भागवत सुधा -करपात्री महाराजइसलिए भक्तों ने माना है- निर्विकार निराकार ब्रह्म जैसा व्यापाक है, वैसा ही सगुण-साकार-परब्रह्म भी व्यापक है। वह एकदेशीय नहीं है। व्यापक न होता तो वह गर्भ में कैसे प्रकट होता? बाहर से जाने की तो कोई गुंजाइश नहीं थी। चक्रधारी अनन्त तेज सम्पन्न पूर्णतम पुरुषोत्तम ने परब्रह्म उत्तरा के गर्भ में प्रकट हो करके अपने अस्त्रतेज से उस ब्रह्मास्त्र का विधूनन करके गर्भ का रक्षण किया और अमृत वर्षिणी कृपादृष्टि से पुनरुज्जीवित किया। स एष लोके विख्यातः परीक्षिदिति यत्प्रभुः। उस समय बालक ने अपने गर्भदृष्ट पूर्व दृष्ट पुरुष का स्मरण कर मनुष्यों में उसकी परीक्षा की थी। इसलिए वह लोक में ‘परीक्षित’ नाम से विख्यात हुआ।।) उत्तर मिला- ये भीम हैं, ये नकुल हैं, ये सहदेव हैं। बोले- ये वे तो हैं ही नहीं, जिन्हें मैंने गर्भ में देखा। परम कृपापात्र परीक्षित पर कृपा करने के लिए वही परात्पर परब्रह्म कृष्ण ही शुकदेव का रूप धारण करके उनके कल्याण के लिए स्वयं प्रकट हो गये। क्योंकि भगवान का प्रकाश भगवान् के द्वारा ही होता है। भगवान् ही परात्पर परब्रह्म श्री शुकदेव जी महाराज के रूप में प्रकट हो गये, उनके कल्याण के लिए- तत्राभवद्धगवान् व्यासपुत्रो यदृच्छया गामटमानोअनपेक्षः। (उसी समय परम निरपेक्ष व्यास पुत्र भगवान शुकदेव स्वच्छन्दता से पृथ्वी पर विचरते हुए वहाँ आये। जो कि वर्णाश्रमादि चिह्नों से रहित, आत्मलाभ से सन्तुष्ट, स्त्री-बालकों से घिरे हुए और अवधूत वेष में थे।) |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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