विषय सूचीभागवत सुधा -करपात्री महाराजअष्टम-पुष्प 20. कथा श्रवण से वैराग्य एवं विज्ञानोपलब्धिथोडे़ सयम में सबका वर्णन तो कठिन है। अन्त में शुकदेव जी महाराज कहते हैं- कथा इमास्ते कथिता महीयसां अर्थात राजन! मैंने तुमसे बहुत-सी कथाएँ कहीं। चक्रवर्ती नरेन्द्र, विराट, स्वराट जिन्होंने अपना दिग्दिगन्त व्यापी अनन्त यश फैलाया, परन्तु अन्त में वे भी परलोक चले गये। उनके बारे में जो कुछ कहा वह वाग्वैभव मात्र ही है, इसमें कोई परमार्थता नहीं है, वैराग्य विज्ञान की विवक्षा से ही हमने उनका वर्णन किया है[2]।
फिर क्या सुनना है सदा? भगवान श्रीकृष्णचन्द्र परमानन्दकन्द का जो मंगलमय गुणानुवाद है, वह सब प्रकार के अमंगलों को समूल दूर करने वाला है। प्रसंगान्तर ला-लाकर उसी का सदा श्रवण करते रहना चाहिये।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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