भागवत सुधा -करपात्री महाराजभागवत-सुधा
श्रीमद्भागवत-प्रवचन-माला
प्रथम-पुष्प ऊँ नमः परमहंसास्वादितचरणकमलचिन्मकरन्दाय- 1. निगमकल्परोर्गलितं फलम्ः- निगमकल्परोर्गलितं फलं शुकमुखादमृतद्रवसंयुतम् । हे रसिको! यह श्रीमद्भागवत वेद रूप कल्पवृक्ष का परिपक्व (सुपक्व) फल है। श्रीशुक के मुख से संस्पृष्ट होने के कारण आनन्द पूर्ण अनन्त अमृत से भरपूर है। इस फल में छिलका गुठली आदि त्याज्य अंश तनिक भी नहीं है। यह रसस्वरूप परमात्मा का अभिव्यंजक, प्रकाशक होने के कारण साक्षात रस ही है। मुक्त हो जाने पर भी पुनः-पुनः (बार-बार) इसका पान करते ही रहिये। यह भूलोक में ही सुलभ है।। स्वर्गलोक, कैलासपुरी, वैकुण्ठ में भी सुदुर्लभ है। अतः भाग्यवान भक्तो! पियो, पियो, पीते रहो, कभी मत छोड़ो, कभी मत छोड़ों- स्वर्गे सत्ये च कैलासे वैकुण्ठे नास्त्ययं रसः । आम्र के अंकुर-नाल-स्कन्ध-शाखा-उपशाखा, सबकी अपेक्षा महत्त्व फल का है, अंकुर में वह चमत्कार नहीं, नाल-स्कन्ध-शाखा-उपशाखा-मुकुल (बौर) में वह चमत्कार नहीं जो चमत्कार फल में है। वह फल भी कहीं स्वयं परिपक्व हो तो फिर कहना ही क्या? आजकल मसाला से पका लेते हैं, यह ठीक नहीं। फल स्वयं परिपक्य हो और शुकतुण्डसंस्पृष्ट हो (तोते की चोंच लग गयी हो) तो उसका मिठास अद्भुत हो जाता है। पर यह तो आम्र का फल नहीं है, कल्पवृक्ष का फल है। कल्पवृक्ष के भी नाल-स्कन्ध-शाखा-उपशाखा से अधिक महत्त्व उसके फल का होता है। परन्तु यह सामान्य कल्पवृक्ष का फल नहीं किन्तु निगम कल्पवृक्ष का फल है। देवताओं का कल्पवृक्ष बड़े महत्त्व का है, उससे अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। कल्पवृक्ष, चिन्तामणि और कामधेनु ये सब देवलोक की असाधारण वस्तुएँ हैं। इनसे चिन्तित पदार्थ की प्राप्ति हो जाती है, भोग और भोग्य सामग्री ही मिल सकती है। दिव्यातिदिव्य विमान मिल जाय, उत्तम-उत्तम वस्त्र, उत्तम-उत्तम अलंकार मिल जाय, अमृत जाय, परन्तु उनसे भगवान मिल जाँए तो यह चमत्कार कल्पवृक्षादि में नहीं है। यह चमत्कार तो निगमकल्पतरु में ही है। |
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