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ब्रह्म वैवर्त पुराण
श्रीकृष्णजन्मखण्ड: अध्याय 47
हँसते हुए बालक और बालिकाओं के समूह उन्हें घेरकर खड़े थे। वे बड़े उत्साह से मुस्करा रहे थे और उनका स्वरूप अत्यंत तेजस्वी जान पड़ता था। इन्द्र ने उन शिशुरूपधारी हरि को भक्तिभाव से प्रणाम किया और भक्तवत्सल श्रीहरि ने प्रेमपूर्वक उन्हें आशीर्वाद दिया। इंद्र ने मधुपर्क आदि देकर उनकी पूजा की और ब्राह्मण बालक से पूछा- 'कहिये, किसलिए आपका शुभागमन हुआ है?' इन्द्र का वचन सुनकर ब्राह्मण बालक ने जो बृहस्पति के गुरु के भी गुरु थे, मेघ के समान गंभीर वाणी में कहा। ब्राह्मण बोले- देवेंद्र! मैंने सुना है कि तुम बड़े विचित्र और अद्भुत नगर का निर्माण करा रहे हो; अतः इस नगर को देखने तथा इसके विषय में मनोविञ्छित बातें पूछने के लिए मैं यहाँ आया हूँ। कितने वर्षों तक इसका निर्माण कराते रहने के लिए तुम तुमने संकल्प किया है? अथवा विश्वकर्मा कितने वर्षों में इसका निर्माण कार्य पूर्ण कर देंगे? ऐसा निर्माण तो किस भी इंद्र ने नहीं किया था। ऐसे सुन्दर के निर्माण में दूसरा कोई विश्वकर्मा भी समर्थ नहीं है। ब्राह्मण बालक की यह बात सुनकर देवराज इंद्र हँसने लगे। वे संपत्ति के मद से अत्यंत मतवाले हो रहे थे; अतः उन्होंने उस द्विजकुमार से पुनः पूछा- 'ब्रह्मन! आपने कितने इंद्रों का समूह देखा अथवा सुना है? तथा कितने प्रकार के विश्वकर्मा आपके देखने या सुनने में आये हैं?' यह मुझे इस समय बताइये। इंद्र का यह प्रश्न सुनकर ब्राह्मण कुमार हँसे और अमृत के समान मधुर एवं श्रवण सुखद वचन बोले। ब्राह्मण ने कहा- तात! मैं तुम्हारे पिता प्रजापति कश्यप को जानता हूँ। उनके पिता तपोनिधि मरीचि मुनि से भी परिचित हूँ। मरीचि के पिता देवेश्वर ब्रह्मा जी को भी, जो भगवान विष्णु के नाभिकमल से उत्पन्न हुए हैं, जानता हूँ और उनके रक्षक सत्त्वगुणशाली महाविष्णु का भी परिचय रखता हूँ। मुझे उस एकार्णव प्रलय का भी ज्ञान है, जो संपूर्ण प्राणियों से शून्य एवं भयानक दिखायी देता है। इंद्र! निश्चय ही सृष्टि कई प्रकार की है। कल्प भी अनेक हैं तथा ब्रह्माण्ड भी कितने ही प्रकार के हैं। उन ब्रह्माण्डों में अनेकानेक ब्रह्मा, विष्णु, महेश तथा इंद्र भी बहुतेरे हैं। उन सबकी गणना कौन कर सकता है? सुरेश्वर! भूतल के धूलिकरणों की गणना कर ली जाय तो भी इंद्रों की गणना नहीं हो सकती है; ऐसा विद्वानों का मत है। इंद्र की आयु और अधिकार इकहत्तर चतुर्युग तक है। अट्ठाईस इन्द्रों का पतन हो जाने पर विधाता का एक दिन-रात पूरा होता है। इस तरह एक सौ आठ वर्षों तक ब्रह्मा जी की संपूर्ण आयु है। जहाँ विधाता की भी संख्या नहीं है, वहाँ देवेंद्रों की गणना क्या हो सकती है? जहाँ ब्रह्माण्डों की ही संख्या ज्ञात नहीं होती; वहाँ ब्रह्मा, विष्णु और महेश की कहाँ गिनती है? महाविष्णु के रोमकूपजनित निर्मल जल में ब्रह्माण्ड की स्थिति उसी तरह है, जैसे सांसारिक नदी-नद आदि के जल में कृत्रिम नौका हुआ करती है। इस प्रकार महाविष्णु के शरीर में जितने रोएँ हैं, उतने ब्रह्माण्ड हैं; अतःएव ब्रह्माण्ड असंख्य कहे गये हैं। एक-एक ब्रह्माण्ड में तुम्हारे जैसे कितने ही देवता निवास करते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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