ब्रह्म वैवर्त पुराण
गणपतिखण्ड: अध्याय 34
कामिनि! रात में मोटक, पिण्ड, शवसंयुक्त श्मशान, लाल वस्त्र और सफेद वस्त्र भी दीखे हैं। शोभने! मैंने देखा कि एक विधवा स्त्री, जो काले रंग की थी और काला वस्त्र पहने हुए थी तथा जिसके बाल खुले हुए थे, नंगी होकर मेरा आलिंगन कर रही है। प्रिये! नाई मेरे सिर तथा दाढ़ी के बाल छील रहा है और वक्षःस्थल पर नखों की खरोंच लगी है; रात में मैंने ऐसा भी देखा है। सुन्दरि! पादुका, चमड़े की रस्सियों की बहुत बड़ी राशि और कुम्हार के चाक को भूमि पर घूमते हुए देखा। सुव्रते! रात में देखा कि आँधी ने एक सूखे पेड़ को झकझोरकर उखाड़ दिया है और वह वृक्ष पुनः उठकर खड़ा हो गया है तथा बिना सिर का धड़ चक्कर काट रहा है। श्रेष्ठे! एक गुँथी हुई मुण्डों की माला, जिसमें अत्यन्त भयंकर दाँत दीख रहे थे तथा जिसे आँधी ने चूर-चूर कर दिया था, मुझे दीख पड़ी। रात में मैंने यह भी देखा कि झुंड-के-झुंड भूत-प्रेत, जिनके बाल खुले हुए थे और जो मुख से आग उगल रहे थे– मुझे लगातार भयभीत कर रहे हैं। रात में मैंने जला हुआ जीव, झुलसा हुआ वृक्ष, व्याधिग्रस्त मनुष्य और अंगहीन शूद्र को भी देखा है। रात में मैंने यह भी देखा कि सहसा घर, पर्वत और वृक्ष गिर रहे हैं तथा बारंबार वज्रपात हो रहा है। रात में घर-घर में कुत्ते और सियार निश्चितरूप से बारंबार रो रहे थे, मुझे यह भी दिखायी पड़ा है। मैंने एक पुरुष को देखा– जो दिगम्बर था, जिसके बाल बिखरे थे और जो नीचे मस्तक तथा पैर ऊपर करके पृथ्वी पर घूम रहा था। उसकी आकृति और बोली विकृत थी। फिर प्रातःकाल ग्राम के अधिदेवता का रुदन सुनकर मैं जाग पड़ा। अब बतलाओ, इसका क्या उपाय है। राजा की बात सुनकर मनोरमा का हृदय दुःखी हो गया। वह रोती हुई राजाधिराज कार्तवीर्य से गद्गद वाणी में बोली। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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