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भागवत सुधा -करपात्री महाराज
इस तरह भक्तराज ने वरदान माँगा- ‘हृदय में कामनाओं का अंकुर ही पैदा न हो। लेकिन फिर भी देखा भगवान कुछ देना ही चाहते हैं, तो कुछ माँग ही लूं। जो वरदान उन्होंने माँगा, उसे वे प्रतिदिन नहा धोकर, पवित्र होकर, सन्ध्या करके, सूर्यार्ध्य देकर, सूर्योपस्थान करके, भगवान की पूजा करके, भगवान को भोग लगा करके, फिर प्रभु से माँगते हैं- स्वस्त्यस्तु विश्वस्य’ प्रभो! विश्व का स्वस्ति हो विश्व का कल्याण हो। जब प्रह्लाद ने ऐसा वर माँगा, तो भगवान ने कहा- ‘‘प्रह्लाद, यह क्या करते हो? विश्व में तो जहरीले बिच्छू भी हैं, जहरीले सर्प हैं, सबका अभ्युदय हो जायगा तो दुनियाँ का रहना मुश्किल हो जायगा।’’ भक्तराज ने कहा- ‘‘नहीं, नहीं! हम जो कहते हैं ठीक ही है, ठीक ही बोल रहे हैं, स्वस्त्यस्तु’’
भगवान बोले- ‘‘फिर दुर्जनों का क्या होगा?’’
भक्तराज ने कहा-‘‘दुर्जनः सज्जनो भूयात्’’ भगवन! आप कृपा करो। दुर्जन प्राणी सज्जन बन जाँय। दुर्जन की दुर्जनता मिट जाय। दुर्जन सज्जन बन जाँय। आप कर सकते हैं। ‘छूछी भरें, भरी ढरकावें, जब चाहे तब फेर भरावें, आप मच्छर को ब्रह्मा बना सकते हैं। तो क्या दुर्जन को सज्जन नहीं बना सकते? दुर्जन को सज्जन बना सकते हैं। ‘दुर्जनः सज्जनो भूयात्..........’ दुर्जन सज्जन हों। सज्जन शान्ति लाभ करें। शान्त बन्धनों से मुक्त हो जाँय। विमुक्त प्राणी दूसरों की मुक्ति के काम में लग जाँय।’’ यह हमारा आदर्श है। पड़ोसी का सगुन बिगाड़ने के लिए अपनी नाक कटाना यह हमारा सिद्धान्त नहीं है। अनिष्ट चिन्तन न करें? हम सबका मन भद्रदर्शी हो, हमारी प्रज्ञा अखण्ड अनन्त ब्रह्माण्ड नायक भगवान सर्वेश्वर के मंगलमय पादारविन्द में सन्निविष्ट हो। ये सब भक्तराज प्रह्लाद माँगते हैं।
20. भगवान् जगत के अभिन्ननिमित्तोपादानकारणः-
तो कहने का मतलब हुआ कि ‘जन्माद्यस्य यतः’ के अनुसार भगवान परमात्मा से अनन्त ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति हुई। चन्द्रमण्डल, सूर्यमण्डल, भूधर, सागर गगनादि की उत्पत्ति हुई। घट के निमित्त (कुलाल) और उपादान (मिट्टी) सबको बनाने वाले भगवान ही। कटक, मुकुट, कुण्डल, बनाने वाले और सोने को भी बनाने वाले वही। मशीन बनाने वाले और मशीन का मूल लोहा बनाने वाले भी वही। सारे प्रपंच का निर्माण करने वाला सर्वशक्तिमान् परमात्मा[1] ही है।
(जो कुछ प्रत्यक्ष या परोक्ष वस्तु है, वह आत्मा ही है। जो कुछ विश्व-सृष्टि प्रतीत हो रही है, इसका वह निमित्त कारण तो है ही, उपादान-कारण भी है। अर्थात वही विश्व बनता भी है और बनाता भी है, वही रक्षक भी है और रक्षित भी है। सर्वात्मा भगवान ही इसका संहार करते हैं और जिसका संहार होता है, वह भी वे ही हैं।)
भगवान में अचिन्त्य शक्ति है। ऋषियों से भी अनन्त गुणित दिव्यशक्ति। कल्पवृक्ष से भी अनन्तानन्तगुणित शक्ति, चिन्तामणि से भी अनन्तानन्तगुणित बहुत शक्ति, कामधेनु से भी अनन्त-अनन्त गुणित निर्माणशक्ति। सर्वेंश्वर भगवान ने विश्व प्रपंच का निर्माण किया।
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