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ब्रह्म वैवर्त पुराण
श्रीकृष्ण जन्म खण्ड (उत्तरार्द्ध): अध्याय 106
रेवती और बलराम का विवाह का वर्णन तथा रुक्मी, शाल्व, शिशुपाल और दन्तवक्र का श्रीकृष्ण को कटुवचन कहना श्री नारायण कहते हैं- नारद! इसी समय महाबली राजा ककुद्मी अपनी कन्या के लिए वर की तलाश में ब्रह्मलोक से भूतल पर आये। उनकी कन्या का नाम रेवती था। वह निरन्तर स्थिर यौवन वाली, अमूल्य रत्नों से विभूषित और तीनों लोकों में दुर्लभ थी। उसकी आयु से सत्ताईस युग बीत चुके थे। राजा ने कौतुकवश अपनी उस कन्या को महाबली बलदेव को ब्याह दी। इस प्रकार मुनियों तथा देवेंद्रों को सभा में विधानपूर्वक कन्यादान करके राजा ने लाखों-लाखों हाथी, घोड़े, रथ, रत्नाभूषण, मणि-रत्न, करोड़ों स्वर्णमुद्राएँ जामाता को दहेज में दीं तथा सुन्दर दिव्य वस्त्रादि दिये। यों बलशाली बलदेव को कन्या देकर राजेंद्र ककुद्मी अमूल्य रत्नों के सार से निर्मित रथद्वारा कुण्डिन-नगर को गये। तदन्तर उस वैवाहिक मंगल-कार्य के समाप्त होने पर देवकी, रोहिणी, नंदपत्नी यशोदा, अदिति, दिति और शांति ने जय-जयकार करके रेवती को, जो नारियों में श्रेष्ठ तथा लक्ष्मी की कलास्वरूपा थीं, महल में प्रवेश कराया और ब्राह्मणों को भोजन कराकर उन्हें धन दान दिया। तदनन्तर देवताओं और मुनियों का समुदाय तथा देश-देशांतर के नरेश आनंदमग्र हो अपनी सेनाओं के साथ सहसा कुण्डिन-नगर में आ पहुँचे। उन सब लोगों ने उस परम मनोहर नगर का अवलोकन किया। बारातियों ने उस नगर के बाहरी दरवाजे को देखा; चार महारथी सैनिकों के साथ उसकी रक्षा कर रहे थे। उनके नाम थे- रुक्मी, शिशुपाल, महाबली दन्तवक्र और मायावियों में श्रेष्ठ एवं युद्ध-शास्त्र में निपुण शाल्व। उस समय राजकुमार रुक्मि, जो युद्ध के लिए उद्यत हो नाना शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित रथ पर सवार था, श्रीकृष्ण की सेना का अवलोकन करके कुपित हो उठा और ऐसे निष्ठुर वचन कहने लगा जो कर्णकटु, अत्यंत दुष्कर तथा मुनीन्द्रों, देवगणों और मुनिवरों के लिए उपहासास्पद थे। रुक्मि ने कहा- अहो! कालकृत कर्म और दैव को कौन हटा सकता है? भला, मैं देवेंद्रों की सभा में क्या कहूँगा; क्योंकि जो नन्द के पशुओं का रखवाला, गोपियों का साक्षात लम्पट और ग्वालों की जूँठन खाने वाला है तथा जिसकी जाति, खान-पान और उत्पत्ति का कोई निर्णय ही नहीं है; यह भी पता नहीं कि क्या वह राजकुमार है अथवा किसी मुनि का पुत्र है; जिसके पिता वसुदेव क्षत्रिय हैं, परंतु जिसका भरण-पोषण वैश्य के घर हुआ है; जिस दुष्ट ने अभी हाल में मथुरा में धर्मात्मा राजा कंस को मार डाला है, अतः उस राजेंद्र के वध से जिसे निश्चय ही ब्रह्महत्या लगी है; वह कृष्ण देवताओं और मुनियों के साथ देवयोग्य मनोहारिणी कन्या रुक्मिणी को ग्रहण करने के लिए आ रहा है। फिर शाल्व, शिशुपाल और दन्तवक्र ने भी कुवाक्य कहे। इन सबके दुर्वचनों को सुनकर बारात में आये हुए देवता, मुनि, राजागण और बलदेव जी सहित यादवों को क्रोध आ गया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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