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ब्रह्म वैवर्त पुराण
श्रीकृष्णजन्मखण्ड: अध्याय 26
एकादशी व्रत का माहात्म्य, इसे न करने से हानि, व्रत के सम्बन्ध में आवश्यक निर्णय, व्रत का निधान– छः देवताओं का पूजन, श्रीकृष्ण का ध्यान और षोडशोपचार पूजन तथा कर्म में न्यूनता की पूर्ति के लिये भगवान से प्रार्थना तदनन्तर नारद जी के पूछने पर एकादशी का माहात्म्य बताते हुए श्रीनारायण ने कहा– मुने! यह एकादशी व्रत देवताओं के लिये भी दुर्लभ है। यह श्रीकृष्ण प्रीति का जनक तथा तपस्वियों का श्रेष्ठ तप है। जैसे देवताओं में श्रीकृष्ण, देवियों में प्रकृति, वर्णों में ब्राह्मण, तथा वैष्णवों में भगवान शिव श्रेष्ठ हैं, उसी प्रकार व्रतों में यह एकादशी व्रत श्रेष्ठ है। यह चारों वर्णों के लिये सदा ही पालनीय व्रत है। यतियों, वैष्णवों तथा विशेषतः ब्राह्मणों को तो इस व्रत का पालन अवश्य करना चाहिये। सचमुच ही ब्रह्महत्या आदि सारे पाप एकादशी के दिन चावल (भात)– का आश्रय लेकर रहते हैं। जो मन्द-बुद्धि मानव इतने पापों का भक्षण करते हुए चावल खाता है, वह इस लोक में अत्यन्त पातकी है और अन्त में निश्चय ही नरकगामी होता है। दशमी के लंघन में जो दोष है, उसे बताता हूँ; सुनो। पूर्वकाल में धर्म के मुख से मैंने इसका श्रवण किया था। जो मूढ़ जान-बूझकर कलामात्र दशमी का लंघन करता है, उसे तुरंत ही दारुण शाप देकर लक्ष्मी उसके घर से निकल जाती हैं। इस लोक में निश्चय ही उसके वंश की और यश की भी हानि होती है। जिस दिन दशमी, एकादशी और द्वादशी तीनों तिथियाँ हों, उस दिन भोजन करके दूसरे दिन उपवास-व्रत करना चाहिये। द्वादशी को व्रत करके त्रयोदशी को पारण करना चाहिये। उस दशा में व्रतधारियों को द्वादशी-लंघन से दोष नहीं होता। जब पूरे दिन और रात में एकादशी हो तथा उसका कुछ भाग दूसरे दिन प्रातःकाल तक चला गया हो, तब दूसरे दिन ही उपवास करना चाहिये। यदि परा तिथि बढ़कर साठ दण्ड की हो गयी हो और प्रातःकाल तीन तिथियों का स्पर्श हो तो गृहस्थ पूर्व दिन में ही व्रत करते हैं; यति आदि नहीं। उन्हें दूसरे दिन उपवास करके नित्य-कृत्य करना चाहिये। दो दिन एकादशी हो तो भी व्रत में सारा जागरण-सम्बन्धी कार्य पहली ही रात में करे। पहले दिन में व्रत करके दूसरे दिन एकादशी बीतने पर पारण करे। वैष्णवों, यतियों, विधवाओं, भिक्षुओं एवं ब्रह्मचारियों को सभी एकादशियों में उपवास करना चाहिये। वैष्णवेतर गृहस्थ शुक्लपक्ष की एकादशी को ही उपवास-व्रत करते हैं। अतः नारद! उनके लिये कृष्णा एकादशी का लंघन करने पर भी वेदों में दोष नहीं बताया गया है। हरिशयनी और हरिबोधिनी– इन दो एकादशियों के बीच में जो कृष्णा एकादशियाँ आती हैं, उन्हीं में गृहस्थ पुरुष को उपवास करना चाहिये। इनके सिवा दूसरी किसी कृष्णपक्ष की एकादशी में गृहस्थ पुरुष को उपवास नहीं करना चाहिये। ब्रह्मन! इस प्रकार एकादशी के विषय में निर्णय कहा गया, जो श्रुति में प्रसिद्ध है। अब इस व्रत का विधान बताता हूँ, सुनो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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