भागवत सुधा -करपात्री महाराजअष्टम-पुष्प 15. दामोदरलीलातात्पर्य यह है कि लीलारसपोषका ऐसा झूठ दोष नहीं गिना जाता, किन्तु गुण ही गिना जाता है। इसी भाव की भागवत में कुन्ती की स्तुति है- गोप्याददे त्वयि कृतागसि दाम तावद् अर्थात हे व्रजेन्द्रनन्दन श्यामसुन्दर! जब आपकी अघटितघटनापटीयसी माया से मुग्ध हुई यशोदा रस्सी लेकर बाँधने लगी, उस समय ‘वक्त्रं निनीय भयभावनया स्थितस्य’ मुख नीचा किया, आँखें डबडबा आयीं, अंजन मिश्रित अश्रु कपोल पर लुढ़क आये, मानो नील कमल के कोश पर ओस के कण का मुक्ता बिन्दु शोभा पा रहे थे। ‘सा मां विमोहयति भीरपि यद्बिभेति’, ‘जिससे काल भी भयभीत होता है, उसका यशोदा से डरना मुझे मुग्ध कर रहा है।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भागवत 1.8.13
संबंधित लेख
क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज