मालावती पूछने पर ब्राह्मण द्वारा वैद्यकसंहिता का वर्णन, आयुर्वेद की आचार्य परम्परा, उसके सोलह प्रमुख विद्वानों तथा उनके द्वारा रचित तन्त्रों का नाम-निर्देश, ज्वर आदि चौंसठ रोग, उनके हेतुभूत वात, पित्त, कफ की उत्पत्ति के कारण और उनके निवारण के उपायों का विवेचन
ब्राह्मण बोले– शुभे! तुमने काल, यम, मृत्युकन्या तथा व्याधिगणों का साक्षात्कार कर लिया। अब तुम्हारे मन में क्या संदेह है? उसे पूछो। ब्राह्मण की बात सुनकर सती मालावती को बड़ा हर्ष हुआ। उसके मन में जो प्रश्न था, उसे उसने उन जगदीश्वर के समक्ष प्रस्तुत किया।
मालावती ने कहा– ब्रह्मन! आपने जो यह कहा कि रोग प्राणियों के प्राणों का अपहरण करता है, रोग के जो नाना प्रकार के कारण हैं, उन सबका वेद (आयुर्वेद) में निरूपण किया गया है, उसके सम्बन्ध में मेरा निवेदन यों है– जिसका निवारण करना कठिन है, वह अमंगलकारी रोग जिस उपाय से शरीर में न फैले, उसका आप वर्णन करने की कृपा करें। मैंने जो-जो बात पूछी है या नहीं पूछी है तथा जो ज्ञात है अथवा नहीं ज्ञात है, वह सब कल्याण की बात आप मुझे बताइये; क्योंकि आप दीनों पर दया करने वाले गुरु हैं।
मालावती का वचन सुनकर ब्राह्मण रूपधारी भगवान विष्णु ने वहाँ ‘वैद्यकसंहिता’ का वर्णन आरम्भ किया।
ब्राह्मण बोले– जो सम्पूर्ण तत्त्वों के ज्ञाता, समस्त कारणों के भी कारण तथा वेद-वेदांगों के बीज के भी बीज हैं, उन परमेश्वर श्रीकृष्ण की मैं वन्दना करता हूँ। समस्त मंगलों के भी मंगलकारी बीजस्वरूप उन सनातन परमेश्वर ने मंगल के आधारभूत चार वेदों को प्रकट किया। उनके नाम हैं– ऋक्, यजु, साम और अथर्व। उन वेदों को देखकर और उनके अर्थ का विचार करके प्रजापति ने आयुर्वेद का संकलन किया। इस प्रकार पंचम वेद का निर्माण करके भगवान ने उसे सूर्यदेव के हाथ में दिया। उससे सूर्यदेव ने एक स्वतन्त्र संहिता बनायी। फिर उन्होंने अपने शिष्यों को वह अपनी ‘आयुर्वेदसंहिता’ दी और पढ़ायी।
तत्पश्चात उन शिष्यों ने भी अनेक संहिताओं का निर्माण किया। पतिव्रते! उन विद्वानों के नाम और उनके रचे हुए तन्त्रों के नाम, जो रोगनाश के बीजरूप हैं, मुझसे सुनो। धन्वन्तरि, दिवोदास, काशिराज, दोनों अश्विनीकुमार, नकुल, सहदेव, सूर्यपुत्र यम, च्यवन, जनक, बुध, जाबाल, जाजलि, पैल, करथ और अगस्त्य– ये सोलह विद्वान वेद-वेदांगों के ज्ञाता तथा रोगों के नाशक (वैद्य) हैं।