ब्रह्म वैवर्त पुराण
गणपतिखण्ड: अध्याय 19
ब्रह्मा द्वारा माली-सुमाली को सूर्य के कवच और स्तोत्र की प्राप्ति तथा सूर्य की कृपा से उन दोनों का नीरोग होना तदनन्तर नारद जी के पूछने पर नारायण बोले– नारद! मैं श्रीसूर्य के पूजन का क्रम तथा सम्पूर्ण पापों और व्याधियों से विमुक्त करने वाले कवच और स्तोत्र का वर्णन करता हूँ, सुनो। जब माली और सुमाली– ये दोनों दैत्य व्याधिग्रस्त हो गये, तब उन्होंने स्तवन करने के लिये शिव-मन्त्र प्रदान करने वाले ब्रह्मा का स्मरण किया। ब्रह्मा ने वैकुण्ठ में जाकर कमलापति विष्णु से पूछा। उस समय शिव भी वहीं श्रीहरि के संनिकट विराजमान थे। ब्रह्मा बोले– हरे! माली और सुमाली दोनों दैत्य व्याधिग्रस्त हो गये हैं, अतः उनके रोग के विनाश का कौन-सा उपाय है– यह बतलाइये। विष्णु ने कहा– ब्रह्मन्! वे दोनों पुष्कर में जाकर वर्षभर तक मेरे अंशभूत व्याधिहन्ता सूर्य की सेवा करें, इससे वे रोगमुक्त हो जाएँगे। शंकर ने कहा– जगदीश्वर! उन दोनों को रोगनाशक महात्मा सूर्य का स्तोत्र, कवच और मन्त्र, जो कल्पतरु के समान है, प्रदान कीजिये। ब्रह्मन्! स्वयं श्रीहरि तो सर्वस्व प्रदान करने वाले हैं और सूर्य रोगनाशक हैं। जिसका जो-जो विषय है, अपने विषय में ये दोनों सम्पत्ति-प्रदायक हैं। इस प्रकार विष्णु और शिव की अनुमति पाकर ब्रह्मा उन दैत्यों के घर गये। तब दैत्यों ने उन्हें प्रणाम करके कुशल-समाचार पूछा और बैठने के लिए आसन दिया। उन दैत्यों का शरीर गल गया था, उसमें से पीब और दुर्गन्ध निकल रही था। आहाररहित होने के कारण वे चलने-फिरने में असमर्थ हो गये थे। तब स्वयं दयालु ब्रह्मा ने उन दोनों से कहा। ब्रह्मा बोले– वत्सो! तुम दोनों कवच, स्तोत्र और पूजा की विधि का क्रम ग्रहण करके पुष्कर में जाओ और वहाँ विनम्रभाव से सूर्य का भजन करो। उन दोनों ने कहा– ब्रह्मन्! किस विधि से और किस मन्त्र से हम सूर्य का भजन करें, उनका स्तोत्र कौन-सा है और कवच क्या है– वह सब हमें प्रदान कीजिये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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