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ब्रह्म वैवर्त पुराण
श्रीकृष्ण जन्म खण्ड (उत्तरार्द्ध): अध्याय 130-131
जो मनुष्य शुद्ध समय में जितेंद्रिय होकर संकल्प पूर्वक वक्ता को दक्षिणा देकर भक्ति-भावसहित इस चार खण्डों वाले पुराण को सुनता है, वह अपने असंख्य जन्मों के बचपन, कौमार, युवा और वृद्धावस्था के संचित पाप से निःसंदेह मुक्त हो जाता है तथा श्रीकृष्ण का रूप धारण करके रत्ननिर्मित विमान द्वारा अविनाशी गोलोक में जा पहुँचता है। वहाँ उसे श्रीकृष्ण की दासता प्राप्त हो जाती है, यह ध्रुव है। असंख्य ब्रह्माओं का विनाश होने पर भी उसका पतन नहीं होता। वह श्रीकृष्ण के समीप पार्षद होकर चिरकाल तक उनकी सेवा करता है। मुने! भलीभाँति स्नान करके शुद्ध हो तथा इंद्रियों को वश में करके ‘ब्रह्माण्ड’ की कथा सुनने से पश्चात श्रोता को चाहिए कि वह वाचक को खीर-पूड़ी और फल का भोजन कराये, पान का बीड़ा समर्पित करे और सुवर्ण की दक्षिणा दे। फिर चन्दन, श्वेत पुष्पों की माला और मनोहर महीन वस्त्र श्रीकृष्ण को निवेदित करके वाचक को प्रदान करे। अमृतोपम सुन्दर कथाओं से युक्त ‘प्रकृतिखण्ड’ को सुनकर वक्ता को दधियुक्त अन्न खिलाकर स्वर्ण की दक्षिणा देनी चाहिए और फिर भक्तिपूर्वक सुन्दर सवत्सा गौ का दान देना चाहिए। विघ्ननाश के लिए ‘गणपति खण्ड’ को सुनकर जितेन्द्रिय श्रोता को उचित है कि वह वाचक को सोने का यज्ञोपवीत, श्वेत अश्व, छाता, पुष्पमाला, स्वस्तिक के आकार की मिठाई, तिल के लड्डू और काल-देशानुसार उपलब्ध होने वाले पके फल प्रदान करे। ‘श्रीकृष्णजन्मखण्ड’ को श्रवण करके भक्त को चाहिए कि वाचक को रत्न की सुंदर अँगूठी दान करे और फिर महीन वस्त्र, हार, उत्तम स्वर्णकुण्डल, माला, सुंदर पालकी, पके हुए फल, दूध और अपना सर्वस्व दक्षिणा में देकर उनकी स्तुति करे। इसके बाद सौ ब्राह्मणों को परम आदर के साथ भोजन कराना चाहिए। जो विष्णुभक्त, शास्त्रपटु, पंडित और शुद्धाचारी हो, ऐसे ही श्रेष्ठ ब्राह्मण को वाचक बनाना चाहिए। जो श्रीकृष्ण से विमुख, दुराचारी और उपदेश देने में अकुशल हो, ऐसे ब्राह्मण से कथा नहीं सुननी चाहिए। नहीं तो, पुराण-श्रवण निष्फल हो जाता है। जो श्रीकृष्ण की भक्ति से युक्त हो इस पुराण को सुनता है, वह श्रीहरि की भक्ति और पुण्य का भागी होता है तथा उसके पूर्वजन्म के पाप नष्ट हो जाते हैं। विप्रवर! इस प्रकार मैंने अपने गुरु जी के श्रीमुख से जो कुछ सुना था, वह सब आपसे वर्णन कर दिया। अब मुझे जाने की आज्ञा दीजिए; मैं नारायणाश्रम को जाना चाहता हूँ। यहाँ इस विप्र-समाज को देखकर नमस्कार करने के लिए आ गया था; फिर आपलोगों की आज्ञा होने से उत्तम व्रह्मवैवर्तपुराण भी सुना दिया। आप ब्राह्मणों को मेरा नमस्कार प्राप्त हो। परमात्मा श्रीकृष्ण, शिव, ब्रह्मा और गणेश को नित्यशः बारंबार नमस्कार है। शौनक जी! जो सत्यस्वरूप, राधा के गणेश और तीनों गुणों से परे हैं; उन परब्रह्म श्रीकृष्ण का आप मन-वचन-शरीर से परमभक्तिपूर्वक रात-दिन भजन कीजिए। सरस्वती-देवी को नमस्कार है। पुराणगुरु व्यास जी को अभिवादन है। संपूर्ण विघ्नों का विनाश करने वाली दुर्गा देवी को अनेकशः प्रणाम है। शौनक जी! आपलोगों के पुण्यमय चरणकमलों का दर्शन करके आज मैं उस सिद्धाश्रम को जाना चाहता हूँ, जहाँ भगवान गणेश विराजमान हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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