसमें वह सब प्रविलीन हो जाता है। ऐसा भगवान सर्वान्तरात्मा सर्वद्रष्टा परमेश्वर है। उसका हम ध्यान करते हैं। सोम्यान्नेन शुंगेनापो मूलमन्विच्छादिभः सोम्य ( हे सौम्य! तू अन्न रूप शुंग- अंकुर के द्वारा जल रूप मूल को खोज। हे सौम्य! जल रूप शुंग के द्वारा तेज रूप मूल को खोज। तेजी रूप शुंग के द्वारा सद्-रूप मूल का अनुसन्धान कर। हे सौम्य। इस तरह यह सम्पूर्ण प्रजा सन्मूलक है। सत् ही इसका आश्रय है। सत् ही इसकी प्रतिष्ठा है।।) |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ध्यायतेलिडिं छान्दसं ध्यायमेत्यर्थः।
बहुवचनं शिष्याभिप्रायम्।
तमेव स्वरूप- तटस्थ लक्षयणाभ्यामुपलक्षयति।
तत्र स्वरूप लक्षणं सत्यमिति, तटस्थ लक्षणमाह जन्मादीति। श्रीधरी - ↑ (छान्दोग्योपनिषद् 6/9/4)
- ↑ (छा. उ. 6/9/4)
- ↑ (छा. उ. 6/9/4)
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