ब्रह्म वैवर्त पुराण
गणपतिखण्ड: अध्याय 33
चलते-चलते परशुराम ने अपने दाहिनी ओर यात्रा के समय मंगल की सूचना देने वाले शव, श्रृगाली, जल से पूर्ण घट, नीलकण्ट, नेवला, कृष्णसार मृग, हाथी, सिंह, घोड़ा, गैंडा, द्विप, चमरी गाय, राजहंस, चक्रवाक, शुक, कोयल, मोर, खंजन, सफेद चील, चकोर, कबूतर, बगुलों की पंक्ति, बत्तख, चातक, गौरैया, बिजली, इन्द्रधनुष, सूर्य, सूर्य की प्रभा, तुरंत का काटा हुआ मांस, जीवित मछली, शंख, सुवर्ण, माणिक्य, चाँदी, मोती, हीरा, मूँगा, दही, लावा, सफेद धान, सफेद फूल, कुंकुम, पान का पत्ता, पताका, छत्र, दर्पण, श्वेत चँवर, सवत्सा गौ, रथारूढ़ भूपाल, दूध, घी, राशि-राशि अमृत, खीर, शालग्राम, पका हुआ फल, स्वस्तिक, शक्कर, मधु, बिलाव, साँड़, भेड़ा, पर्वतीय चूहा, मेघाच्छन्न सूर्य का उदय, चन्द्रमण्डल, कस्तूरी, पंखा, जल, हल्दी, तीर्थ की मिट्टी, पीली या सफेद सरसों, दूब, ब्राह्मण का बालक और कन्या, मृग, वेश्या, भौंरा, कपूर, पीला वस्त्र, गोमूत्र, गोबर, गौ के खुर की धूलि, गो पद से चिह्नित गोष्ठ, गौओं का मार्ग (डहर), रमणीय गोशाला, सुन्दर गोगति, भूषण, देवप्रतिमा, प्रज्वलित अग्नि, महोत्सव, ताँबा, स्फटिक, वैद्य, सिंदूर, माला, चन्दन, सुगन्ध, हीरा और रत्न देखा। उन्हें सुगन्धित वायु का आघ्राण और ब्राह्मणों का शुभाशीर्वाद प्राप्त हुआ। इस प्रकार मांगलिक अवसर जानकर वे हर्षपूर्वक आगे बढ़े और सूर्यास्त होते-होते नर्मदा के तट पर पहुँच गये। वहाँ उन्हें एक अत्यन्त मनोहर दिव्य अक्षयवट दिखायी दिया। वह अत्यन्त ऊँचा, विस्तारवाला और उत्तम एवं पावन आश्रम-स्थान था। वहाँ सुगन्धित वायु बह रही थी। वहीं पुलस्त्य-नन्दन ने तपस्या की थी। वहीं कार्तवीर्यार्जुन के आश्रम के निकट परशुराम अपने गणों के साथ ठहर गये। वहाँ उन्होंने रात में पुष्प-शय्या पर शयन किया। थके तो वे थे ही, अतः किंकरों द्वारा भलीभाँति सेवा किये जाने पर परमानन्द में निमग्न हो निद्रा के वशीभूत हो गये। रात व्यतीत होते-होते भार्गव परशुराम को एक सुन्दर स्वप्न दिखायी दिया, जो वायु, पित्त और कफ के प्रकोप से रहित था और जिसका पहले मन में वीचार भी नहीं किया गया था। उन्होंने देखा कि मैं हाथी, घोड़ा, पर्वत, अट्टालिका, गौ और फलयुक्त वृक्ष पर चढ़ा हुआ हूँ। मुझे कीड़े काट रहे हैं जिससे मैं रो रहा हूँ। मेरे शरीर में चन्दन लगा है। मैं पीले वस्त्र से शोभित तथा पुष्पमाला धारण किये हुए हूँ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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